इतिहास के झरोखे से: कलक्टर ने चेताया तो सरदार बूटासिंह ने लगाई थी अपने बेटे को फटकार
rajasthan assembly election 2023: लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव की निगरानी के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने पर्यवेक्षक नियुक्त करने की व्यवस्था आरम्भ की थी। ये पर्यवेक्षक लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्र का दौरा करते हुए आयोग के निर्देशों की अनुपालना का उत्तरदायित्व निभाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से आयोग द्वारा चुनाव व्यय के लिए निर्धारित राशि की सीमा के संदर्भ में चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के खर्चे पर निगरानी रखने के लिए अलग से पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाने लगे हैं। इन पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव प्रक्रिया से संबंधित शिकायतों का निष्पादन किया जाता है। चुनाव से पहले पर्यवेक्षकों की सूची तैयार की जाती है।
यह परम्परा रही है कि चुनाव वाले राज्य में अन्य राज्य कैडर के वरिष्ठ अधिकारियों की पर्यवेक्षक के रूप के नियुक्ति की जाती है। ऐसे भी उदाहरण सामने आए हैं कि किसी पर्यवेक्षक के अपने निर्धारित क्षेत्र में किन्ही कारणों से नहीं जाने पर अन्य पर्यवेक्षक लगाने की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है तो यह भी देखने में आया है कि किसी घटना या प्रसंग में पर्यवेक्षक को वापस बुलाने की भी नौबत आ जाती है। तो आइए राजस्थान से जुड़े एक प्रसंग की चर्चा करें जब एक पर्यवेक्षक को शिकायतों के चलते चुनाव प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही वापस बुलाया गया। लोकसभा के जालोर सिरोही निर्वाचन क्षेत्र की यह घटना है। वर्ष था 2009 जब पूर्व केन्द्रीय मंत्री बूटासिंह कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर बतौर निर्दलीय इंजन चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में थे। उनका मुकाबला भाजपा के देवजी पटेल से था।
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लोकसभा चुनाव 2023 का है यह वाकया
पंजाब में आतंकवाद के दौर में बलराम जाखड़, बूटा सिंह और चौधरी देवीलाल जैसे नेताओं ने चुनाव लड़ने के लिए राजस्थान में दस्तक दी थी। सरदार बूटासिंह ने जालोर सिरोही का कई बार प्रतिनिधित्व किया था। इसलिए उनके परिवारजन और समर्थक प्रशासन पर अपने दबदबे को स्वाभाविक अधिकार मानते थे। लेकिन वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर अलग थी। इस
बार बूटासिंह निर्दलीय प्रत्याशी थे। जालोर में जिला कलक्टर श्यामसुंदर बिस्सा जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। बिस्सा जेल सेवा के देश में संभवतया पहले अधिकारी थे जो आईएएस बने।
जालोर सिरोही संसदीय क्षेत्र में पी रमेश सिरोही के जिला कलक्टर थे। सरदार बूटा सिंह को जिला जालोर जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष नामांकन पत्र दाखिल करना था। यही से खटपट शुरू हो गई। लवाजमे के साथ नामांकन पत्र भरने पहुंचे बूटासिंह के साथियों को नियमों की पालना की हिदायत दी गई। बूटासिंह के पुत्र और उनके साथी टस से मस नहीं हुए तो बिस्सा ने कहा कि आप सोच लीजिए किसका नुकसान हो सकता है। यह सुनते ही बूटासिंह गंभीर हुए और उन्होंने बेटे को बुरी तरह फटकार लगाई और जिला निर्वाचन अधिकारी कक्ष से बाहर निकाला।
पर्यवेक्षक को बुला लिया था वापस
चुनाव खर्चों पर निगरानी के लिए बूटासिंह के समुदाय से जुड़े एक पर्यवेक्षक को जालोर सिरोही संसदीय क्षेत्र में तैनात किया गया। बूटासिंह के परिवारजनों से सहानुभूति और कई अनियमितताओं की अनदेखी, अपने निर्वाचन क्षेत्र से अन्यन्त्र घूमने जाने, सामान की खरीद की भरपाई के प्रयास, सिरोही जिले के वरिष्ठ अधिकारी से अनबन आदि शिकायत सामने आई। निर्वाचन विभाग के सूत्रों के अनुसार शिकायतें मिलने पर पर्यवेक्षक को वापस बुलाया गया।
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‘छपरी बाबा’ के नाम से मशहूर थे कलक्टर बिस्सा
बूंदी में जिला कलक्टर बनाए जाने पर बिस्सा ने अपने चैम्बर से बाहर खुले में समाधान छपरी बनवाकर आम जनता की सुनवाई का अनूठा प्रयोग किया। तब वे छपरी बाबा नाम से लोकप्रिय हुए। जालोर में यही प्रयोग दोहराने पर कु छ विधायकों ने ऐतराज किया कि आचार संहिता लगने पर यह उचित नहीं है। दरअसल ये जनप्रतिनिधि अपने इलाके के लोगों को जिला कलक्टर से मिलवाकर अपनी शान और लोकप्रियता बनाए रखने के अभ्यस्त थे। पर जिला कलक्टर ने सीधे ही जनता से मिलने की व्यवस्था कर दी। संसदीय क्षेत्र में कारगर निर्वाचन व्यवस्था कर बिस्सा ने सभी को निरुत्तर कर दिया।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार