अनूठी परंपरा: आज भी कायम है सामूहिक सद्भावना की "लाह'’ परंपरा,गीत गाते-झूमते हुए बिना मजदूरी के करते है फसल कटाई
आधुनिकता के दौर में एक तरफ जहां लोग फसलों की कटाई के लिए तरह-तरह की मशीनों का उपयोग करते नजर आते हैं वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में दशकों से चली आ रही लाह परंपरा के तहत आज भी लोकगीतों के साथ किसान परिवार मिलजुलकर बिना किसी मजदूरी लिए खेत में खड़ी फसल की कटाई कर रहे हैं.
देश भर में इन दिनों बटेंगे तो कटेंगे के नारे के माध्यम से आपसी सद्भावना और एकता की बात मुखर की जा रही है लेकिन भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर-जैसलमेर में यह संदेश दशकों से ग्रामीण जीवन का आधार बना हुआ नजर आता है. किसी को काम में अकेला नही छोड़कर उसके साथ सामूहिक श्रम और सद्भाव की यह अनूठी परम्परा "लाह" जब मरुधरा के खेत खलिहानों में उतरती है तो कहने ही क्या…?
महीनों के काम को दर्जनों किसान मिलकर एक दिन में ही पूरा कर लेते है. लाह के दौरान इसमे शामिल होने वाले लोगो के लिए महिलाओं के जिम्मे स्वादिष्ट ग्रामीण व्यंजनों को बनाने का जिम्मा होता है और इनके खाने में गाय के देशी घी का जमकर उपयोग होता है. ग्रामीणों के मुताबिक बुजुर्गों ने इस परम्परा के रूप में उन्हें वरदान दे दिया है जिससे खेतो के काम बहुत आसानी से हो जाते है.
लाह परंपरा के लुम्भाणीयो की बस्ती के एक खेत में सामूहिक फसल कटाई के दौरान नाचते गाते बुजुर्गों में भी एक अलग सा जोश दिखाई दिया. कई बुजुर्गों में फसल कटाई के दौरान युवाओं सी फुर्ती नजर आई. भिणत के साथ लय और ताल से ताल मिलाकर नाचते-गाते देखते ही देखते कई बीघा में फसल की कटाई कर दी गई है.
धनाऊ कस्बे के लुम्भाणीयो की बस्ती में लाह में आए बुजुर्ग रमधान ने कहा कि लाह परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है. इस परम्परा के तहत हंसी-खुशी गाते-नाचते सामूहिक रूप से फसल कटाई कर ली जाती है और इस दौरान थकान भी महसूस नहीं होती है.