Rajasthan Election: शहर में चमके पर प्रदेश में पिछड़े, जयपुर निगम से 30 साल में सिर्फ 5 नेता पहुंचे विधानसभा
Rajasthan Assembly Election 2023: राजनेताओं के विधानसभा तक पहुंचने का रास्ता स्थानीय स्तर के चुनावों से होकर निकलता है। विभिन्न स्तर के चुनावों में नगर निगम से लेकर विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव तक अहम स्थान रखते हैं। विश्वविद्यालय के चुनाव अभी बंद हैं लेकिन अकेले राजस्थान विश्वविद्यालय ने प्रदेश की राजनीति में 20 से ज्यादा नेता दिए हैं। राजेन्द्र राठौड़, प्रतापसिंह खाचरियावास, महेश जोशी, हनुमान बेनीवाल, कालीचरण सराफ, अशोक लाहोटी सहित कई बड़े नेता विश्विविद्यालय की राजनीति से निकले हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अपना राजनीतिक सफर विश्वविद्यालय की राजनीति से ही शुरू किया था। दूसरी ओर नगर निगम से प्रदेश की सियासत की सीढ़ियां चढ़ने वालों की तादाद कम ही है।
अकेले जयपुर नगर निगम की बात करें तो करीब 30 साल के इतिहास में सिर्फ पांच नेता ही विधानसभा में पहुंच पाए हैं। इन तीस सालों में नगर निगम में 500 से अधिक पार्षद बने लेकिन इनमें से विधायक सिर्फ पांच ही चुने गए। इनमें से भी दो नेता ऐसे हैं जो मेयर बनने के बाद विधायक का चुनाव लड़ पाए और उसमें जीते।
अब तक के इतिहास में जयपुर नगर निगम से पार्षद चुने गए नेताओं में से सिर्फ 8 नेताओं को एमएलए का टिकट मिला है, जिनमें से पांच विजेता रहे। यह पांचों भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे हैं। अब तक कोई भी निर्दलीय या कांग्रेस का पार्षद एमएलए नहीं बना है। नगर निगम की राजनीति एग्रेसिवनेस के लिए जानी जाती है क्योंकि यहां के नेता लोकल लेवल पर लोगों से जुड़े होते हैं। ऐसे में निगम के पार्षदों का विधायक पद तक ना पहुंच पाना सवाल खड़े करता है।
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इस बार दोनों दलों में कई दावेदार
इस बार के चुनाव में दोनों ही पार्टियों से कई पार्षदों ने अपने अपने क्षेत्र के लिए टिकट मांगे हैं। इनमें पहले चुनाव लड़ चुके नेताओं के साथ ही ऐसे भी पार्षद शामिल हैं जो पहली बार ही पार्षद बने हैं। ये नेता अपने क्षेत्र में किए गए कामों व समर्थकों के आधार पर टिकट का दावा कर रहे हैं।
इन नेताओं ने आजमाया भाग्य
नगर निगम की पूर्व महापौर शील धाभाई ने कोटपूतली से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था पर वे सफल नहीं हो पाईं। कांग्रेस पार्षद रही अर्चना शर्मा मालवीय नगर से व विक्रम सिंह शेखावत विद्याधर नगर विधानसभा क्षेत्र से भाग्य आजमा चुके हैं, लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाए। पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में उतारा था पर वे भी जीत नहीं पाईं।
सफलता न मिलने के ये हैं बड़े कारण
आकाओं की महत्वाकांक्षा पार्षद के लिए टिकट मिलना-ना मिलना अधिकांश बार स्थानीय विधायक की मेहरबानी पर निर्भर करता है। हर विधायक के क्षेत्र में कई सारे पार्षद आते हैं। ऐसे में जब विधायक के लिए टिकट मिलने की बारी आती है, तो विधायक अपनी सीट छोड़ना नहीं चाहते और पार्षद को सीधा अपने विधायक से कं पीटिशन करना होता है, इसके चलते उन्हें टिकट मिलना मुश्किल होता है।
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सीमित समरर्थन सीमित अप्रोच
पार्षद जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, उसकी सीमाएं बहुत सीमित होती हैं। वोटर्स सीमित होते हैं। अगर कोई जातिगत समीकरण हों तो वह भी सीमित होते हैं। ऐसे में उनके पास समर्थकों की संख्या भी सीमित होती है जो उनके लिए टिकट मांगने के लिए ताकत दिखा पाएं । इन सीमाओं के चलते पार्षद अपने आपको जिताऊ उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तु नहीं कर पाते।