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IAS होते हुए राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने वाले नेता की कहानी, जानिए कौन थे वेंकटाचारी

राजस्थान में एक प्रशासनिक प्रशासनिक अधिकारी ऐसा भी रहा है। जिसने मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी। हम बात कर रहे है प्रशासनिक अधिकारी कदाम्बी शेषाटार वेंकटाचारी को एक संवैधानिक संकट के चलते राजस्थान के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए थे।
10:00 PM Oct 09, 2023 IST | Kunal Bhatnagar
ias होते हुए राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने वाले नेता की कहानी  जानिए कौन थे वेंकटाचारी

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में एक प्रशासनिक प्रशासनिक अधिकारी ऐसा भी रहा है। जिसने मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी। हम बात कर रहे है प्रशासनिक अधिकारी कदाम्बी शेषाटार वेंकटाचारी को एक संवैधानिक संकट के चलते राजस्थान के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए थे। आईएएस के पद पर रहते हुए कार्यकारी या मनोनीत मुख्यमंत्री बनने की ये राजस्थान में संभवत इकलौती ही घटना रही है।

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दरअसल वर्ष 1945 में जोधपुर से जयनारायण व्यास ने पंडित नेहरू को पत्र लिखकर सूचित किया था कि यहां का अंग्रेज प्रधानमंत्री डोनाल्ड फील्ड जनरल डायर की तरह काम कर रहा है। ऐसे में आपको यहां आकर दखल देना जरुरी है। चूंकि जोधपुर एक बड़ा राज्य था, इसलिए उस समय नेहरू ने जोधपुर आना जरूरी समझा। उस समय अपने साथ शेख अब्दुल्ला और इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू के साथ आए।

पाकिस्तान ने की थी जोधपुर रियासत का मिलाने की कोशिश

1946 में भारत में अंतरिम सरकार बनने पर नेहरू प्रधानमंत्री बने। इधर, 1947 की शुरुआत में महाराजा उम्मेद सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र हनवंत सिंह ने गद्दी संभाली। इसी बीच 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन की बात तय हुई। रियासतों को अपनी मर्जी से भारत-पाकिस्तान में से किसी एक में मिलने का अधिकार दिया गया था। इसके बाद पाकिस्तान ने अपनी तय सीमा से लगी रियासतों पर डोरे डालने शुरू कर दिए। जोधपुर के राजा हनवंत सिंह ने दोनों तरफ बातचीत जारी रखी थी। दिसंबर, 1947 में वे भारत की संविधान सभा का हिस्सा बन गए। दो बार भारत में शामिल होने का ऐलान भी कर दिया, लेकिन कागज पर हस्ताक्षर नहीं किए।

खाली कागज पर करवाए साइन

5 अगस्त, 1947 को हनवंत सिंह ने जिन्ना से मुलाकात की थी। जानकार बताते है कि उस समय उनके साथ जैसलमेर के राजा भी थे। बैठक में जिन्ना ने राजा हनवंत से खाली कागज पर साइन करवा लिए थे। जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान में मिल जाइए, जो भी शर्तें हों, लिख दीजिए…सब मान लूंगा।

इस पर राजा हनुवंत ने प्रस्ताव पर विचार के लिए समय मांगा और अपने एडीसी केसरी सिंह के साथ चर्चा की। कराची से लौटकर केसरी सिंह ने सभी बातें वेंकटाचारी को बताई। वेंकटाचारी द्वारा यह जानकारी सरदार पटेल को भेजी गई। इसके बाद पटेल ने हनवंत को दिल्ली बुलाया। आखिर में पटेल और माउंटबेटन ने हनवंत सिंह को समझाया और जोधपुर का भारत में विलय हो गया।

पटेल को खत लिखने की मिली जानकारी

हनवंत सिंह को जब वेंकटाचारी के पटेल को खत लिखने के बारे में जानकारी प्राप्त हुई तो उन्होंने वेंकटाचारी को हटाकर अपने भाई अजीत सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया। फिर बीकानेर महाराजा सादुल सिंह ने वेंकटाचारी को बीकानेर में प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। 1949 में राजस्थान बना तो वेंकटाचारी को राजप्रमुख की तरफ से बुलावा आ गया। राजा मानसिंह राज प्रमुख थे, वेंकटाचारी उनके प्रशासनिक अधिकारी बन गए।

वेंकटाचारी के मुख्यमंत्री बने का किस्सा

दिसंबर, 1950 तक हीरालाल शास्त्री के पद से हटने की रूपरेखा तैयार हो चुकी थी और अगले मुख्यमंत्री के तौर पर जयनारायण व्यास का नाम सबसे आगे था। लेकिन पंडित नेहरू के खास रफी अहमद किदवई ने उनके नाम पर वीटो कर दिया और अंतरिम व्यवस्था के तहत वेंकटाचारी का नाम सुझाया नेहरु का सुझाया गया। आखिर में 6 जनवरी, 1951 को प्रशासनिक अधिकारी सी.एस. वेंकटाचारी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दिलावाई गई। वेंकटाचारी 25 अप्रेल, 1951 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे।

तीन माह लगे नेहरू को मनाने में…

किदवई के वीटो लगाने के कारण मुख्यमंत्री पद से चूक जाने वाले व्यास गुट चुप नहीं बैठा और एक बार फिर सक्रिय हो कर व्यास गुट ने किदवई के तर्कों की काट खोज तीन माह में ही नेहरू को मना लिया। नेहरू के मान जाने के बाद आखिर 26 अप्रेल, 1951 को जयनारायण व्यास राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद को संभाल लिया। मुख्यमंत्री बने आईसीएस वेंकटाचारी को दिल्ली भेज कर केंद्रीय मंत्रालय में सचिव बनाया गया। फिर राजेंद्र बाबू के मुख्य सचिव रहने के बाद 1958 मे कार्यकाल पूरा होने पर सरकार ने उन्हें कनाडा में हाई कमिश्नर नियुक्त कर दिया था।

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