Rajasthan Election 2023: जीत का समीकरण साधने के लिए कई बार नेताओं ने बदले हैं मैदान-ए-जंग
Rajasthan Election 2023: जयपुर । चुनाव जीतने के लिए नेता और पार्टियां क्या क्या जतन नहीं करते। तमाम हथकंडों के साथ ही प्रदेश के कई नेताओं ने समय समय पर अपनी ‘जंग के मैदान’ बदल कर भी सत्ता की दहलीज तक पहुंचने की कोशिश की है। किसी नेता ने वोट बैंक खिसकता देख सीट बदली तो किसी को परिसीमन के चलते बदले समीकरणों के कारण सीट बदलनी पड़ी।
कई बार पार्टियों ने जातिगत, धार्मिक या दूसरे राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए अपने नेताओं को दूसरी सीट से मैदान में उतारा है। इनमें से कुछ सफल रहे हैं तो कुछ को जनता ने नकार दिया। इस चुनाव में भाजपा ने नरपतसिंह राजवी को विद्याधरनगर से सीधा चित्तौड़गढ़ भेज दिया वहीं राजेन्द्र राठौड़ को चूरू से तारानगर शिफ्ट कर दिया। साथ ही राजसमंद सांसद दीयाकुमारी को विधायक के रूप में विद्याधरनगर से मैदान में उतारा है।
यह खबर भी पढ़ें:-Rajasthan Election 2023: चित्तौड़गढ़ में बढ़ी BJP की मुश्किलें, चंद्रभान सिंह लड़ेंगे निर्दलीय चुनाव!
दोनों ही पार्टियों की आने वाली सूचियों में भी सीट बदलने के ऐसे उदाहरण देखने को मिलेंगे। ऐसे मामलों में स्थानीय नेताओं के भीतरघात, असंतोष व असहयोग से निपटना उम्मीदवार व पार्टी के लिए बड़ी चुनौती साबित होता है। इस चुनाव में भी बाहरी नेताओं को प्रोजेक्ट किए जाने के कारण स्थानीय स्तर पर भारी विरोध सामने आ रहा है।
ये हैं वो बड़े चेहरे जिन्होंने अलग-अलग सीटों से लड़े चुनाव
भैरोंसिंह शेखावत
1952 में दांतारामगढ़ से विधायक बने। 1957 में श्रीमाधाेपुर से, 1962 में किशनपोल से और 1977 में छबड़ा से लड़े। 1985 में निम्बाहेड़ा से और 1993 में बाली से जीते। शेखावत ने 1993 में ही गंगानगर से भी चुनाव लड़ा था।
गुलाबचंद कटारिया
1977 और 1980 में उदयपुर शहर से चुनाव जीता। 1985 में यहां से हार गए। 1993 और 1998 का चुनाव कटारिया ने बड़ी सादड़ी से लड़ा और जीते। 2003 में उन्होंने फिर पुरानी सीट उदयपुर से चुनाव लड़ा।
शीशराम ओला
1957 में खेतड़ी से विधायक बने। तीन चुनावों के बाद 1972 और 1977 में पिलानी पहुंचे और यहां से जीते। 1980 में झुंझुनूं
से चुनाव जीता।
कैलाश मेघवाल
1977 में राजसमंद से विधायक बने। 1980 में अजमेर पूर्व से चुनाव लड़कर जीते। 1991 के उपचुनाव में निवाई से चुनाव लड़ा। 1993 में फिर सीट बदली और शाहपुरा भीलवाड़ा से चुनाव जीते। 2013 में भी यहां से विधायक बने।
वसुंधरा राजे
1985 में धौलपुर से विधायक बनीं। 2003 में झालरापाटन से जीतीं। 2008 व 2013 में भी झालरापाटन से ही चुनाव जीता।
परसराम मदेरणा
1957 में ओसियां से चुनाव लड़ा। इसके बाद 1962 में भी ओसियां से ही विधायक बने। 1967 में भोपालगढ़ से लड़े।
चंदनमल बैद
1952 में सरदारशहर से चुनाव लड़ना शुरू किया। कई चुनाव जीतने के बाद 1967 में हारे तो 1977 में तारानगर से लड़े।
घनश्याम तिवाड़ी
1980, 1985 व 1990 में तिवाड़ी ने सीकर से चुनाव लड़ा। 1993 में सीट बदलकर चौमूं से जीते पर 1998 में हार गए। 2003 के बाद से तिवाड़ी ने सांगानेर सीट से चुनाव लड़ा।
यह खबर भी पढ़ें:-Rajasthan Election 2023 : भाजपा-कांग्रेस की तीसरी सूची इसी हफ्ते…दिग्गजों के सामने उतरेंगे ‘तगड़े’ प्रत्याशी
राजेन्द्र राठौड़
राजेन्द्र राठौड़ ने 1990 से 2008 तक तारानगर से चुनाव लड़ा। इसके बाद 2013 और 2018 में में उन्होंने चूरू सीट से चुनाव
लड़ा। इस बार वे वापस अपनी पुरानी सीट तारानगर से मैदान में हैं।
किरोड़ीलाल मीणा
किरोड़ीलाल मीणा ने अपना पहला चुनाव महुआ से लड़ा था। इसके बाद मीणा बामनवास, सवाईमाधोपुर, टोडाभीम और लालसोट से विधायक रहे हैं। सांसद के रूप में भी मीणा ने सवाईमाधाेपुर और दौसा का प्रतिनिधित्व किया है। इस बार वे सवाईमाधोपुर से मैदान में हैं।
इन नेताओं ने भी बदली हैं सीट
भाजपा की सुमित्रा सिंह ने पहले पिलानी से चुनाव लड़ा, बाद में झुंझुनू से उतरीं। वासुदेव देवनानी पहले अजमेर पश्चिम से और बाद में अजमेर उत्तर से विधायक बने। अिनता भदेल 2003 में अजमेर पूर्व से और 2008 में अजमेर दक्षिण से जीतीं। ललित किशोर चतुर्वेदी 1977 से 1993 तक कोटा से विधायक बने, 1998 में हारने के बाद 2003 में सीट बदलकर दीगोद से लड़े पर वहां भी जीत नहीं पाए। श्रीचंद कृपलानी ने 1990 में निम्बाहेड़ा से जीते, 2008 में चित्तौड़गढ़ से लड़े, 2013 में वापस निम्बाहेड़ा से लड़े। रमा पायलट 1990 में हिण्डौली से विधायक बनीं, 2003 में उन्होंने झालरापाटन से चुनाव लड़ा।