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Rajasthan Election 2023: इनको नहीं चाहिए पार्टी का टिकट जमानत गंवाने को लड़ते हैं चुनाव

Rajasthan Election 2023: चुनाव में निर्दलीय लड़ने वाले नेताओं का अलग समीकरण काम करता है। पिछले विधानसभा चुनावों का ट्रेंड देखें तो 25 से 30 सीटें ऐसी हैं जिनपर जातिवाद या धार्मिक ध्रुवीकरण के चलते कांटे की टक्कर रहती है। इसके चलते इन सीटों पर निर्दलीयों की भरमार रहती है।
09:37 AM Oct 24, 2023 IST | BHUP SINGH

Rajasthan Election 2023: प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान के साथ ही चुनावी दंगल सजकर तैयार हो गया है। दोनों बड़ी पार्टियों की और से प्रदेश की विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा शुरू होने के साथ ही प्रत्याशियों की तस्वीर भी साफ होने लगी है। जिन्हें टिकट मिल गया या मिलेगा वे पार्टियों के सहारे जीत की गणित बिठाने में लगे है। जिनको टिकट मिलेगा उनको पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ना है, लेकिन चुनाव में निर्दलीय लड़ने वाले नेताओं का अलग समीकरण काम करता है। पिछले विधानसभा चुनावों का ट्रेंड देखें तो 25 से 30 सीटें ऐसी हैं जिनपर जातिवाद या धार्मिक
ध्रुवीकरण के चलते कांटे की टक्कर रहती है। इसके चलते इन सीटों पर निर्दलीयों की भरमार रहती है।

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उदाहरण के लिए जयपुर की आदर्शनगर सीट पर पिछले वर्ष 66 नामांकन दाखिल किए गए थे जिनमें से 31 ने चुनाव भी लड़ा था। कहने को इतने प्रत्याशी मैदान में थे लेकिन भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी के अलावा शेष सभी की जमानत जब्त हो गई थी। कमोबेश यही ट्रेंड ऐसी सभी सीटों पर देखने को मिलता है जहां ज्यादा प्रत्याशी मैदान में होते हैं। दरअसल, चुनाव में निर्दलीयों के जमावड़े के पीछे कई कारण हैं। किसी विशेष प्रत्याशी के वोट काटने से लेकर मजबूत प्रत्याशियों वोट काटने के नाम पर डराकर ‘लाभ’ लेना तक इनमें शामिल है। साथ ही किसी विशेष प्रत्याशी के वोट काटने के लिए उसी के नाम वाले किसी व्यक्ति केा चुनाव में खड़ा कर मतदाताओं को भ्रमित करने की भी कोशिश की जाती है।

देखने में आया है कि निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या जितनी अधिक होती है, जीत-हार का मार्जिन उतना ही कम हो जाता है। इसके चलते अिधकांश पार्टियां व उम्मीदवार निर्दलीयों को मैनेज करने की कोशिश अंतिम समय तक करते हैं। हालांकि भाजपा-कांग्रेस से असंतुष्ट होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोकने वाले कई प्रत्याशियों ने जीत के इतिहास भी बनाए हैं और सरकार के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई है।

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पिछली बार यहां रहे बंपर प्रत्याशी

सांगानेर- 29
मुंडावर- 22
बीकानेर ईस्ट- 22
गंगानगर- 22
मालवीयनगर- 22
विद्याधरनगर- 21
रामगढ़ 20
झोटवाड़ा- 20
जैतारण- 20

इन सीटों पर हर बार निर्दलीयों की भरमार

कोटपूतली

2008 में 48 और 2013 में 37 नामांकन दाखिल किए गए। जीत का मार्जिन 2008 में 893 वोट रहा। निर्दलीयों ने 55 हजार वोट हासिल किए। वजह- यहां जातियों का बिखराव है। यादव सबसे ज्यादा हैं। इनके बाद गुर्जर, जाट, मीणा व अन्य जातियां हैं। जिन जातियों को दोनों मुख्य पार्टियों से टिकट मिलता है उनके अलावा जातियों के दूसरे नेता भी मैदान में उतरते हैं। इस बार कांग्रेस ने राजेन्द्र यादव व भाजपा गुर्जर हंसराज पटेल को उतारा है। तय है इस बार भी निर्दलीयों की भरमार होगी।

विद्याधर नगर

2008 में 31 व 2013 में 23 नामांकन भरे गए। 2018 में 29 ने नामांकन भरा और 21 ने चुनाव लड़ा। इनमें से 18 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। यहां राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य व सिंधी समुदाय के काफी वोट हैं। इसी के 2008 और 2013 में दोनों पार्टियों ने राजपूतों काे टिकट दिया था जबकि 2018 में भाजपा ने राजपूत व कांग्रेस ने वैश्य को टिकट दिया था। इस बार यहां भाजपा से दिया कुमारी उम्मीदवार हैं।

किशनपोल

यहां 2008 में 29 नामांकन भरे गए थे जिनमें से 19 ने चुनाव लड़ा। 17 की जमानत जब्त हो गई। 2013 में 55 नामांकन भरे गए, 29 ने चुनाव लड़ा और 27 की जमानत जब्त हो गई। 2018 में रिकॉर्ड 71 लोगों ने नामांकन किया जिनमें से 46 चुनाव में भी उतरे। इनमें से 44 की जमानत जब्त हो गई। ज्यादा प्रत्याशियों के चलते जीत का मार्जिन महज 8770 वोट का रहा। यहां हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण पर सारा खेल टिका हुआ है।

हवामहल

हवामहल सीट पर 2018 में 31 नामांकन भरे गए थे जिनमें से 19 ने चुनाव लड़ा था। 17 जमानत भी नहीं बचा पाए। जीत का मार्जिन भी महज 9282 वोट का रहा था। इससे पहले 2013 में यहां से 24 नामांकन भरे गए थे जिनमें से 21 ने चुनाव लड़ा था। यह सीट भी धार्मिक ध्रुवीकरण में फंसी सीट है।

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