Rajasthan Election 2023: 50 साल में सवा सौ से ज्यादा दलों ने तलाशी जमीन, चुनिंदा ही हुए सफल
Rajasthan Election 2023: मतदान प्रक्रिया के तहत अब आते हैं मतदान पूर्व की तैयारी पर। प्रायः प्रत्येक वर्ष की पहली तारीख को आधार मानकर चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची तैयार की जाती है। अब तो फोटोयुक्त मतदाता सूची बनाई जाने लगी हैं। समय समय पर इसे संशोधित किया जाता है। मतदान से कुछ समय पहले भी अनुपूरक मतदाता सूची बनाई जाने लगी हैं। मतदाता सूची के प्रकाशन के साथ चुनाव कार्यक्रम में परिणाम तक का विवरण घोषित किया जाता है। चुनाव सम्पन्न होने के साथ विधायिका का गठन होता है।
लोकतंत्र की इमारत चुनाव की नींव पर खड़ी है। चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पश्चात सात दिन की अवधि में प्रत्याशी नामांकन पत्र संबंधित अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। इस चुनाव में आयोग ने ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन नामांकन भरने के लिए सुविधा एप बनाया है। ऑनलाइन नामांकन के दिन ही प्रत्याशी को रिटर्निंग अधिकारी के समक्ष नामांकन संबंधी दस्तावेजों की हार्डकॉपी जमा करानी होती है। एक प्रत्याशी की चुनाव रैली, वाहनों के उपयोग तथा हैलीकाप्टर उपयोग की अनुमति इत्यादि सुविधाएं भी एप पर उपलब्ध हैं।
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ऑनलाइन नामांकन के पीछे आयोग की रैली के रूप में यातायात पर होने वाले दबाव को कम करने की मंशा थी। लेकिन नामांकन रैलियों को प्रत्याशी के पक्ष में शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक माना जाने लगा है। नामांकन पत्र भरते समय रिटर्निंग अधिकारी के समक्ष निर्धारित संख्या में समर्थक उपस्थित रहते हैं लेकिन नामांकन के बाद जनसभा का फैशन चरम पर है जहां पार्टी के बड़े नेताओं की मौजूदगी चुनावी जीत का मंत्र समझी जाती है।
राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त तथा पंजीकृत राजनैतिक दल के प्रत्याशी के रूप में और निर्दलीय भी नामांकन पत्र दाखिल कर सकते हैं। एक प्रत्याशी नामांकन पत्र के अधिकतम चार सैट जमा करा सकता है। नए नियमों में अब कोई भी उम्मीदवार अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव लड़ सकता है। लेकिन दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में नामांकन भरा जा सकता है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने एक बार छह निर्वाचन क्षेत्रों से नामजदगी के पर्चे दाखिल किए थे। लेकिन चुनाव दो जगह से लड़ा। प्रदेशों में अक्सर चुनाव से पहले नए-नए राजनैतिक दल पंजीकृत होते हैं तथा नियमानुसार मान्यता एवं चुनाव चिह्न भी आवंटित कराते हैं। पिछले 50 सालों में लगभग सवा सौ राजनैतिक दलों ने सियासी जमीन तलाशनी चाही लेकिन उनकी दाल नहीं गली । इनमें एक तिहाई कमोबेश सक्रिय रहे। दलों का यह क्रम जारी है।
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कानूनी दांव पेच का फायदा उठाते हैं दागी
नामांकन पत्रों की जांच एवं नाम वापसी के पश्चात चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाते हैं। राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक दलों के लिए चुनाव चिह्न निर्धारित होते हैं। स्वतंत्र प्रत्याशियों के लिए मुक्त चुनाव चिह्नों की लम्बी सूची है। चुनाव चिह्नों का भी दिलचस्प इतिहास रहा है। इन चिह्नों से जुड़े गीत भी कभी लोकप्रिय हुआ करते थे। नामांकन पत्र में दलीय अथवा निर्दलीय प्रत्याशी को अपना एवं परिवार, पत्नी या पति की चल-अचल सम्पति तथा आपराधिक रिकाॅर्ड का विवरण देना होता है।
इसके बावजूद दागी उम्मीदवारों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। यही नहीं कानूनी दांव पेच के चलते ऐसे प्रत्याशी लोकसभा, विधानसभा में पहुंचकर मंत्री तक बन जाते हैं। निर्वाचन आयोग ने दागियों को टिकट देने के कारणों की जानकारी 48 घंटों में सार्वजनिक करने, स्वयं प्रत्याशियों को भी समाचार पत्रों में तत्संबंधी विज्ञापन देने के निर्देश हैं। ऐसे दागियों को आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक की मांग अदालत में लंबित है।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार