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Rajasthan Election 2023 : नेहरू के दखल से हो गई थी हीरालाल शास्त्री के दल जनता पार्टी की ‘भ्रूण हत्या’

Rajasthan Election 2023 : बोलचाल की आम भाषा में कहें तो चुनाव और राजनैतिक दल एक सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। लेकिन इस रिश्ते को मुहावरे के रूप में चोली-दामन के साथ का नाम भी दिया जा सकता है। राजनैतिक दलों के जन्म और उसके विकास की कहानी बनती-बिगड़ती रहती है।
09:32 AM Dec 01, 2023 IST | BHUP SINGH

Rajasthan Election 2023 : बोलचाल की आम भाषा में कहें तो चुनाव और राजनैतिक दल एक सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। लेकिन इस रिश्ते को मुहावरे के रूप में चोली-दामन के साथ का नाम भी दिया जा सकता है। राजनैतिक दलों के जन्म और उसके विकास की कहानी बनती-बिगड़ती रहती है। यदि आपको किसी राजनैतिक दल के गर्भपात की कथा सुनाई जाए तो कैसा रहेगा। तो इस कथा के श्रीगणेश केलिए हमे स्वाधीनता के पश्चात 1952 में प्रथम चुनाव की तत्कालीन पृष्ठभूमि को समझना होगा।

स्वाधीनता के लिए संघर्ष काल में एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा ‘सेफ्टी वॉल्व’ के रूप में स्थापित की गई कांग्रेस पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई। स्वाधीनता का लक्ष्य पूरा होने पर महात्मा गांधी ने इस पार्टी को विघटित करने की बात कही थी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। वर्ष 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस केविधिवत विभाजन की श्रृंखला आने वाले दशक में टूटी नहीं। कांग्रेस के कई नाम हुए और अब इंदिरा गुट वाली कांग्रेस जीवित है। प्रथम आम चुनाव केसमय की जनसंघ अब भारतीय जनता पार्टी के परिवर्तित रूप में है तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी भी टुकड़ों में बंटती रही।

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आपातकाल के दौरान विभिन्न दलों के नेतागण जेल में रहे और 1977 के चुनाव की घोषणा होते ही आनन-फानन में जनता पार्टी का जन्म हुआ। भारतीय लोकदल के चुनाव चिह्न के बलबूते पहली बार केन्द्र में गैर कांग्रेस सरकार में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में शासन सत्ता की बागडोर संभाली। विडम्बना यह रही कि न तो सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाई और जनता पार्टी भी टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरती चली गई। इस कथा के आरम्भ में हम जिस राजनैतिक दल के गर्भपात की चर्चा कर रहे थे, अब उसकी बारी है। यह सही है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली की चुनाव यात्रा के 25 वर्षों के अंतराल पर केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी।

लेकिन राजस्थान में गठित जनता पार्टी तो आम चुनाव से पहले ही जन्मी और गर्भनाल कटने व नवजात शिशु की साफ-सफाई की रस्म से पहले उसका मरण हो गया। अब इस कहानी को समझने से पहले हमे फिर भूतकाल में जाना होगा। सरदार वल्लभ भाई पटेल की पहल पर प्रदेश की 22 रियासतों के एकीकरण से 30 मार्च 1949 को गठित राजस्थान केलिए रियासती मंत्रालय ने हीरालाल शास्त्री को प्रथम प्रधानमंत्री मनोनीत किया। तत्कालीन राजस्थान कांग्रेस में मारवाड़ के जयनारायण व्यास, मेवाड़ के माणिक्यलाल वर्मा तथा गोकुल भाई भट्ट आदि की गिनती शिखर नेताओं में होती थी।

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हीरालाल शास्त्री आयु में छोटे थे, तब उनका राजनीतिक कद भी कम था। अलबता भट्‌ट जी शास्त्री के समर्थक थे। व्यास जी, वर्मा जी के समर्थकों की रणनीति के चलते किशनगढ़ में कांग्रेस की बैठक में शास्त्री सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सरदार पटेल को भेजा गया जिसे अस्वीकार किया गया। पटेल का निधन होने पर शास्त्री ने 5 जनवरी 1951 को त्यागपत्र दे दिया।

जयपुर में हुआ गठन का निर्णय, दिल्ली में हुई समापन की घोषणा

संवाद समिति हिन्दुस्थान समाचार में हमारे अग्रज वरिष्ठ पत्रकार सीताराम झालानी ने इस घटनाक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि कांग्रेस की धड़ेबंदी से परे हीरालाल शास्त्री वनस्थली चले गए जहां उन्होंने शिक्षण संस्थान की स्थापना की। लेकिन आम चुनाव की घोषणा होने पर उनका राजनीतिक मन कु लबुला उठा और वे चुनाव राजनीति में सक्रिय हो गए। व्यास जी-वर्मा जी से पटरी बैठने की कोई गुंजाइश नहीं देख उन्होंने नए राजनैतिक दल के गठन की मंशा से जयपुर में अपने समर्थकों का सम्मेलन बुलाया।

कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने के उद्देश्य से जनता पार्टी नामक दल के गठन का निर्णय लिया गया। शास्त्री अध्यक्ष बने। उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी विधि मंत्री वेदपाल त्यागी तथा लोकवाणी दैनिक के सम्पादक पूर्णचंद जैन को महामंत्री मनोनीत किया गया। यह खबर मिलते ही केन्द्र में अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शास्त्री जी को दिल्ली बुलाया । सम‌झाइश पर बहीं जनता पार्टी के समापन की घोषणा कर दी गई। इस प्रकार इस नए दल की भ्रूण हत्या हो गई। इसके बदले चुनाव में शास्त्री समर्थक 14 लोगों को उम्मीदवार बनाया गया। लेकिन गुटबाजी के चलते के वल वेदपाल त्यागी छबड़ा से चुनाव जीत सके।

गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार

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