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Assembly Election 2023: क्या होती है आचार संहिता जिसके लागू होते ही थम जाएंगे ये सारे काम

10:15 AM Oct 09, 2023 IST | Sanjay Raiswal
assembly election 2023  क्या होती है आचार संहिता जिसके लागू होते ही थम जाएंगे ये सारे काम

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्‍थान, मध्यप्रदेश, छत्‍तीसगढ़, तेलंगाना और म‍िजोरम में चुनाव की तारीखों का आज दोपहर 12 बजे ऐलान होगा जहां चुनाव आयोग एक प्रेस कांफ्रेंस कर पांचों राज्यों में चुनाव कार्यक्रम जारी करेगा. पिछले कई महीनों से राजस्थान सहित 5 राज्यों में जारी चुनाव की तैयारियों के बाद अब चुनाव आयोग प्रदेश में चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। भारत निर्वाचन आयोग पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का शंखनाद कभी भी शुरू हो सकता है। विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चाओं का माहौल गर्माया हुआ है.

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सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, आयोग चुनाव बैठक में रविवार से मंगलवार यानी 8 से लेकर 10 अक्‍टूबर के बीच कभी भी चुनावी कार्यक्रम का ऐलान कर दिया जाएगा। 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान परिणाम आने तक इन सभी जगह आचार संहिता लागू रहेगी। अब बड़ा सवाल ये है कि आदर्श आचार संहिता क्या होती है? इसके नियम-कायदे क्या हैं? इसे कौन लागू करता है? इसे लागू करने का मकसद क्या है? आइए इसके बारे में जानते हैं।

दरअसल, देश में या किसी भी राज्य में चुनाव से पहले एक अधिसूचना जारी की जाती है। इसके बाद उस राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है। निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होती है।

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यहां समझें क्या होती है आचार संहिता

चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है।

चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए दिए दिशा-निर्देश को सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है।

आचार संहिता का मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष और साफ-सुथरा बनाना, सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है।

आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए आचरण और व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है।

आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।

थम जाता है सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग

चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के मकसदों में शामिल है।

सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।

साल 1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया।

1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसकी पालना करवाएं। तभी से ही सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन होता है।

चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।

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आदर्श आचार संहिता में दिए गए है ये दिशा-निर्देश

चुनावों में उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल अपनी बात वोटर्स तक पहुंचाने के लिए चुनाव सभाओं, जुलूसों, भाषणों, नारेबाजी और पोस्टरों का इस्तेमाल करते है। आदर्श आचार संहिता में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं। जैसे ही चुनाव को लेकर तारीख और परिणाम आने की तिथी की घोषणा होती है। आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकार और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं।

सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जाते है। आदर्श आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिए कुछ खास गाइडलाइंस दी गई हैं। इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिए न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का ऐलान करने की मनाही है।

सत्ता के गलत इस्तेमाल पर रोक

मंत्रियों और सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत भी नहीं होती। आचार संहिता में सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किए जा सकते हैं। इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का जिक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है।

अगर कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। इसके अलावा चुनाव सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने तथा जुलूस निकालने के लिए भी गाइडलाइंस बनाई गई है।

किसी उम्मीदवार या पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है और इसकी जानकारी निकटतम थाने में देनी होती है। हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुछ उम्मीदवारों का कब्जा नहीं होना चाहिए। इन्हें सभी उम्मीदवारों को समान रूप से मुहैया कराना चाहिए। इन सारी कवायद का मकसद सत्ता के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाकर सभी उम्मीदवारों को बराबरी का मौका देना है।

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