इतिहास के झरोखे से : पहले बंधा जीत का सेहरा, फिर बेआबरू होकर निकले नेताजी
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार। चुनावी हार जीत में एक वोट की कीमत क्या होती है, इसे सत्रहवीं राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी से अधिक कौन जान सकता है। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में नाथद्वारा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में वह मात्र एक वोट के अंतर से चुनाव हार गए थे। बाद में वह भीलवाड़ा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होकर केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने लेकिन एक वोट की चुनावी पराजय उन्हें ताजिंदगी याद रहेगी। जोशी की पराजय पर उन दिनों राजनैतिक क्षेत्रों में यह कयास लगाया गया था कि यदि जोशी चुनाव जीत जाते तो सम्भवतः मुख्यमंत्री बन सकते थे। खैर उनका यशस्वी राजनैतिक सफर जारी है। विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल में उन्होंने कई नवाचार किए हैं। सम्भवतः पहली बार डॉ. जोशी की पहल पर राष्ट्रपति के रूप में द्रोपदी मुर्मू ने प्रदेश के विधायकों को संबोधित किया।
तो बात हो रही थी चुनावी हार जीत में एक वोट की कीमत की। वहीं लाखों मतों के अन्तर से भी चुनावी जीत के कीर्तिमान बने और टूटे हैं। लेकिन हम आज बात कर रहे हैं बैलट पेपर यानि मतपत्रों की गिनती के दौर में जीत हार की। आज तो ईवीएम मशीनों से मतदान का जमाना है। इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से जहां मतदान में कम समय लगता है, वहीं मतगणना भी तुरत-फुरत हो जाती है और हाथों- हाथ चुनाव परिणाम की सहज घोषणा कर दी जाती है। तो यह चुनावी किस्सा है- मतपत्रों से मतदान और मतगणना का। मारवाड़ क्षेत्र में जालोर जिले के एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का। इतना लम्बा अर्सा हो गया।
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विधानसभा का नाम याद नहीं आ रहा। लेकिन हकीकत है और अधिकृत भी। यह इसलिए कि मेरे पत्रकारीय कर्म के जोधपुर कार्यकाल में वहां के जनसम्पर्क अधिकारी बिशनसिंह सिसोदिया ने चुनावी कवरेज के दौरान एक मेटाडोर में सफर करते समय हम पत्रकार साथियों से इस किस्से को साझा किया था। विधानसभा के उस निर्वाचन क्षेत्र में मतगणना का आखिरी दौर चल रहा था। एक-एक कर वोटों की गिनती की जा रही थी। दो प्रमुख प्रतिद्वंदियों के बीच आगे-पीछे रहने का सिलसिला जारी था। इधर रात्रि का साया बढ़ने लगा। कुछ मामूली वोटों के अंतर से एक प्रत्याशी की जीत को देखते हुए दूसरे प्रत्याशी ने पुनर्मतगणना की मांग की। समूची प्रक्रिया के पश्चात दुबारा वोटों की गिनती की जानी थी। इस बीच कम मतों के अंतर से जीतने वाले प्रत्याशी की मतगणना कर्मियों से झड़प हो गई।
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उन्होंने अंग्रेजी में कुछ ऐसे शब्द बोल दिए जो मतगणना कार्मिकों को चुभ गए। दुबारा मतों की गिनती से पहले खाना खाने के बाद आराम से मतगणना शुरू की गई। दूसरा, तीसरा प्रहर बीत गया। विवादास्पद मत पत्रों को रद्द करने की बहसबाजी के चलते भोर हो गई और चुनाव जीतने वाला प्रत्याशी कुछ मतों के अंतर से हारा घोषित हो गया? इस तरह जीती बाजी घर में बदल गई। पासा पलट गया और ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई। किस्सा धारक बिशन जी की स्मृति को नमन।