'ये अभी झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है…' ज्ञानवापी फैसले पर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का अलग अंदाज
जयपुर। ज्ञानवापी मामले पर बुधवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया। फैसला आने के आठ घंटे बाद देर रात प्रशासन की मौजूदगी में तहखाने की दीवार पर बने त्रिशूल समेत अन्य धार्मिक चिन्हों की हिंदूओं ने पूजा-अर्चना की। आदेश के बाद काशी विश्वनाथ धाम परिसर में पुलिस-प्रशासन की हलचल तेज हो गई। इसके बाद शाम करीब 7 बजे जिलाधिकारी एस राजलिंगम पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ काशी विश्वनाथ धाम पहुंचे।
बता दें कि ज्ञानवापी के इस तहखाने में व्यास परिवार 1993 तक पूजा करता रहा है। 31 साल में ऐसा पहली बार हुआ, जब हिंदू पक्ष की ओर से व्यासजी तहखाने में पूजा-अर्चना की गई। इस मौके पर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा व्यवस्था भी कड़ी रही।
वहीं ज्ञानवापी फैसले को लेकर राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह तो पहली झांकी है, अभी मथुरा और काशी बाकी है। उन्होंने कहा कि सरकार कभी कोई जोर जबरदस्ती नहीं करती है, लेकिन जिन सबूतों के आधार पर न्यायालय निर्णय देता है, उसे तो सबको मानना ही पड़ेगा। मेरी मान्यता है कि जो अवशेष निकल रहे हैं, वह भी श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर ली थी ये प्रतिज्ञा…
बता दें कि 22 जनवरी को जब भगवान राम का भव्य मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह था, तब उन्होंने संकल्प लिया है कि जब तक श्री कृष्ण भगवान की जन्म स्थल पर भव्य मंदिर निर्माण के बाद भगवान की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो जाती है। तब तक वह एक टाइम ही भोजन करेंगे और माला भी नहीं पहनेंगे।
ASI सर्वे की रिपोर्ट हुई थी सार्वजनिक…
25 जनवरी को देर रात ज्ञानवापी की ASI सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी। 839 पन्नों की रिपोर्ट में ASI ने ज्ञानवापी परिसर के प्रमुख स्थानों का जिक्र किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ज्ञानवापी के तहखाने में कई तरह की कई भगवनों की प्रतिमा मिली हैं। इनमें भगवान विष्णु, गणेश और शिवलिंग की मूर्ति हैं। ASI कि रिपोर्ट में पूरे परिसर को मंदिर के स्ट्रक्चर पर खड़ा बताते हुए 34 साक्ष्य का जिक्र किया गया है। वहीं ज्ञानवापी की दीवारों, शिलापटों पर 4 भाषाओं का जिक्र मिला है।
इसमें देवनागरी, कन्नड़, तेलुगु और ग्रंथ भाषाएं हैं। इसके अलावा भगवान शिव के 3 नाम भी मिले हैं। यह जनार्दन, रुद्र और ओमेश्वर हैं। सारे पिलर पहले मंदिर के थे, जिन्हें पुर्ननिर्माण कर दोबारा इस्तेमाल किया गया। ASI ने रिपोर्ट में लिखा कि ज्ञानवापी में एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। रिपोर्ट में बताया गया है कि 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब का शासन था, उस वक्त ज्ञानवापी स्ट्रक्चर को तोड़ा गया। इसके कुछ हिस्सों को पुनर्निर्माण कर मूलरूप को प्लास्टर और चूने से छिपाया गया।