Guru Purnima Special : कुंडली में है दोष और नहीं है गुरू…तो ये काम जरूर करें
Guru Purnima Special : जयपुर। देशभर में आज गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। भारत में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। क्योंकि गुरु ही हमें अच्छा और बुराई का ज्ञान कराता है। साथ ही जीवन में सही मार्ग पर चलना सिखाता है। इस दिन गुरु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि अगर किसी ने कोई गुरु ही नहीं बना रखा और उसकी कुंडली में गुरू दोष हो तो वो क्या करें?
कुंडली में है गुरु दोष तो करें ये उपाय
आपकी कुंडल में गुरु दोष और आपने जीवन में कभी कोई गुरु नहीं बनाया है तो घबराने की जरूरत नहीं है। आप बिना गुरू के भी गुरू दोष से छूटकारा पा सकते है। इसके लिए गुरु पूर्णिमा के दिन ये उपाय कर सकते है। मान्यता है कि भगवान विष्णु को गुरु मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा-अर्चना करने से कुंडली में गुरु दोष दूर होता है। साथ ही कुंडली में गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए हर गुरुवार को ‘ॐ बृ बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जाप करें। गुरु पूर्णिमा से इसकी शुरुआत कर सकते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन पंडित द्वारा शुभ मुहुर्त में घर पर गुरु यंत्र की स्थापना कराएं और रोजाना इसकी पूजा-अर्चना करें।
इसके अलावा यदि बिजनेस में नुकसान हो रहा है तो गुरु पूर्णिमा के दिन जरूरतमंदों को पीले चालव, पीले वस्त्र और पीली रंग की मिठाई दें। यदि स्टूडेंट्स पढ़ाई को लेकर तनावग्रस्त है तो गुरु पूर्णिमा के दिन गाय की सेवा करे। ऐसा करने से मन एकाग्रचित रहेगा और शांति मिलेगी। जिससे स्टूडेंट्स का मन पढ़ाई में लग पाएगा, जो भविष्य के लिए काफी फायदेमंद होगा।
गुरु का वास्तविक मतलब क्या?
शास्त्रों में गु का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ उसका निरोधक है। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। यानी गुरु ही है जो अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है । गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है, वैसी ही गुरु के लिए भी। यानी हम कह सकते है कि गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा?
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था। मान्यता है कि उनके जन्म पर ही गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा शुरू हुई। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
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