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माननीयों के डीपफेक फोटो-वीडियो को लेकर सरकार सख्त, लोकसभा चुनाव से पहले की ये तैयारी

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव है। इसके लिए चुनाव आयोग ने खास तैयारी की जा रही है। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर फेक मैसेज और डीपफेक मैसेज की बाढ़ आ जाती है।
07:46 PM Oct 16, 2023 IST | Kunal Bhatnagar

Lok Sabha Election 2024: पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव है। इसके लिए चुनाव आयोग ने खास तैयारी की जा रही है। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर फेक मैसेज और डीपफेक मैसेज की बाढ़ आ जाती है। इसमें बड़ा योगदान सोशल मीडिया मैसेजिंग प्लेटफॉर्म एप वाट्सअप का होता है।

ऐसे में भारत सरकार ने डीपफेक और स्पैम मैसेज से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार कानून बनाने पर विचार कर रही है। व्हाट्सएप को कानूनी दबाव में लाने के लिए ऐसा किया जा सकता है।

फेक न्यूज फैलाने वालों में कार्रवाई

वैसे तो सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाने वालों पर कार्रवाई होती है, लेकिन अब सरकार इसको लेकर कानून बनाने की तैयारी कर रही है। अगर सरकार कोई कानून लाती है तो व्हाट्सएप को डीपफेक या फर्जी संदेश भेजने वाले व्यक्ति की जानकारी का खुलासा करना होगा।

इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म को सरकार को बताना होगा कि डीपफेक या फर्जी मैसेज सबसे पहले किसने भेजा। वहीं मेटा का कहना है कि ऐसा करना उनके लिए मुश्किल होगा। मेटा के प्लेटफॉर्म के मुताबिक ऐसा करने से लोगों की प्राइवेसी कमजोर होगी, वैसे भी कंपनी दो लोगों के बीच हुई बातचीत की जानकारी नहीं रखती है।

राजनेताओं के डीपफेक फोटो-वीडियो पर कड़ी नजर

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, व्हाट्सएप से खासतौर पर उस शख्स के बारे में जानकारी मांगी जाएगी जो राजनेताओं के डीपफेक फोटो-वीडियो बनाता और शेयर करता है। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम 2021 के तहत, सरकार व्हाट्सएप से उस व्यक्ति की पहचान उजागर करने के लिए कह सकती है जिसने सबसे पहले ऐसा वीडियो साझा किया था।

व्हाट्सएप को नोटिस भेजने की तैयारी!

चुनाव के दौरान नेताओं के वायरल हो रहे डीपफेक वीडियो चुनावी व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए सरकार इस मामले में अब सरकार व्हाट्सएप को नोटिस भेजने की तैयारी कर रही है। इससे पहले 2021 में व्हाट्सएप और फेसबुक ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। अमेरिकी कंपनी का रुख था कि ऐसा करना उसके उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता के लिए खतरा था और यह 'सामूहिक निगरानी' के रूप में सामने आ सकता था।

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