For the best experience, open
https://m.sachbedhadak.com
on your mobile browser.

चीतों के बढ़े ‘फर’ बने जान लेवा, हो रहा है संक्रमण

अफ्रीका की सर्दियों के आदी चीतों के ‘फर’ की मोटी परत विकसित होने की प्राकृतिक प्रक्रिया, भारत की नमी युक्त और गर्म मौसमी परिस्थितियों में प्राणघातक साबित हो रही हैं।
09:01 AM Aug 03, 2023 IST | BHUP SINGH
चीतों के बढ़े ‘फर’ बने जान लेवा  हो रहा है संक्रमण

नई दिल्ली। अफ्रीका की सर्दियों के आदी चीतों के ‘फर’ की मोटी परत विकसित होने की प्राकृतिक प्रक्रिया, भारत की नमी युक्त और गर्म मौसमी परिस्थितियों में प्राणघातक साबित हो रही हैं। यह दावा चीता परियोजना से जुड़े अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने किया है। सरकार को सौंपी रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चीतों के फर को काटने की सलाह दी है ताकि उन्हें प्राणघातक संक्रमण और मौत से बचाया जा सके। अफ्रीका से लाकर मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 20 वयस्क चीतों को बसाया गया था जिनमें से मार्च के बाद से छह की मौत हो गई है।

Advertisement

यह खबर भी पढ़ें:-नासिर-जुनैद हत्या के बाद नूंह हिंसा से जुड़ा नाम! कौन है मोनू मानेसर जिसके नाम पर भड़की हिंसा की आग

चीते की मौत का सबसे नवीनतम मामला बुधवार को सामने आया। इनके अलावा तीन शावकों की मौत हो चुकी है। विशेषज्ञों ने कहा कि फर की मोटी परत परजीवियों और नमी से होने वाले त्वचा रोग के लिए आदर्श परिस्थिति है, इसके साथ ही मक्खी का हमला संक्रमण को बढ़ाता है और त्वचा के स्वास्थ्य के लिए विपरीत परिस्थिति पैदा करता है। उन्होंने कहा कि जब चीते अपने जांघ के बल पर बैठते हैं तो संक्रमित तरल पदार्थ फैल कर रीढ़ की हड्डी तक पहुंच सकता है।

जिनके लंबेबाल नहीं, वेहैं ठीक

परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सभी चीतों की त्वचा पर घने फर विकसित नहीं हुए हैं। कुछ चीतों के लंबे बाल नहीं है और उन्हें ऐसी समस्या का सामना करना नहीं पड़ा है। इसलिए प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के तहत सबसे सेहतमंद चीते और उनके शावक जिंदा रहेंगे और उनके शावक भारतीय परिस्थितियों में फलेंगे-फू लेंगे।

जलवायु ही एकमात्र कारण नहीं

हाल में सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में, विशेषज्ञों ने कहा कि जलवायु चीतों के लिए एकमात्र कारक नहीं है क्योंकि उनके निवास क्षेत्र की ऐतिहासिक सीमा दक्षिणी रूस से दक्षिण अफ्रीका तक फै ली हुई है, जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों से युक्त है। रिपोर्ट में उद्त शोध के अनुसारर 2011 और 2022 के बीच 364 चीतों को स्थानांतरित करने के आंकड़ों से संके त मिलता है कि उनके अस्तित्व के लिए जलवायु बड़ी बाधा नहीं है।

यह खबर भी पढ़ें:-हरियाणा में झुलसी आग का राजस्थान में भी असर! भरतपुर में इंटरनेट बंद, पुलिस ने निकाला फ्लैग मार्च

दवा देने केहैं कई जोखिम

परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि अफ्रीकी विशेषज्ञों ने भी ऐसी स्थिति की उम्मीद नहीं थी। रिपोर्ट में इन चीतों को दवा देने के संभावित जोखिमों के बारे में चिंताएं जताई गई हैं जिसमें चीतों को भगाना, पकड़ना और बाड़ों में वापस लाना शामिल है। इस तरह की कार्रवाइयों से तनाव और मौत का जोखिम हो सकता है, जिससे चीतों का उनके नए आवास में संतुलन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। बहुप्रतीक्षित ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत, कुल 20 चीतों को दो दलों में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कू नो राष्ट्रीय उद्यान (के एनपी) में लाया गया था। पहला दल पिछले साल सितंबर में और दूसरा दल इस वर्ष फरवरी में आया।

.