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Ashok Gehlot Birthday Special : इस तरह पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे अशोक गहलोत, इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया साल 1998 का चुनाव  

12:54 PM May 03, 2023 IST | Jyoti sharma
ashok gehlot birthday special   इस तरह पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे अशोक गहलोत  इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया साल 1998 का चुनाव  

Ashok Gehlot Birthday Special : साल 1998 का विधानसभा चुनाव राजस्थान की राजनीति के इतिहास में दर्ज हो चुका है।इस साल कई सियासी घटनाएं पहली बार हुई थीं लेकिन आज हम बात करेंगे अशोक गहलोत के पहली बार इसी साल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की। गहलोत की प्रदेश अध्यक्षता में लड़े गए इस चुनाव में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा को बेहद करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद से ही राजस्थान में एक बार कांग्रेस और भाजपा की सरकार आने का रिवाज भी शुरू हुआ था। लेकिन अशोक गहलोत के इस साल मुख्यमंत्री बनने का किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। आज अशोक गहलोत के जन्मदिन पर उस घटना को याद करना बेहद जरूरी हो जाता है कि किन दिलचस्प और हैरान कर देने वाली परिस्थितियों मे में वे राजस्थान के पहली बार मुख्यमंत्री बने थे।

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इस तरह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे Ashok Gehlot

साल 1993 में कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मदेरणा कांग्रेस के सीएम पद के दावेदार माने जाते थे। उस समय प्रदेश कांग्रेस में परसराम मदेरणा की तूती बोलती थी। इन्हीं की अगुवाई में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। परसराम मदेरणा को ही कांग्रेस का संभावित मुख्यमंत्री माना जाता था लेकिन राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का भी करियर अपने चरम पर आ रहा था उनके कार्यों को देखते हुए पार्टी में उनके नेतृत्व की मांग बढ़ने लगी। 1998 में वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे।

MLA बनने से पहले ही चुने गए विधायक दल के नेता 

कई लोगों को यह पता भी नहीं होगा कि जब 1998 में अशोक गहलोत पहली बार राजस्थान जैसे सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने तब वह विधायक ही नहीं थे। विधायक बनने से पहले ही अशोक गहलोत को कांग्रेस के विधायक दल का नेता चुन लिया गया और 1998 की जबरदस्त जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि मुख्यमंत्री के पद के दावेदार कहे जाने वाले परसराम मदेरणा की जगह अशोक गहलोत का नाम अचानक ही फाइनल किया गया था। कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले से कई नेता और जनता तक हैरान हो गई थी। कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने के लिए एक लाइन का प्रस्ताव भेजा था। जिसे परसराम मदेरणा ने पास कराया था।

इन दिग्गजों के बीच सीएम बने राजनीति के जादूगर

आपको बता दें कि राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत उस समय राज्य के मुख्यमंत्री बने, जिस दौर में परसराम मदेरणा, सोनाराम चौधरी, रामनिवास मिर्धा, बलराम जाखड़ जैसे दिग्गज नेताओं का प्रदेश की राजनीति में दबदबा माना जाता था। 1998 के विधानसभा चुनाव में वैसे तो कांग्रेस की कमान अशोक गहलोत के हाथों में थी। लेकिन उस वक्त परसराम मदेरणा राजस्थान में कांग्रेस के सबसे दिग्गज और ताकतवर नेता माने जाते थे। यहां तक कि पश्चिमी राजस्थान की सियासत का चेहरा भी परसराम मदेरणा ही थे। दरअसल परसराम मदेरणा जाट समुदाय से थे और यह तो सर्वविदित है कि राजस्थान की राजनीति में जाट समुदाय के नेताओं की तिगड़ी आज भी उतनी ही फेमस है। जितनी उस वक्त थी इनमें रामनिवास मिर्धा, परसराम मदेरणा और बलराम जाखड़ मुख्य नाम थे।

मदेरणा की जगह Ashok Gehlot बने सीएम 

1998 के विधानसभा चुनाव में वैसे तो भाजपा के सामने कांग्रेस ने किसी भी सीएम का चेहरा नहीं उतारा। फिर भी परसराम मदेरणा के राजनीतिक कद को देखते हुए उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार माना जा रहा था। कांग्रेस पार्टी ने 200 सीटों पर हुए विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को कड़ी शिकस्त देते हुए 153 सीटों पर अपना दबदबा कायम किया और भाजपा को मात्र 33 सीटों पर ही समेट दिया। इस चुनाव में जब कांग्रेस के सिर जीत का ताज सजा मुख्यमंत्री के चेहरे के लिए परसराम मदेरणा का नाम आगे आया लेकिन तभी दिल्ली से एक फोन परसराम मदेरणा के पास पहुंचा। जिसके बाद राजस्थान की राजनीति ही पूरी तरह बदल गई और परसराम मदेरणा ने अचानक सभी विधायकों की बैठक बुलाई और आलाकमान द्वारा भेजा गया एक लाइन का प्रस्ताव पास कराया।

खाली कराई गई थी जोधपुर की सरदारपुरा सीट

इस प्रस्ताव में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को मुख्यमंत्री बनाने और परसराम मदेरणा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने की बात कहीं गई थी। कांग्रेस हाईकमान के एक लाइन के प्रस्ताव को सभी विधायकों की सर्वसम्मति से पास करा दिया। इसके बाद विधायक बनने से पहले ही अशोक गहलोत को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। जिसके बाद अशोक गहलोत ने जोधपुर के सरदारपुरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। इसमें सबसे खास बात यह रही कि यह सीट पहले से ही मानसिंह देवड़ा के नाम पर थी। यानी मानसिंह देवड़ा इस सीट से विधायक थे। कांग्रेस ने मानसिंह देवड़ा से इस्तीफा दिलवाया और इस सीट को खाली कराया। जिसके बाद इस सीट से अशोक गहलोत विधायक चुने गए।

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