दलदली क्षेत्रों में होती है मखाने की खेती, इस राज्य में होता है सबसे अधिक उत्पादन
मखाने का उपयोग ड्राय फ्रूट्स के रूप में किया जाता है। इसकी खेती कमल के रूप में की जाती है, इसलिए इसे कमल का बीज भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम यूरेल फेरोक्स सलीब है। भारत की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है। भारत में सबसे अधिक इसकी खेती पूर्वी राज्यों में की जाती है। इसमें मैग्निशियम, कैल्शियम तथा प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। जो लोग ग्लूटेन फ्री खाना खाते हैं उनके लिए मखाना अच्छा स्रोत है। इसका उपयोग व्रत में फलाहार के रूप में किया जाता है। साथ ही स्नेक्स के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। असल में यह कमल के पौधे का ही हिस्सा होता है।
कमल के फूल की तरह खेती
मखाना की खेती कमल के फूल की तरह पानी में की जाती है। इसे झील, तालाब जैसे दलदली क्षेत्रों के शांत पानी में उगाया जाता है। इसलिए इसकी तुलना कमल से की जाती है। भारत के कई क्षेत्रों में इसे लावा के नाम से भी जानते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर मखाना एक जलीय पौधा है। इसमें 9.7 प्रतिशत प्रोटीन, 76 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट, 12.8 प्रतिशत नमी, 0.1 प्रतिशत वसा, 0.5 प्रतिशत खनिज लवण, 0.9 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं लौह पदार्थ पाया जाता है।
(Also Read- एक प्रकार का खनिज है चूना, सेहत के लिए भी फायदेमंद है यह पदार्थ)
इसके अलावा मखाना में औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेट तथा एंटी एंजिंग गुण पाए जाते हैं। इसमें फास्फोरस, विटामिन्स, कैलोरी व हेल्दी फेट होता है। मखाने का उपयोग खाद्य पदार्थ बनाने तथा पूजा-अर्चना में पंचमेवा के रूप में भी किया जाता है। इसके बीज को भूनकर मिठाई, नमकीन तथा खीर बनाने में काम में लिया जाता है।
90% उत्पादन भारत में
संंपूर्ण विश्व का 90 प्रतिशत मखाने का उत्पादन भारत में होता है। इसके अलावा कोरिया, बांग्लादेश, जापान, चीन और रूस में भी इसकी पैदावार की जाती है। भारत में सबसे अधिक मखाना बिहार में उगाया जाता है। पूरे देश में करीब 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना की खेती की जाती है। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक मखाना अकेले बिहार में उगाया जाता है।
यहां की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है। बिहार के मधुबनी, मिथिला, दरभंगा, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, कटिहार तथा पूर्णिया में सबसे अधिक मखाना उगाया जाता है। इसके अलावा उत्तरप्रदेश, आसाम, मेघालय तथा ओडिशा में भी छोटे पैमाने पर इसकी खेती की जाती है।
अनुसंधान केंद्र
मखाना शोध के लिए दरभंगा में 28 फरवरी 2002 को अनुसंधान केंद्र की स्थापना गई। यह दरभंगा के बासुदेवपुर में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र नाम से स्थित है। यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है। मखाने में भोज्य उत्पाद के विकास एवं अनुसंधान की प्रबल संभावनाएं है।
(Also Read- स्वाद के छह रसों से युक्त है चावल, इस राज्य में होता है सबसे अधिक उत्पादन)