इतिहास के झरोखे से: एक नेता जिसने साइकिल पर प्रचार कर साधन सम्पन्न नेताओं से जीते चुनाव
देशी-विदेशी पक्षियों के कलरव से गुंजित भरतपुर का विश्वविख्यात केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान- जिसे लोकभाषा में ‘घना’ कहा जाता है। इस उद्यान की बाहरी सीमा के सामन आगरा-भरतपुर जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 अवस्थित है। उद्यान के मुख्य द्वार के निकट राजमार्ग के दूसरे किनारे पर विश्वप्रिय शास्त्री पार्क बना हुआ है। शास्त्री जी भरतपुर के पहले जिला प्रमुख थे जिन्हें 2 अक्टूबर 1958 को नागौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा देश में पंचायती राज के उद्घाटन समारोह में मंच साझा करने का सम्मान मिला था।
कांग्रेस पार्टी की ऐसी राजनीतिक हस्ती शास्त्री जी के मुकाबले समाजवादी नेता पं. राम किशन ने साइकिल से चुनाव प्रचार कर चुनाव जीतने में सफलता हासिल की। वर्ष 1952 प्रथम विधानसभा चुनाव में आयु की सीमा तथा सोशलिस्ट पार्टी के पदाधिकारी के नाते वे चुनाव मैदान में नहीं उत्तर सके।
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प. रामकिशन के पास नहीं था कोई साधन
“वैर-भुसावर-बयाना, बाप से बेटा सयाना” यह कहावत भरतपुर जिले में प्रसिद्ध है। वर्ष 1957 में वैर विधानसभा क्षेत्र में नदबई बयाना का कुछ हिस्सा सम्मिलित था। दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में एक सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित थी। पूर्व राज परिवार के मानसिंह निर्दलीय तथा विश्वप्रिय शास्त्री कांग्रेस प्रत्याशी थे। सोशलिस्ट पार्टी के पं. राम किशन सामान्य सीट और नत्थासिंह रिजर्व सीट से चुनाव लड़ रहे थे। उनका चुनाव चिन्ह बड़ का पेड़ था। पंडित रामकिशन चुनाव मैदान में तो उतर गए लेकिन कोई साधन नहीं था।
सरदार बख्तावर सिंह ने उन्हें साइकिल दी जिसमें नत्था सिंह ने टायर डलवाया। दोनों चुनाव प्रचार पर निकलते, नत्थासिंह साइकिल चलाते और पंडितजी पीछे बैठते। उन दिनों मतदान दल एक-एक मतदान केन्द्र पर मतदान कराते थे, फिर अगले दिन दूसरे स्थान पर मतदान होता।
चुनाव से आठ दिन पहले नत्थासिंह का चुनाव चिन्ह बदल दिया गया। अपील पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। राजा मानसिंह चुनाव जीत गए। विश्वप्रिय शास्त्री दूसरे तथा पं. रामकिशन तीसरे स्थान पर रहे। अब आया वर्ष 1962 का विधानसभा चुनाव। इस बार मुकाबला शास्त्री जी और पंडित जी में था। पंडित जी फिर साइकिल से चुनाव प्रचार में जुटे थे और नोशलिस्ट पार्टी के प्रदेश पदाधिकारी होने के नाते अन्य प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में भी जाते। एक रोज वह छोकरवाड़ा बस से उतरे तो सामने विश्वप्रिय शास्त्री समर्थकों एवं सरपंचों के साथ दिखाई दिए।
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नाराज सरपंचों ने जिताया रामकिशन को चुनाव
शास्त्रीजी ने पूछा कि पंडितजी चुनाव नहीं लड़ रहे हो क्या, आप मैदान में दिखाई नहीं देते। पंडित जी का जवाब था कि मैं पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करके लौटा हूं और अब अपने क्षेत्र में जाऊंगा। शास्त्री जी ने एकांत में पंडित जी से पूछा कि आपके पास साधन नहीं है तब भी चुनाव जीतते हो। पंडितजी ने उन्हें राज की बात बताई। आप सरपंचों से घिरे रहते हैं जिनके रवैये से जनता नाराज रहती है।
बकौल पंडित जी गुस्सैल शास्त्री जी ने समर्थक सरपंचों को खरी खोटी सुनाई। इससे नाराज समर्थकों ने भीतर खाने पंडित रामकिशन को चुनाव जिताने में मदद की। वर्ष 1965 में निर्वाचित जिला प्रमुख पंडित जी 1979 तक इस पद पर रहे। वह 1972 में वैर से कांग्रेस प्रत्याशी उषा प्रकाश से पराजित हुए। बाद में वैर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया। जगन्नाथ पहाड़िया ने प्रतिनिधित्व किया।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार