होमइंडिया
राज्य | राजस्थानमध्यप्रदेशदिल्लीउत्तराखंडउत्तरप्रदेश
मनोरंजनटेक्नोलॉजीस्पोर्ट्स
बिज़नेस | पर्सनल फाइनेंसक्रिप्टोकरेंसीबिज़नेस आईडियाशेयर मार्केट
लाइफस्टाइलहेल्थकरियरवायरलधर्मदुनियाshorts

इतिहास के झरोखे से : ऐसा प्रत्याशी जिसके चुनावी पोस्टर के सामने अगरबत्तीजलाती थी जनता

पूर्व राजा मानसिंह के बड़े भाई बृजेन्द्र सिंह पूर्व महाराजा भरतपुर पहली बार खुद चुनाव मैदान में उतरे थे। चुनाव था 1967 का लोकसभा चुनाव। वर्ष 1952 में उनके अनुज गिर्राजधरण सिंह उर्फ बच्चूसिंह ने भरतपुर से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी बाबू राजबहादुर को हराया था।
10:58 AM Oct 13, 2023 IST | BHUP SINGH

पूर्व राजा मानसिंह के बड़े भाई बृजेन्द्र सिंह पूर्व महाराजा भरतपुर पहली बार खुद चुनाव मैदान में उतरे थे। चुनाव था 1967 का लोकसभा चुनाव। वर्ष 1952 में उनके अनुज गिर्राजधरण सिंह उर्फ बच्चूसिंह ने भरतपुर से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी बाबू राजबहादुर को हराया था। पेशे से वकील स्वतंत्रता सेनानी राजबहादुर को दौसा ससंदीय क्षेत्र उपचुनाव से लोकसभा में प्रवेश का अवसर मिला। तब कांग्रेस के रामकरण जोशी दौसा से लोकसभा और विधानसभा के लिए चुने गए। उन्होंने लोकसभा सीट छोड़ दी। बच्चूसिंह कुशल विमान चालक थे। वे भरतपुर के निकट मथुरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और पहली कर छोटे विमान से चुनावी पर्चे उड़ाए गए। उनके पुत्र अरुण सिंह ने डीग विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

यह खबर भी पढ़ें:-Kisangarhbas Vidhan Sabha: जिला घोषित करने का किसको फायदा! बीजेपी किस पर खेली दांव, क्या है

इधर वर 1967 में बदली राजनीतिक परिस्थितियों में बाबू राजबहादुर का पूर्व महाराजा बृजेन्द्र सिंह से मुकाबला था। इससे पहले के चुनावों में सवाई बृजेन्द्र सिंह खुद बाबू राजबहादुर का खुला समर्थन करते थे। उनका यह मानना था कि भरतपुर क्षेत्र के विकास में बाबू राजबहादुर अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए उन्होंने चुनाव में अपने भाई का विरोध करने से गुरेज नहीं किया। लेकिन अब सवाई बृजेन्द्र सिंह अपने राजनैतिक मित्र के खिलाफ चुनाव लड़ने को राजी हो गए। उनकी उम्मीदवारी से जनता की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव चिन्ह के साथ उनके फोटो के साथ छापे गए रंगीन कैलेण्डर घर-घर में लगाने की होड़‌ थी।

कई घरों में तो इन कैलेण्डरों के आगे अगरबती तक जलाई जाती थी। चुनाव सभाओं में भीड़ उमड़ पड़ती। बृजेन्द्र सिंह ब्रजभाषा में सक्षिंप्त वाक्य बोलकर हाथ जोड़ लेते और जनता निहाल हो जाती कि महाराज के दर्शन हो गए। मतदान के बाद मतगणना की बारी आ गई। वर्ष 1952 से चुनावी जीत दर्ज कर विधानसभा में प्रवेश करने वाले राजा मानसिंह ने मतगणना की बारीकी समझाते हुए महाराज साहब की जीत के प्रति आश्वस्त किया। यही नहीं उन्होंने मतदान के आधार पर विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में लीड तथा पीछे रहने के अनुमानित आंकड़े बताते हुए 80 से 85 हजार मतों के अंतर से जीत की बात कही। परिणाम सही निकला।

यह खबर भी पढ़ें:-अनुमति नहीं मिलने से थमे BJP के जन आकांक्षा रथ के पहिए, नेता पैदल ही चलकर टटोल रहे जनता का मन 

निर्दलीय सवाई बृजेन्द्रसिंह को 210966 तथा कांग्रेसी रामबहादुर को 115873 वोट मिले। जीत का अंतर 80093 रहा। संयोगवश 1971 के लोकसभा चुनाव में दोनों उम्मीदवारों का पुन: मुकाबला था। पूरे देश में इंदिरा हराओ गरीबी हटाओ का नारा चरम पर था। इस बार बृजेन्द्र सिंह कांग्रेस प्रत्याशी राजबहादुर से पराजित गए। चुनाव के दौरान राजबहादुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बृजेन्द्र सिंह के लोकसभा कार्यकाल की आलोचना की।

तब न्यूज एजेंसी समाचार भारती के संवाददाता के नाते इस लेखक ने सवाल दागा- आप तो भरतपुर ही नहीं भारत से बाहर चले गए, तब आप किस मुंह से चुनाव लड़ने आये हैं। ये तमतमाए, फिर सहज हुए। बोले- मुझे नेपाल राजदूत बनाकर भेजा गया था, वहां मैने देश सेवा की। फिर संयोग। दोनों नेताओं ने अपने जीवन के आखिरी चुनाव भरतपुर विधानसभा क्त्र षे से लड़े। बृजेन्द्र सिंह (जनसंघ) ने मध्य में त्यागपत्र दे दिया। दोनों के लिए यादगार रहे चुनाव।

गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार

Next Article