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आदिवासियों का जलियांवाला जहां 1500 भीलों को उतारा गया मौत के घाट, बर्बरता का जिंदा सबूत है मानगढ़ धाम

राहुल गांधी विश्व आदिवासी दिवस पर मानगढ़ धाम में एक जनसभा को संबोधित करेंगे.
08:55 AM Aug 09, 2023 IST | Avdhesh
आदिवासियों का जलियांवाला जहां 1500 भीलों को उतारा गया मौत के घाट  बर्बरता का जिंदा सबूत है मानगढ़ धाम

World Tribal Day Mangarh Dham: विश्व आदिवासी दिवस पर राजस्थान में बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में कांग्रेस 2023 के विधानसभा चुनावों का शंखनाद करने जा रही है जहां राहुल गांधी एक जनसभा को संबोधित करेंगे. चुनावों से पहले राहुल की बांसवाड़ा में जनसभा के जरिए कांग्रेस आदिवासी वोटबैंक को साधना चाहती है जहां राजस्थान से लेकर कांग्रेस का पूरा शीर्ष नेतृत्व मौजूद रहेगा. इधर कांग्रेस जिस जगह से चुनावी शंखनाद करने जा रही है उस जगह की अपनी ऐतिहासिक भूमिका है जहां 9 अगस्त को दुनिया भर में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है.

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आदिवासी समाज अपनी परंपरा, संस्कृति और लोककलाओं के लिए जाना जाता है. वहीं बांसवाड़ा का मानगढ़ धाम आदिवासियों की धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र है जहां से हजारों आदिवासिओं की शहादत का इतिहास जुड़ा है. मानगढ़ धाम आदिवासियों के शहादत का प्रमुख केंद्र होने के साथ ही राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के आदिवासियों की आस्था का भी बड़ा केंद्र है.

आदिवासी समाज की मानगढ़ धाम से कई भावनाएं जुड़ी हैं. मानगढ़ धाम के इतिहास के मुताबिक एक 800 मीटर ऊंची पहाड़ी पर 110 साल पहले 1913 में 1500 आदिवासियों को अंग्रेजों ने घेर कर गोलियों से भून दिया था. इसे आदिवासियों का जलियांवाला भी कहा जाता है.

गोविंद गुरु ने किया था आदिवासियों को एकजुट

मानगढ़ धाम में भील आदिवासियों को गोविंद गुरु ने एकजुट किया था जहां भीलों ने अदम्य साहस और एकता दिखाई थी. भीलों के नेता गोविंद गुरु ने आदिवासियों को एकजुट कर क्रांति का आगाज किया था जहां अंग्रेज लगातार आदिवासियों पर जुल्म कर रहे थे. गोविंद गुरू भीलों की बस्तियों में जाकर उन्हें मजबूत करते और सामाजिक सुधार का संदेश देते थे.

वहीं उन्होंने बच्चों की शिक्षा के स्कूल खोले और जुल्म नहीं सहने का आह्वान किया. दरअसल बांसवाड़ा से करीब 80 किमी दूरी पर मानगढ़ धाम है जहां यह इलाका चारों ओर पहाड़ी और जंगलों से घिरा हुआ है. वहीं इसी पहाड़ी पर एक धूणी और गोविंद गुरु की प्रतिमा लगी हुई है.

इतिहास के जानकारों के मुताबिक गोविंद गुरु का जन्म 20 दिसम्बर 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव के एक बंजारा परिवार में हुआ जहां 1903 में गोविंद गुरु ने संप सभा बनाई जहां भील समुदाय की भाषा में संप का अर्थ होता है भाईचारा, एकता और प्रेम और उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना शुरू किया. इस दौरान देश में अंग्रेजी हुकूमत थी ऐसे में गोविंद गुरू ने उनके खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजा दिया.

अंग्रेजों ने घेरकर बरसाई थी गोलियां

वहीं 17 नवम्बर 1913 को गोविंद गुरु का जन्म दिन मनाने के लिए आदिवासी मानगढ़ धाम के पहाड़ पर जुटे जहां इसी दिन अंग्रेजी फ़ौज ने पहाड़ी पर ही आदिवासियों को मार गिराने का पूरा प्लान तैयार किया. अंग्रेजों ने मानगढ़ धाम की पहाड़ी को घेर लिया और खच्चरों से मशीन गन और तोप पहुंचाए गए. वहीं अगली सुबह अंग्रेजी फौज के कर्नल शटन ने गोली मारने का आदेश दिया जिसके बाद जमकर गोलीबारी हुई और इस हमले में 1500 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया.

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