किसके हाथ लगेगा चांद का खजाना!, चंदामामा की दौलत… करेगी मालामाल
मॉस्को। भारत का चंद्रयान-3 और रूस का लूना-25 अगले हफ्ते चांद पर लैंडिंग कर सकते हैं। दोनों ही चांद के साउथ पोल पर उतरेंगे। यहां पर पानी के साथ ही साथ धूप भी है। यहां लैंडिंग बहुत ही मुश्किल है। चंद्रमा का यह वह हिस्सा है जो विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए हमेशा से रहस्य रहा है। इस ध्रुव पर पर कुछ हिस्सों में एकदम अंधेरा है तो कुछ पर रोशनी नजर आती है। स्थाई रूप से कुछ हिस्सों में छाया है। नासा का दावा है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कुछ गड्ढों पर तो अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। इन गड्ढों वाली जगह का तापमान -203 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।
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वहां की बर्फ है अंतरिक्ष का सोना
वैज्ञानिकों की मानें तो यह बर्फ दरअसल अंतरिक्ष का सोना है। इसका खनन पीने के पानी के लिए किया जा सकता है। इसे सांस लेने के लिए जरूरी ऑक्सीजन और रॉकेट फ्यूल के लिए भी इसे हाइड्रोजन में बांटा जा सकता है। इस ईंधन का प्रयोग उपग्रहों के लिए भी किया जा सकता है। चंद्रमा पर पहली रोबोटिक लैंडिंग को 60 साल हो चुके हैं, लेकिन इस पर लैंडिंग एक मुश्किल काम है। अभी तक जितने भी मिशन लॉन्च हुए हैं, उनका सक्से रेट बहुत कम है। आधेमिशन यहां पर लैडिंग में फेल हो गए हैं।
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लैंडिंग अत्यधिक चुनौतीपूर्ण
वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती से अलग चंद्रमा का वातावरण बहुत हल्का है यानी गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का सिर्फ छठेहिस्से के बराबर है। इस वजह से अंतरिक्ष यान की लैंडिंग के समय इसकी स्पीड को कम करने के लिए खिंचाव नहीं मिल पाता है। चंद्रमा पर किसी भी यान को उसकी लैंडिंग वाली जगह पर जाने के लिए कोई जीपीएस जैसी कोई चीज नहीं है। इन कमियों की भरपाई अंतरिक्ष यात्रियों को 2,39,000 मील दूर से करनी पड़ती है। इस वजह से भी दक्षिणी ध्रुव पर उतरना काफी चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है।