Uttarkashi Tunnel : 21 से अधिक एजेंसियां…408 घंटे काम, रैट होल माइनिंग तकनीक श्रमिकों के लिए बनी संजीवनी
Uttarkashi Tunnel : उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग में पिछले 16 दिन से फंसे सभी 41 श्रमिकों को मंगलवार को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। अधिकारियों ने बताया कि श्रमिकों को एक-एक करके 800 मिमी के उन पाइपों के जरिए बाहर निकाला गया, जिन्हें मलबे में ड्रिल करके अंदर डालकर एक रास्ता बनाया गया था। सिल्क्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को बचाने के लिए केंद्र सरकार में एक ‘वॉर रूम’ तैयार किया गया था, जिसने 408 घंटे तक लगातार काम किया है।
इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार को मिलाकर 21 से अधिक एजेंसियां, रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी रहीं। ये सभी एजेंसियां, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ मिलकर त्वरित गति से जरूरी निर्णय लेती रहीं। बात चाहे अमेरिकी ड्रिल मशीन ‘ऑगर’ को सुरंग में उतारने की हो या विपरित परिस्थितियों में खुदाई के लिए ‘रैट माइनर्स’ की मदद लेना, ऐसे किसी भी मामले को हरी झंडी, महज साठ मिनट से भी कम समय में दे दी जाती थी। इन एजेंसियों के बीच तालमेल एक उदाहरण बन गया। इसके बाद 41 मजदूरों को बचाने की जंग शुरू हो गई।
पीएम मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और कैबिनेट सेक्रेटरी राजीव गौबा, गृह सचिव अजय भल्ला, एनडीएमए के सदस्य सैयद अता हसनैन, एनडीआरएफ चीफ और उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव समेत दर्जनभर से अधिक विभागों के प्रमुखों ने सुरंग से श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने की योजना बनाई। जब अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ अर्नाल्ड डिक्स को बुलाने की बात हुई, तो इस प्रपोजल को चंद मिनट में मंजूरी दे दी गई। अर्नाल्ड डिक्स के साथ छह अन्य टनल एक्सपर्ट भी मौके पर पहुंचे थे।
24 घंटे से भी कम समय में कर दी 10 मीटर की खुदाई
‘रैट होल माइनिंग’ तकनीक अवैध हो सकती है, लेकिन सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने से उसमें फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए जारी बचाव अभियान में ‘रैट-होल’ खनिकों की प्रतिभा और अनुभव का इस्तेमाल किया गया। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने कहा कि ‘रैट-होल’ खनिकों ने 24 घंटे से भी कम समय में 10 मीटर की खुदाई करके अभूतपूर्व काम किया है। उन्होंने यहां एक प्रेसवार्ता में कहा, ‘‘रैट-होल खनन अवैध हो सकता है, लेकिन ‘रैट होल’ खनिकों की प्रतिभा, अनुभव और क्षमता का उपयोग किया गया है।’’
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्गप्राधिकरण के सदस्य विशाल चौहान ने बताया कि एनजीटी ने उस तकनीक से कोयला खनन, सुरंग में जाकर कोयला निकालने पर रोक लगा दी है, लेकिन इस तकनीक का उपयोग अब भी निर्माण स्थलों पर किया जाता है। उन्होंने कहा, यह एक विशेष स्थिति है, यह जीवन बचाने वाली स्थिति है...वे तकनीशियन हमारी मदद कर रहे हैं।
12 विशेषज्ञों को बुलाया था
उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में, मुख्य संरचना के ढह गए हिस्से में क्षैतिज रूप से ‘रैटहोल’ खनन तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और नवयुग इंजीनियर्सप्राइवेट लिमिटेड द्वारा 12 विशेषज्ञों को बुलाया गया। वे दिल्ली, झांसी और देश के अन्य हिस्सों से आए हैं।
क्या है रैट होल तकनीक?
‘रैट-होल’ खनन में श्रमिकों के प्रवेश तथा कोयला निकालने के लिए आमतौर पर 3-4 फुट ऊंची संकीर्ण सुरंगों की खुदाई की जाती है। क्षैतिज सुरंगों को अक्सर “चूहे का बिल” कहा जाता है, क्योंकि प्रत्येक सुरंग लगभग एक व्यक्ति के लिए उपयुक्त होती है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में मेघालय में ‘रैट-होल’ खनन तकनीक का उपयोग करके कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
ये खबर भी पढ़ें:-देवदूतों ने कर दिखाया…लौटी जिंदगी, 16 दिन से सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को पाइप के जरिये बचाया