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बारह ज्योर्तिलिंग: महाकालेश्वर मंदिर का शिवलिंग है दक्षिणमुखी, प्रात:काल होती है भस्म आरती

05:57 PM Feb 10, 2023 IST | Mukesh Kumar

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर,बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है। महाकाल मंदिर का विशद वर्णन पुराणों में मिलता है। उज्जैन एक खूबसूरत शहर है। इसे सात मोक्ष प्रदान करने वाले शहरों में से एक माना जाता है। महाकालेश्वर को प्रसिद्ध कवि कालीदास सहित कई संस्कृत कवियों ने अपनी काव्यात्मक शैली से समृद्ध किया है।महाकाल को उज्जैन का राजा कहा जाता है।उज्जैन को भारतीय समय की गणना का केंद्र बिंदु माना जाता है। समय के देवता अपने समस्त वैभव के साथ उज्जैन पर शासन करते रहे हैं और कर रहे हैं।यहां प्रात:काल भस्म आरती होती है।इसमें महिलाओं को साफ और सूती साड़ी पहन कर ,घूंघट निकालकर ही आरती में शामिल होने की अनुमति होती है। इसका कारण यह दिया गया कि शिव निराकार रुप में होते हैं। इसलिए महिलाओं को भोलेनाथ के इस रुप के दर्शन की अनुमति नहीं होती है।

नाग-पंचमी पर दर्शन होते हैं नागचंद्रेश्वर के दर्शन
मंदिर में महाकाल की मूर्ति दक्षिणामुखी है। यह विशेषता इस मंदिर को बारह ज्योर्तिलिंगों से अलग स्वरुप में प्रस्तुत करती है।महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भ गृह में ओंमकारेश्वर शिव की मूर्ति है। गर्भ गृह के पश्चिम ,उत्तर और पूर्व में गणेश ,पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की मूर्ति है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नाग पंचमी के दिन ही श्रद्धालुओं को दर्शन देती है। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के पास विशाल मेला लगता है।
महाकाल का उद्भव
अवंती नगरी ,आज का उज्जैन में एक ज्ञानी ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम वेदप्रिय था और वह शिव के बड़े भक्त थे ।रोजाना वेद अध्ययन के साथ शिव की पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते थे।रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम का राक्षस रहता था। दूषण को ब्रह्माजी से वरदान मिला हुआ था। इसी कारण वह धर्म-कर्म में लीन ब्राह्मणों को परेशान करने लगा। उन्हें कर्मकांड करने से मना करने लगा। राक्षस की हरकतों से दुखी होकर ब्रा्ह्मणों ने भगवान शिव से प्रार्थना की । भगवान महादेव ने इस पर राक्षस को पहले चेतावनी दी ।लेकिन वह अपनी हरकतों से और परेशान करने लगा।राक्षसों ने अवंती नगरी पर आक्रमण कर दिया। इस पर भोलेनाथ धरती फाड़ कर महाकाल के रुप में प्रकट हुए। राक्षस की हरकतों से नाराज शिव ने एक ही हुंकार से राक्षस को भस्म कर दिया।उसके बाद महादेव ने राक्षस की भस्म को अपने शरीर पर लपेट लिया था ।नगरवासियों ने भगवान से वहीं रह जाने की विनती की। इस पर भोले बाबा ने भक्तों की बात मान ली और वहीं महाकालेश्वर के रुप में स्थापित हो गये।

मंदिर का इतिहास
शिव पुराण के अनुसार महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर काल में श्री कृष्ण के पालनहार नंद बाबा से पूर्व की आठवीं पीढी में की गई थी। ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठा एक गोप बालक ने की थी।
इतिहास के अनुसार उज्जैन पर सन् 1107 से 1528 ईस्वी तक यवनों का राज था।4500 वर्षों से अवंति राज्य में स्थापित सनातनियों की धार्मिक परंपराओं को यवनों के शासन काल में नष्ट कर दिया गया था। लेकिन 1690 ईस्वी में मराठों ने मालवा क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर1728 को मराठा शासकों ने मालवा पर अधिकार कर लिया।इसके बाद उज्जैन का गौरव पुन: लौटा । उज्जैन 1731 से 1809 ईस्वी तक मालवा की राजधानी रहा। मराठों के शासन के दौरान महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ और ज्योर्तिलिंग की पुर्नप्रतिष्ठा हुई। इसके साथ ही सिंहस्थ पर्व स्नान की परंपरा शुरु हुई। राजा भोज ने भी इस मंदिर का विस्तार कराया।
कोटितीर्थ में 500 साल तक रहे महाकाल
महाकाल का मंदिर एक परकोटे में स्थित है।गर्भगृह तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक ऊपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंमकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर से लगा एक छोटा सा जलस्त्रोत है ,जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शासक इल्तुत्मिश ने जब इस मंदिर को नष्ट करवाया था ,तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिंकवा दिया था। यहां यह शिवलिंग 500 सालों तक रहा था। शिवलिंग की बाद में पुनर्प्रतिष्ठा की गई थी।
कैसे जाएं
उज्जैन देश के सभी शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है।उज्जैन में कोई हवाईअड्डा नहीं है। नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर में है,जो 58 किमी दूर है। एयरपोर्ट के बाहर से टैक्सी या बस से उज्जैन जाया जा सकता है। इसमें एक -सवा घंटा लगता है।

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