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अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जयंती आज, किताब बेचकर खरीदे थे हथियार

12:42 PM Jun 11, 2025 IST | Ashish bhardwaj

आज अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जयंती है। इनका जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के मोहल्ला खिरनीबाग में हुआ था। जिस दिन इनका जन्म हुआ, उस दिन निर्जला एकादशी थी। जबकि 'बिस्मिल' की शहादत के दिन सफला एकादशी थी। इनको 30 साल की उम्र में अंग्रेजी हूकुमत ने 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर की जेल में फांसी पर लटका दिया था। 'बिस्मिल' महान स्वतंत्रता सेनानी, योद्धा, वीर, शायर, कवि और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी सुनाई और पढ़ाई जाती है। इनके रोम-रोम में वीरता बसी थी। इस बात की जानकारी उनके शायरी और आत्मकथा से मिलती है। जब उन्हें फांसी पर लटकाया जा रहा था, उस समय उन्होंने यह शेर गुनगुनाया था।

'अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,

एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है!'

किताब बेचकर खरीदे हथियार
बिस्मिल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने कुल 11 पुस्तकें लिखी थीं। वे इन पुस्तकों को स्टॉल लगाकर खुद भी बेचते थे। उनकी पुस्तकों में स्वाधीनता का अंश होता था। यही कारण है कि उनकी पुस्तकों को लोग ज्यादा पसंद करते थे। बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि उन्होंने क्रांतिकारी बनने के बाद पहला तमंचा अपनी किताब की बिक्री से मिली राशि से ही खरीदा था। बिस्मिल के जीवन को नई पीढ़ी तक ले जाने की कोशिशों में जुटे गुरुकृपा संस्थान के बृजेश त्रिपाठी कहते हैं, बिस्मिल एक रचनाकार, कवि और साहित्यकार भी थे।

वे अपने जीवन में गुरु भाई परमानंद और दादी मां के स्वाभिमान से बहुत प्रेरित थे। इसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है। बृजेश कहते हैं, उनकी भावनाओं में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी। वे बहुत पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन साहित्य के मर्मज्ञ थे।

कोठरी संख्या सात में रहते थे बिस्मिल
बिस्मिल को छह अप्रैल 1927 को काकोरी कांड का अभियुक्त मानते हुए सजा सुनाई गई। वे पहले लखनऊ जेल में रखे गए। इसके बाद उन्हें अंग्रेजों ने 10 अगस्त को 1927 को गोरखपुर जेल भेज दिया। यहां वे कोठरी संख्या सात में रहते थे। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष के नाम से जाना जाता है। यही उन्हें 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई थी।

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