बिना पासपोर्ट के कर सकते हैं कहीं भी यात्रा, दुनिया में सिर्फ इन 3 लोगों को हैं परमिशन
नई दिल्ली। जी-20 में शामिल दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत करने के लिए राजधानी दिल्ली पूरी तरह तैयार है। दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को होने वाले G-20 समिट के लिए मंच सज चुका है। इसके साथ ही दुनिया भर से विदेशी मेहमानों का आने का सिलसिला शुरू हो गया हैं।
G-20 शिखर सम्मेलन के लिए दुनियाभर से भारत पहुंच रहे सभी विदेशी मेहमान सभी वीवीआईपी मेहमान हैं। इन सभी मेहमानों के लिए खास फोर्स तैनात है। इसका काम यही होगा कि किसी भी मेहमान को किसी भी तरह की परेशानी न हो। विदेशी मेहमानों को एक तरफ तो इतने इंतजाम हैं।
वहीं दूसरी ओर एक नियम से हर गेस्ट, यहां तक कि राष्ट्राध्यक्षों तक को गुजरना होगा और ये नियम है पासपोर्ट चेक करवाना। भले ही सबके पास डिप्लोमेटिक पासपोर्ट है, जिसकी कीमत कुछ और ही है, लेकिन पासपोर्ट जांच बड़े नेताओं के लिए भी जरूरी है।
क्या है डिप्लोमेटिक पासपोर्ट…
बता दें कि कुछ महीनों पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अपना डिप्लोमेटिक पासपोर्ट सरेंडर करना पड़ा था। इसके बाद वे सामान्य पासपोर्ट के साथ अमेरिका यात्रा पर गए। बता दें कि डिप्लोमेटिक यानी राजनयिक पासपोर्ट होता है, जो नेताओं और कुछ ही अधिकारियों को जारी होते हैं। जो देश के प्रतिनिधि के तौर पर बाहर जाते हैं। इसका रंग कत्थई होता है, और एक्सपायर होने का समय 5 साल होता है। वहीं सामान्य पासपोर्ट में एक्सपायर का समय 10 साल होता है।
क्या हैं इसके फायदे…
इस पासपोर्टधारी को कई इंटरनेशनल सुविधाएं मिलती हैं, जैसे होस्ट देश में उनकी गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। किसी भी देश में कोई भी खतरा आने पर सबसे पहले उन्हें ही सुरक्षित देश से निकाला जाता है। इसमें उन्हें विदेशों में एम्बेंसी से लेकर यात्रा के दौरान कई सुविधाएं मिलती हैं। वीजा की जरूरत नहीं होती। इसके अलावा इमिग्रेशन या किसी भी औपचारिकता के लिए लाइन में खड़ा नहीं होना होता।
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कितना अलग है अमेरिकी राष्ट्रपति का पासपोर्ट
अमेरिकी राष्ट्रपति, उनके परिवार और हाई रैंकिंग अधिकारियों को ब्लैक रंग का पासपोर्ट जारी होता है। इस पासपोर्ट के लिए उन्हें कोई फीस नहीं देनी पड़ती है। वहीं सामान्य पासपोर्ट नीले रंग का होता है। इसके अलावा भी यूएस में 3 अलग रंगों के पासपोर्ट होते हैं, जिनका मकसद अलग-अलग होता है।
क्या राष्ट्रपति खुद अपना पासपोर्ट और कागजात संभालेंगे
ये आम लोगों की तरह नहीं है कि हम एक बैग में अपना पासपोर्ट और जरूरी कागज लेकर चलें। इसके लिए राष्ट्रपति के पास अलग पर्सनल होते हैं, जिनका काम जरूरी दस्तावेजों को प्रेसिडेंट के साथ लेकर जाना है। जैसे ही बाइडेन फ्लाइट से उतरेंगे, यही लोग उनका पासपोर्ट चेक करवाएंगे, जबकि बाइडन खुद सुरक्षा इंतजामों में चले जाएंगे। वापसी के दौरान भी यही प्रोसेस होगी। भले ही ये महज औपचारिकता है, लेकिन जांच पूरी होती है।
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तीन ही लोगों को मिली है ये खास सुविधा…
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पासपोर्ट सिस्टम शुरू हुआ। यानी अब इसे 100 से ज्यादा साल बीते। इसका मकसद देशों में अवैध घुसपैठ को रोकना है। पासपोर्ट सिस्टम लागू होने के बाद काफी हद तक इसमें कामयाबी भी मिली। अब एक से दूसरे देश जाने के लिए बड़े से बड़ा लीडर भी अपने साथ ये कागजात रखता है।
बता दें कि दुनिया में 3 लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें पासपोर्ट या किसी भी तरह के पहचान पत्र की जरूरत नहीं। बिना पासपोर्ट के ये लोग न केवल दूसरे देशों में एंट्री पाते हैं, बल्कि खूब मेहमान-नवाजी भी होती है।
इनमें एक है ब्रिटिश किंग चार्ल्स…
किंग से पहले ये अधिकार ब्रिटिश क्वीन एलिजाबेथ के पास था। क्वीन के निधन के तुरंत बाद ब्रिटेन की फॉरेन मिनिस्ट्री ने सभी देशों को संदेश भेजा कि अब चार्ल्स राजा हैं, लिहाजा उन्हें डिप्लोमेटिक इम्युनिटी मिले। ये एक तरह का संदेश था कि जैसे क्वीन को पासपोर्ट दिखाने की जरूरत नहीं थी, वैसा ही किंग के साथ भी हो।
किंग चार्ल्स के अलावा शाही परिवार के पास राजनयिक पासपोर्ट है। किसी भी विदेश यात्रा के दौरान उन्हें ये अपने साथ ले जाना भी होता है। हालांकि डिप्लोमेटिक इम्युनिटी इन सबको मिली हुई है, यानी जांच नहीं होती, बल्कि सुविधाएं मिलती हैं।
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क्यों पासपोर्ट की जरूरत नहीं…
ब्रिटेन में सभी पासपोर्ट, चाहे वो रेगुलर हों, या डिप्लोमेटिक। सब सम्राट के नाम पर जारी होते हैं। यानी पूरे देश की पहचान यही किंग या क्वीन हैं। यही वजह है कि खुद किंग को पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती। दूसरा, जब पासपोर्ट सिस्टम शुरू हुआ, इस देश ने कई देशों पर कब्जा किया हुआ था। ऐसे में मान सकते हैं कि ये लिहाज अब तक चला आ रहा है।
जापान के राजा-रानी को भी हैं विशेषाधिकार…
ब्रिटेन की तरह जापान में भी राजशाही है। इस देश की पहचान उसके राजा-रानी से है। जापान के सम्राट नारोहितो और क्वीन मसाको ओवादा हैं। साल 2019 में उन्हें ये पद मिला। जापान के साथ भी लगभग ब्रिटेन जैसा नियम है। 70 के दशक में वहां की संसद ने तय किया कि वो अपने राजा-रानी को जांच की प्रक्रिया से नहीं गुजरने देंगे।
जिसके बाद से ही यही नियम चला आ रहा है। हर बार गद्दी पर नए सम्राट के आने के साथ जापान की फॉरेन मिनिस्ट्री बाकी देशों को औपचारिक चिट्ठी भेजती है, जिसमें ये बात होती है। इसके अलावा दोनों ही देशों के सचिवालय अपने राजाओं की विदेश यात्रा से पहले संबंधित देश की पहले से सूचित कर देता है। इससे आसानी हो जाती है।