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2500 साल पुराना है ‘खिचड़ी’ का इतिहास, विदेशी यात्रियों ने भी किया इसका उल्लेख 

01:49 PM Jan 30, 2023 IST | Supriya Sarkaar

भारत में कई तरह के व्यंजन प्रचलित है। जिस तरह दक्षिण भारत में इडली, डोसा व चावल खाया जाता है उसी तरह उत्तर भारत का पंसदीदा भोजन खिचड़ी कहलाता है। यह भारत के उत्तरी राज्यों का एक लोकप्रिय भारतीय व्यंजन है। जिसे दाल तथा चावल को एक साथ उबाल कर बनाया जाता है। सेहत के लिए इसे सबसे फायदेमंद भोजन माना जाता है।

नियमित रूप से खिचड़ी के सेवन से वात, पित्त और कफ दोष दूर होते हैं। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होने के कारण इसलिए चिकित्सक भी इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। इस व्यंजन के बारे में कई विदेशी यात्रियों ने अपनी रचनाओ में उल्लेख किया है। 

खिचड़ी का इतिहास

खिचड़ी का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। भारत में इसका प्रचलन करीब 2500 वर्षों से हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भारत मुगलों के अधीन था तब खिचड़ी व्यंजन प्रमुखता से लोगों के बीच आया। यह शब्द संस्कृत भाषा के ‘खिच्छा’ शब्द से आया है। इसका अर्थ होता है चावल और फलियों द्वारा बनाया गया व्यंजन। आमतौर पर खिचड़ी चावल और दाल से बनाई जाती है, लेकिन अब इसमें कुछ संब्जियों को भी मिला दिया जाता है।

हिंदू संस्कृति में बड़े हो रहे बच्चे को सबसे पहले हल्का भोजन दिया जाता है। इनमें सुजी का हलवा तथा खिचड़ी भी शामिल है। वजन कम करने में भी खिचड़ी कारगर साबित होती है। मधुमेह के मरीजों के लिए यह फायदेमंद साबित होती है। इसके अलावा यह शरीर को डिटॉक्स करने का काम करती है। 

इसके बिना अधूरा यह पर्व 

मकर संक्रान्ति के अवसर पर उत्तरी भारत के लोग इसे खासतौर पर बनाते हैं। माना जाता है कि यदि मकर संक्रान्ति के पर्व पर खिचड़ी नहीं बनाई गई तो त्योहार अधूरा रह जाता है। इसलिए मकर संक्रान्ति के पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यूं तो लोगों की मानसिकता इस प्रकार बन गई है कि इसे रोगियों के लिये विशेष रूप से बनाया जाता है। जबकि यह स्वास्थ्यवर्धक भोजन माना जाता है। इससे पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। कुछ लोग नाश्ते के रूप में भी इसका सेवन करते हैं। इसमें विटामिन, फाइबर तथा पोटेशियम जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

अबुल फजल ने भी किया इसका जिक्र 

खिचड़ी का उल्लेख कई प्राचीन दस्तावेजों में मिलता है। वर्षों पहले भारत में आए कुछ विदेशी यात्रियों ने भी अपनी रचनाओं में खिचड़ी के बारे में बताया है। 14वीं शताब्दी में मोरक्को यात्री इब्न बतूता, 15वीं शताब्दी में रूसी यात्री अफानासी निकितिन तथा 16वीं शताब्दी में अबुल फजल ने अपनी रचनाओं में इसका जिक्र किया है।

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