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434 साल पहले बना था स्वर्ण मंदिर, गुरु अर्जुन देव जी ने खुद तैयार करवाया था इसका नक्शा   

01:58 PM Jan 14, 2023 IST | Supriya Sarkaar

भारत में हिंदू धर्म के कई मंदिर है। कुछ द्रविड़ शैली में बने हैं तो कुछ नागर व केरल शैली में… लेकिन भारत में एक मंदिर ऐसा भी है जो सिख धर्म का पवित्र स्थान है। इस मंदिर का नाम है स्वर्ण मंदिर, जिसे गोल्डन टेम्पल नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था। 400 साल पुराना यह मंदिर शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। यह भारत का सबसे बड़ा गुरुद्वारा भी है। 

इसकी नक्काशी और सुंदरता को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इसके चारों ओर चार दिशाओं में दरवाजे बने हुए हैं। यह एक ऐसा स्थान है जहां सभी धर्म के लोग आ सकते हैं। पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित इस गुरुद्वारे में सोने की परत चढ़ी हुई है। गुरुद्वारे में सुबह से शाम तक गुंजने वाली गुरबाणी श्रद्धालुओं को मन की शांति पहुंचाती है। इस मंदिर के परिसर में पत्थर का एक स्मारक बना हुआ है जो कि जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगाया गया है।

सोने का मंदिर 

यह मंदिर अमृतसर शहर के बीचों बीच स्थित है। इसे श्री हरिमन्दिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। यह सिख धर्म का सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है। यहां देश-विदेश से लोग माथा टेकने आते हैं। इसे दरबार साहिब व स्वर्ण मन्दिर भी कहा जाता है। इसके चारों ओर पूरा अमृतसर शहर बसा हुआ है। जहां हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर के बीच में एक मानव निर्मित सरोवर बना हुआ है। जिसे अमृत सरोवर के नाम से जाना जाता है। 

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इसका निर्माण गुरु राम दास ने खुद अपने हाथों से किया था। यूं तो यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है, लेकिन गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है। यही कारण है कि इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। गुरूद्वारे की साफ-सफाई से लेकर खाने-पीने की व्यवस्था करने तक सेवादार 24 घंटे अपनी सेवा में तैनात रहते हैं।

इतिहास

इस मंदिर का इतिहास करीब 400 साल पुराना है। इसका निर्माण सिख धर्म के चौथे गुरू रामदास ने करवाया था। कुछ इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर को कई बार ध्वस्त किया जा चुका है और तोड़ने की कोशिश की गई है। लेकिन हर बार हिन्दूओं और सिक्ख धर्म के लोगों ने इसे दोबारा बनवा दिया। यह मंदिर शुरुआत से भक्ति और आस्था का केंद्र रहा है। 17वीं शताब्दी में महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया ने इसे दोबारा बनवाया था। 19 वीं शताब्दी में अफगा़न हमलावरों ने एक बार फिर इस पर आक्रमण किया था। इसके बाद महाराणा रणजीत सिंह ने इसका पुन: निर्माण करवाया। इसी समय इसे सोने की परत से सजाया गया था। 

यहां लगता है सबसे बड़ा लंगर

इस गुरुद्वारे में देश का सबसे बड़ा लंगर लगता है। यहां देश के किसी भी राज्यों से आए श्रद्धालुओं के लिए भोजन की पूरी व्यवस्था होती है। यह देश का पहला ऐसा लंगर है जो 24 घंटे खुला रहता है। इसमें जगह-जगह पर कई सेवादार लगे होते हैं, जो दिन-रात अपनी सेवा देते हैं।

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