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जेएलएफ में लोकतंत्र पर चर्चा में बोले शशि थरूर, केंद्र सरकार ने उठाए कई तानाशाहीपूर्ण कदम

09:16 AM Jan 21, 2023 IST | Supriya Sarkaar

जयपुर। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शुक्रवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में आरोप लगाया कि मौजूदा केन्द्र सरकार संविधान की लोकतांत्रिक भावना को नेस्तनाबूद करने में सफल हो गई है। तिरुअनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कहा कि सरकार ने आपातकाल की घोषणा किए बिना ही बहुत से तानाशाहीपूर्ण कदम उठाए हैं। 

आप इसे अघोषित आपातकाल कह सकते हैं। उन्होंने (सरकार) कानून और संविधान की आड़ लेकर ये सब किया है। ‘गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम’ यूएपीए को जिस तरह कड़े कानून में बदल दिया गया है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि कुछ मामलों में लोगों को बिना आरोपों और बिना जमानत के दो-दो साल तक जेलों में ठूंसा जा रहा है। सिद्दिक कप्पन का मामला ही देख लीजिए।

बहुमत के कारण विधेयक जस के तस पास

थरूर ने कहा कि केंद्र में सत्तासीन भाजपा की सरकार संसद को एक नोटिस बोर्ड और रबर स्टैम्प में बदलने में कामयाब हो गई है। यहां ‘सतत लोकतंत्र : लोकतंत्र का पोषण’ विषय पर आयोजित सत्र में थरूर ने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं इस बारे में सवाल उठाती हैं कि क्या अलोकतांत्रिक तरीके से हमारे संविधान को इतनी आसानी से विकृत किया जा सकता है। सरकार के लिए संसद एक नोटिस बोर्ड है, जहां वह जो करना चाहती है, उसकी घोषणा कर देती है और यह रबर स्टैम्प बन गई है, क्योंकि उनके पास जो जबरदस्त बहुमत है, वह बड़े ही आज्ञाकारी तरीके से कैबिनेट से प्राप्त होने वाले विधेयक को जस का तस पारित कर देता है।

नेहरू के जमाने में सत्तारूढ़ सांसद भी देते थे चुनौती

जेएलएफ के 16वें संस्करण में, सरकार को जवाबदेह ठहराने की संसद की क्षमता के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए थरूर ने कहा कि नेहरू के जमाने में हमारे पास एक संसद थी, जिसमें सत्तारूढ़ दल के सदस्य भी अपने प्रधानमंत्री को चुनौती दे सकते थे। वित्त मंत्री को पिछली कतार में बैठने वालों द्वारा उजागर किए गए एक घोटाले पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था और हमने देखा कि 1962 में चीन से युद्ध के दौरान भी प्रधानमंत्री को संसद में जवाबदेह ठहराया गया था।

EC बन गया था अभेद्य संस्थान

थरूर ने यह भी कहा कि शुरुआती सात दशकों में आपातकाल को छोड़कर देश में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हुई हैं। उन्होंने कहा कि आपने देखा कि लोकतांत्रिक संस्थानों ने अधिक शक्तियां हासिल कीं। चुनाव आयोग को देखें। आपने एक ऐसे आयोग को देखा है, जिसके पास पहले के पदधारियों के मुकाबले कहीं अधिक औपचारिक अधिकार थे और वह वास्तव में राजनीतिक दलों और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने वाला एक अभेद्य संस्थान बन गया था।

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