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Sharad Purnima 2023 : शरद पूर्णिमा आज, जानिए खीर का महत्व और पूजा-विधि और शुभ-मुहूर्त

12:25 PM Oct 28, 2023 IST | Mukesh Kumar

Sharad Purnima 2023 : यह बात हम सभी जातने हैं कि शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में खास महत्व है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शरद पूर्णिमा को कौमुदी, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा आदि नामों से भी जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती पर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चंद्रमा, मां लक्ष्मी-भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसी वजह से धन प्राप्ति के लिए भी यह तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण और मां लक्ष्मी और सोलह कलाओं वाले चंद्रमा की उपासना से अलग-अगल वरदान प्राप्त किए जाते हैं। इस तिथी को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है। कहा जाता है कि इस दिन चांदनी सबसे चमकीली होती है। इस दिन चांद की चांदनी से अमृत वर्षा होने की मान्यता के चलते भक्तगन खीर तैयार करते हैं और इसे चंद्रमा की रोशनी में रख देते हैं। अगले दिन खीर के प्रसाद के रूप में सभी को बांटा जाता है। इसबार शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023 यानी आज के दिन मनाई जा रही है।

जानें शरद पूर्णिमा तिथि और शुभ मुहूर्त

इस बार शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023 यानी आज है। पूर्णिमा तिथि अबकी बार 28 अक्टूबर यानी सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर शुरु हो चुकी है और तिथि का समापन 29 अक्टूबर यानी दोपहर 2 बजकर 7 मिनट पर होगी। इस तिथि पर कई शुभ योग बन रहे है, जैसे- गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, शश योग और सिद्धि योग। जिसकी वजह से शदर पूर्णिमा बहुत खास मानी जा रही है।

जानें शरद पूर्णिमा के दिन पूजा विधि
इस खास दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सभी देवी देवताओं की पूजा करें और वस्त्र, अक्षत, आसन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, सुपारी वे दखिणा आदि अर्पित करने के बाद पूजा करनी चाहिए। दूध की खीर में घी मिलाकर अर्धरात्रि के वक्त भगवान को भोग लगाना चाहिए। रात के वक्त चंद्रमा के अदय होने के बाद चंद्र देव की पूजा अर्चना करें और को नैवेद्य अर्पित करें। रात में खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखना चाहिए और अगले दिन सुबह प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए।

शरद पूर्णिमा की कहानी

एक साहूकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनों पुत्रियाँ पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी परंतु छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान के जन्म होते ही मर जाती थी। उसने पण्डितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान का जन्म होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा विधिपूर्वक व्रत करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

उसने पण्डितों के परामर्श पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लड़का हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लड़के को पीढे पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बड़ी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। बड़ी बहन बोली- तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली, यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। फिर नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

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