1755 में हुआ सिलाई मशीन का आविष्कार, लकड़ी से लोहे की मशीन का ऐसा था सफर
मानव जीवन को चलाने के लिए कई प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। कहीं आने-जाने के लिए यातायात के साधन की तो खाना बनाने के लिए गैस-चुल्हे की, हवा के लिए पंखे-कूलर की तो बातचीत करने के लिए टेलीफोन की आवश्यकता होती है। उसी तरह अगर कोई कपड़ा फट जाए या नया पौषाक बनवाना हो तो सिलाई मशीन को काम में लिया जाता है। सिलाई मशीन से तो हर कोई भलि-भांति परिचित है। प्रत्येक घर में इसका उपयोग किया जाता है।
बात करें इसके इतिहास की तो शायद ही कोई जानता होगा कि इसके आविष्कारक कौन थे, इसे कब बनाया गया तथा पहली सिलाई मशीन का स्वरूप कैसा था। यूं तो इसका इतिहास काफी पुराना है, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव होते गए और आधुनिक मशीन प्राचीन मशीन से बिल्कुल भिन्न हो गई। आज हम कपड़े सिलने के लिए जिस मशीन का इस्तेमाल करते हैं, वह प्राचीन मशीन से बिल्कुल भिन्न व सुगम है।
पहले आविष्कारक
शुरूआत में हाथ में धागा और सूंई लेकर कपड़ा सिलने की परम्परा थी। मगर इस तरह सिलाई करना बहुत कठिन कार्य था। इसे सुगम बनाने के लिए सिलाई मशीन का आविष्कार किया गया। यह ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो धागे की सहायता से किसी वस्त्र या अन्य वस्तु को सिलने का काम करती है। सिलाई मशीन के पहले आविष्कारक ए. वाईसेन्थाल थे, जिन्होंने वर्ष 1755 में विश्व को पहली सिलाई मशीन दी।
इस मशीन का आविष्कार पहली औद्योगिक क्रांति के समय हुआ था। जिसमें लगने वाली सूई के बीच में एक सुक्ष्म छेद था, जिसके दोनों सिरे नुकीले थे। इसके भीतर से धागा लगाकर कपड़े पर सिलाई की जाती थी। इसके बाद वर्ष 1790 में थामस सेंट ने दूसरी सिलाई मशीन बनाई। इसमें धागे से भरी एक चरखी और छेद करने के लिए बड़ी सुई लगाई गई थी। यह मशीन चेन की तरह सिलाई करती थी। लेकिन इसमें कुछ खामियों के कारण एक और मशीन का आविष्कार किया गया।
एक दर्जी ने बनाई वास्तविक सिलाई मशीन
पूर्व में बनी दोनों मशीनों में कुछ कमियों के कारण वास्तविक सिलाई मशीन का निर्माण किया गया। इसके आविष्कारक सेंट एंटनी के रहने वाले एक गरीब दर्जी थे, जिनका नाम बार्थलेमी थिमानियर था। थिमानियर ने वर्ष 1830 में लकड़ी से बनी इस मशीन का फ्रांस में पेटेंट करवाया। लेकिन उनके इस संस्थान को कुछ लोगों ने तोड़ दिया था, जिसके बाद वर्ष 1845 में उन्होंने फिर से दूसरी मशीन बनाई और उसका पेटेंट करवा लिया। इसकी खास बात यह थी कि इस बार थिमानियर ने लोहे की मशीन बनाई थी। वर्ष 1848 में उन्होंने इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरीका से भी इसका पेटेंट ले लिया था।
भारत में कब आई मशीन
भारत में सिलाई मशीन का आगमन उन्नीसवीं शताब्दी के आखिर में हुआ। इन्हें अन्य देशों से आयात किया गया जाता था, इनमें अमरीका की सिंगर तथा इंग्लैंड की पफ दो मुख्य मशीनें थी। भारत में भी स्वतंत्रता के बाद मशीनें बनने लग गई थी, इनमें उषा कंपनी की मशीन सबसे उन्नत थी। इसका निर्माण कोलकाता में वर्ष 1935 में किया गया था।
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