अब ‘स्ट्रोक’ से बचाया जा सकेगा मरीजों को, वैज्ञानिकों ने 60 नए फैक्टर्स को पहचाना
भारत के शोधकर्ताओं सहित एक अंतरराष्ट्रीय दल ने ‘स्ट्रोक’ से जुड़े 61 नए आनुवंशिक क्षेत्रों की पहचान की है जो दुनिया भर में मौत के दूसरे प्रमुख कारण को रोकने या उसका इलाज करने के लिए संभावित दवाओं के निशाने पर हैं। ‘स्ट्रोक’ पर पिछले जीनोम अध्ययन मुख्य रूप से यूरोपीय वंशावली वाली आबादी में किए गए थे।
हाल ही में पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित नवीनतम परिणाम, पांच अलग-अलग वंशों के 25 लाख लोगों के डेटा के विश्लेषण पर आधारित हैं, जिनमें से 200,000 से अधिक को ‘स्ट्रोक’ आया था। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में न्यूरोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर कामेश्वर प्रसाद सहित गिगास्ट्रोक कंसोर्टियम के सदस्यों ने इस अध्ययन में हिस्सा लिया। इस अध्ययन में शामिल आबादी का दक्षिण एशिया सहित काफी वैश्विक प्रतिनिधित्व है, जिसमें भारत और पाकिस्तान, अफ्रीका, पूर्वी एशिया, यूरोप और लातिन अमेरिका शामिल हैं।
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उन्होंने कहा, विभिन्न वंशों और क्षेत्रों के संयुक्त परिणामों ने सूक्ष्म स्तर पर चीजों को स्पष्ट कर दिया है। 110,182 रोगियों में जिन्हें ‘स्ट्रोक’ आया था और 1,503,898 अन्य व्यक्तियों में टीम ने ‘स्ट्रोक’ के लिए संबंधित संकेतों और 89 (61 नए) स्वतंत्र जीनोमिक लोकस में उसके उपप्रकारों की पहचान की। लोकस कोशिकाओं में क्रोमोसोम्स पर जींस की भौतिक स्थिति होती है और इन्हें जेनेटिक स्ट्रीट एड्रेस कहा जाता है।
द. एशिया के 4088 लोगों के डेटा का उपयोग
प्रसाद और उनकी टीम ने इसके लिए दक्षिण एशिया से 4,088 व्यक्तियों में से 1,609 स्ट्रोक के मामलों और 2,479 अन्य के डेटा का उपयोग किया, जिसमें भारत और पाकिस्तान के मामले शामिल थे। उन्होंने पाया कि भारत और पाकिस्तान के न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीड़ित लोगों में कोबल नामक आनुवंशिक क्षेत्र की आवृत्ति अधिक होती है।
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ऐसे आता है स्ट्रोक
प्रसाद ने कहा, स्ट्रोक मुख्य रूप से सेरेब्रल इस्किमिया के कारण होता है। सेरेबल इस्किमिया मस्तिष्क में गंभीर चोट लगने के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क को रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है।