सांगलिया धूणी: भक्तों की उम्मीद का ठिकाना, जहां पांव पड़ते ही मिलता है सुकून, 350 साल पहले आए थे सांगा बाबा
Sangliya Dhuni Sikar: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित सांगलिया धूणी में खिंवादास जी महाराज की 22वीं पुण्यतिथि का आज आखिरी दिन है। कार्यक्रम के अंतिम दिन सांगलिया धूणी में राजनेताओं का जमावड़ा लगा हुआ है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी सहित अनेक दिग्गज नेता आज सांगलिया धूणी पहुंच रहे है। कार्यक्रम के पहले दिन गुरुवार को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी सांगलिया धूणी पहुंचे थे।
शुक्रवार दोपहर प्रतिपक्ष नेता राजेंद्र राठौड़ और उपनेता सतीश पूनिया ने भी भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ सांगलिया धूनी जाकर खींवादासजी महाराज की समाधि पर धोक लगाई। दोनों नेताओं ने सांगलपति ओमदासजी महाराज से आशीर्वाद लिया और बंद कमरे में ओमदास महाराज से चर्चा की। दोपहर बाद सीएम गहलोत ने भी सांगलिया धूनी पहुंचे वाले है। वहीं, लगातार दूसरे दिन भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का धूणी धाम पहुंचने का तांता लगा हुआ है।
यहां आते ही मिलता है सुकून
सांगलिया धूणी पूरे भारतवर्ष में अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए है। यहाँ पर कदम रखते ही मानसिक व शारीरिक रूप से टूटे लोग जो पूर्ण आस्था रखते हैं, यहां बहुत ही सुकून मिलता है। अपने आप में एक अलग ही अनुभूति होती है। यहां असाध्य रोग, बांझपन, पारिवारिक समस्याओं से ग्रसित, सामाजिक बहिष्कृत लोगों, जादू-टोने के नाम से ठगे गए लोगों, नौकरी के लिए भटक रहे लोगों की समस्या दूर हो जाती हैं।
हर साल आते है लाखों श्रद्धालु
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित सांगलिया धूणी धाम लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं और धूणी में बनाई गई संतों की समाधियों पर मत्था टेककर मनौतियां मांगते है। सांगलिया धूणी धाम को श्रद्धालुओं की उम्मीद का ठिकाना कहा जाता है। माना जाता है कि यहां पैर पड़ते ही भक्तों को सुकून मिलता है। यही वजह है कि आज भी लाखों लोग प्रसिद्ध संत खिंवादास जी महाराज के बताए मार्ग पर चल रहे हैं।
350 साल पहले यहां आए थे सांगा बाबा
कहा जाता है कि सांगलिया धूणी में करीब 350 साल पहले सांगा बाबा आए थे, उनके नाम से ही सांगलिया गांव का नाम पड़ा। लेकिन, धूणी माता की स्थापना व यहां पर लोगों को चमत्कार दिखाने का काम सबसे पहले बाबा लकड़दासजी ने ही किया था। खास बात ये है कि इस आश्रम में बनी रसोई में 24 घंटे चूल्हे चालू रहते हैं। यहां पूर्णिमा, अमावस्या व चतुर्दशी को मेला लगता है।
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