'हाथ' का साथ छोड़ा तो पायलट के पास है ये 5 विकल्प
(पंकज सोनी) जयपुर। सचिन पायलट अनशन से राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर गहलोत बनाम पायलट का मुद्दा गरमा गया है। सवाल उठ रहा है कि आखिर विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले सचिन पायलट (Sachin Pilot) ने ऐसा कदम क्यों उठाया है? क्या सचिन पायलट अब खुलकर आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं? या फिर अब पायलट का धैर्य जवाब दे चुका है। वो कांग्रेस हाईकमान को क्या संदेश देना चाहते हैं? राजनीतिक हलकों में इन सवालों को लेकर चर्चा है।
इन बातों को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पायलट आने वाले चुनाव में कांग्रेस के बाहर से खेलेंगे, लेकिन यह खेल किस टीम में शामिल होकर खेला जाएगा। इसको लेकर असमंजस की स्थिति है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अब पायलट के सामने पांच विकल्प हैं। इसमें भाजपा का दामन थामना भी एक प्रमुख विकल्प माना जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट के अनशन को बगावत के तौर पर देख रहा है।
विकल्प नंबर-1 : कांग्रेस से बगावत, भाजपा से दोस्ती
कांग्रेस में पायलट समकक्ष नेताओं का इतिहास देखते हुए यह माना जा रहा है कि सचिन भाजपा का दामन थाम सकते हैं। कांग्रेस सरकार के खिलाफ खास तौर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधना उनकी भाजपा से निकटता को दिखा रहा है, लेकिन पायलट के भाजपा में सीधे तौर से शामिल होने पर जनाधार खिसकने का खतरा है। वहीं उनके विरोधियों के उन पर भाजपा से मिले होने के आरोप भी साबित हो जाएं गे।
विकल्प नंबर-2 : बेनीवाल के प्रस्ताव को करें स्वीकार
पायलट को लगातार रालोपा प्रमुख सांसद हनुमान बेनीवाल की तरफ से भी गठबंधन का न्योता दिया जा रहा है। बेनीवाल की पार्टी जाट मतदाताओं पर अच्छी पैठ रखती है। यदि यह गठबंधन होता है तो कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए सिरदर्द होगा। हालांकि इस गठबंधन में नेता को लेकर सहमति बनती नहीं दिख रही है।
विकल्प नंबर-3 : आप के साथ पायलट का हाथ
पायलट के जनाधार को देखते हुए राजस्थान में पैर जमाने की कोशिश में जुटी आम आदमी पार्टी लगातार उन पर डोरे डाल रही है। आप का राजस्थान में अभी कोई खास जनाधार नहीं है, लेकिन युवाओं और शहरी मतदाता में आप लगातार पैठ बना रही है। पायलट भी गुर्जरों के साथ युवाओं और शहरी मतदाताओ में लोकप्रिय है। ऐसे में यह गठबंधन भी राजनीतिक गुल खिलाने वाला हो सकता है।
विकल्प नंबर-4 : ‘हाथी’ की सवारी साध सकती है जातिगत समीकरण
प्रदेश में पिछले दो दशक से तीसरी ताकत के तौर पर बसपा का हाथी कमाल दिखाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 6 सीटें मिली थी। सचिन खुद भी यूपी से आते हैं। प्रदेश के दलित वोटों में बसपा का समर्थन है। राजस्थान में दलित मतदाताओं के साथ पायलट समर्थक गुर्जर जाति का गठबंधन जातिगत लिहाज से बेहद सधी हुई राजनीति माना जाएगा।
विकल्प नंबर-5 : कांग्रेस में रहकर अपनी बात मनवाना
पायलट के पास कांग्रेस में रहकर अपनी बात मनवाने का विकल्प भी अभी खुला माना जा रहा है। कांग्रेस को अपनी ताकत दिखाकर पायलट अपने समर्थक नेताओं को टिकट दिलवाने का प्रयास कर सकते हैं। कांग्रेस भी पायलट को अपना भविष्य का नेता मानती है, लेकिन इस प्लान में पायलट के बगावती तेवर से नाराज चल रहे अशोक गहलोत सबसे बड़े बाधक माने जा रहे हैं।