Right to Health Bill : डॉक्टर्स की हड़ताल में गुटबाजी, आखिर सरकार किससे करें सुलह की बात?
जयपुर। प्रदेश में चल रहा निजी चिकित्सकों का आंदोलन अब आपसी गुटबाजी और वर्चस्व की लड़ाई में उलझ कर रह गया हैं। सरकार के प्रतिनिधियों के सामने भी चिकित्सक संगठनों के नेताओं की वर्चस्व की लड़ाई ने समस्या खड़ी कर दी है कि आखिर सरकार किससे सुलह की बात करें। राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में शुरू हुए चिकित्सकों के आंदोलन में एक ही संगठन के बदलते चेहरों ने सरकार के सामने समस्या खड़ी कर दी है कि आखिर वह किससे बात करें। क्योंकि आंदोलन की शुरुआत होने के बाद सीएम से वार्ता करने वाले चिकित्सक संगठनों ने आंदोलन को समाप्त कर दिया था, लेकिन आंदोलन को समाप्त करने वाले चिकित्सक संगठनों के इन पदाधिकारियों की बात दूसरे चिकित्सक संगठनों ने नहीं मानी और फिर से आंदोलन शुरू कर दिया। अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सका संघ अरिस्दा ने आंदोलन वापस लिया तो नया गुट तैयार हो गया। ऐसे ही जार्ड के एक गुट ने आंदोलन समाप्त किया तो विरोध में ज्वाइंट एक्शन कमेटी तैयार हो गई।
निजी डॉक्टर्स की आज फिर रैली
आंदोलन की आगामी रणनीति के तहत अब निजी डॉक्टर्स मंगलवार को सुबह फिर से महा महारैली का आयोजन करेंगे। सोमवार को भी चिकित्सक संगठनों की सरकार के प्रतिनिधियों से वार्ता हुई। इसमें चिकित्सकों के छह सदस्यीय दल ने चिकित्सका सचिव टी.रविकांत से बात कर आपत्ति सुनी। इसके बाद आज एक बार फिर सचिवालय में सभी चिकित्सक संगठन के नेताओं को वार्ता के लिए बुलावा भेजा गया। चिकित्सा विभाग के प्रमुख शासन सचिव टी रविकांत ने बताया कि हमने चिकित्सक संगठनों से बात की है। वार्ता में बिल में कुछ आपत्तियों पर संशोधन को लेकर सहमति बनती नजर आ रही है।
9 मार्च 2022 को ही सरकार ने मांग ली थी आपत्ति
राइट टू हेल्थ बिल की प्रति 9 मार्च, 2022 को करीब एक साल पहले स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर व अन्य साधनों पर प्रचारित कर इस पर आपत्ति व सुझाव मांगे थे। इसके बाद 22 सितंबर को विधानसभा में बिल को रखा गया और सबसे पहले चिकित्सक संगठन आईएमए ने बिल को लेकर विरोध शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने बिल पर विचार करते हुए इसे प्रवर समिति को भेज दिया। 11 जनवरी 2023 को प्रवर समिति का गठन हुआ। 16 जनवरी को प्रवर समिति ने चिकित्सक संगठनों को बुलाया और बिल पर चर्चा की।
ऐसे सामने आई गुटबाजी
आईएएम व ज्वाइंट एक्शन कमेटी के नेताओ ने सीएम से बात की थी वह फिर दोबारा शुरू हुए आंदोलन से दूर हो गए। इस बार पीएचएनएस और उपचार संगठन से जुड़े पदाधिकारियों ने आंदोलन की कमान संभाली। जार्ड आंदोलन से जुड़ा और फिर माना तो रेजिडेंट्स की नई एक्शन कमेटी बन गई। फिर अरिस्दा से नया संगठन बना। इसी तरह नेताओं की गुटबाजी सामने आती रही। संगठनों के पदाधिकारियों के सरकार से वार्ता के बाद चेहरे बदलते गए।
ऐसे शुरू हुआ चिकित्सकों का आंदोलन, कभी बात बनी तो कभी बिगड़ी और बदलते गए नेता
18 जनवरी को सभी चिकित्सक संगठनों आईएमए, उपचार, मेडिकल प्रेक्टिशन सोसायटी, जेएमए, पीएचएनएस ने सरकार के प्रतिनिधियों से वार्ता की। इसमें आईएएस टी रविकांत, डॉ. पृथ्वी, अनुपमा जोरवाल, शुचि त्यागी, आरयूएचस के वीसी डॉ.सुधीर भंडारी, एसएमएस प्रिंसिपल डॉ.राजीव बगरहट्टा सहित कई प्रशासनिक अधिकारी शामिल हुए, लेकिन इसमें बात नहीं बनी। 11 फरवरी को प्रवर समिति की बैठक हुई। इसी दिन से डॉक्टर्स का आंदोलन शुरू हो गया और बिल के विरोध में बहिष्कार शुरू हुआ। 23 फरवरी को चिकित्सक संगठनों की बनी एक ज्वाइंट एक्शन कमेटी की सीएम से बात हुई। इसमें कई चिकित्सक नेता शामिल हुए। इन्हें सीएम व चीफ सेक्रेटी ने करीब 40 मिनट सुना और ये मान गए। इसके बाद सरकारी योजनाओं का बहिष्कार समाप्त हो गया, लेकिन फिर दूसरे गुट ने सीएम के इस समझौते को नहीं मानते हुए आंदोलन शुरू कर दिया। सरकार ने वार्ता के बाद 15 दिन का समय दिया और 10 मार्च तक का डॉक्टर्स की आपत्तियों को दूर करने के लिए कहा था। सरकार से वार्ता करने वाले डॉ. संजीव गुप्ता का दावा है कि 15 मार्च को बिल का एक ड्राफ्ट दिया जो पुराना था। इसके बाद आपत्ति की तो 16 मार्च को फिर संशोधित बिल का ड्राफ्ट दिया। यह भी चिकित्सकों की मांग के अनुरूप नहीं था तो 17 मार्च से फिर आंदोलन शुरू हो गया। इस बार आंदोलन का नेतृत्व करने वाले चेहरे बदल गए।
इसके बाद कार्य बहिष्कार जारी रहा और 21 मार्च को विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल पास हो गया। बिल पास होने के बाद चिकित्सक संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाए कि जो संशोधन उन्होंने बताए थे, वह हुए नहीं। उसे सरकार ने नकारते हुए कहा कि सभी बातें डॉक्टर्स की मान ली गई। बिल पास होने के बाद चिकित्सकों ने इमरजेंसी से लेकर ओपीडी सेवाओं का बहिष्कार कर दिया। इसके बाद 23 मार्च से इमरजेंसी सेवाओं का बहिष्कार शुरू हुआ।