कभी खुलवाया था राम मंदिर का ताला, आज उद्घाटन का न्योता ठुकराया? पूरी कहानी यहां समझें
Ram Mandir Pran Pratishtha: देश में इन दिनों अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह चर्चा का मुख्य केंद्र बना हुआ है जहां देश के अलग-अलग हिस्सों में मंदिर को लेकर लोग भक्तिरस में सराबोर हैं. वहीं बीते बुधवार को देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं जाने के फैसले पर सियासी गलियारों में गहमागहमी रही. दरअसल कांग्रेस हाईकमान ने अपना स्टैंड क्लीयर करते हुए एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि हमारे जिन नेताओं को अयोध्या आने का न्योता मिला है वह नहीं जाएंगे और अन्य कोई नेता भी इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनेगा.
माना जा रहा है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों को देखते हुए रणनीतिक तौर पर यह फैसला लिया है. हालांकि इससे पहले कांग्रेस राम सबसे हैं और ऐतिहासिक रूप से खुद को राम मंदिर से जोड़ती रही है. वहीं चुनावों के दौरान पार्टी पर कई बार सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव खेलने के भी आऱोप लगते रहे हैं. कांग्रेस ने अपने फैसले का आधार बताते हुए कहा है कि यह बीजेपी और आरएसएस का इवेंट है और चुनावी लाभ के लिए अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है इसलिए कांग्रेस न्योते को सम्मान अस्वीकार करती है. आइए समझते हैं कि आखिर कांग्रेसी नेताओं ने किन वजहों से अयोध्या नहीं जाने का फैसला लिया.
बीजेपी का ट्रैप भांप गई कांग्रेस!
मालूम हो कि आने वाले कुछ ही महीनों बाद देश में लोकसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी की रणनीति देखकर साफ है कि राम मंदिर मुख्य चुनावी मुद्दा होगा. वहीं चुनावों में कांग्रेस को 'हिंदू विरोधी' बताकर घेराबंदी की जाएगी. हालांकि कांग्रेस खुद को धर्म निरपेक्ष पार्टी बताती है और देशभर में उनका अपना वोटबैंक है ऐसे में पार्टी मंदिर जाकर भी बीजेपी के निशाने पर रहती. कांग्रेसी नेताओं के फैसले के पीछे माना जा रहा है कि अगर कांग्रेसी नेता मंदिर जाते तो बीजेपी चुनावी प्रपंच बनाकर उन पर हमला करती ऐसे में उन्होंने नहीं जाने का फैसला उचित समझा.
मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का डर!
मालूम हो कि देश में मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 15 फीसदी के करीब है और मुस्लिम वोटर्स सालों से कांग्रेस पार्टी का परंपरागत वोटबैंक रहा है. पिछले चुनावों के आंकड़ों को देखें तो उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस को 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोट मिला था. वहीं देशभर में 33 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कांग्रेस को वोट डाला था. ऐसे में अगर कांग्रेस पार्टी के नेता अयोध्या जाते तो मुस्लिम वोटबैंक को भी नुकसान हो सकता था.
दक्षिण में पैर जमाने लगी है कांग्रेस!
इधर उत्तर भारत में वर्तमान में सिर्फ हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है औऱ बीते दिनों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और एमपी में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, यूपी में भी कांग्रेस को वोटबैंक में काफी नुकसान हुआ है ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिण भारत की ओऱ कांग्रेस उम्मीद लगाए बैठी है.
बीते दिनों कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाई और इसके बाद तेलंगाना में भी पार्टी को जीत मिली. वहीं जानकारों का कहना है कि पार्टी नेताओं के अयोध्या जाने से कांग्रेस को दक्षिण में झटका लग सकता था और लोकसभा चुनावों में कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों में सीटें भी कम हो सकती है.
सहयोगी दलों की भी चिंता!
वहीं इंडिया गठबंधन के भीतर कांग्रेस के ज्यातादर सहयोगी दलों ने राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाने का फैसला किया है जिसके बाद कांग्रेस पर एक तरह से नैतिक दबाव था कि वो भी अयोध्या नहीं जाए. कांग्रेस के अलावा उद्धव ठाकरे गुट अयोध्या जाने की सलाह दे रहा था और अरविंद केजरीवाल और शरद पवार न्योता मिलने के इंतजार में थे. वहीं लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, वृंदा करात जैसे नेताओं ने अयोध्या नहीं जाने का पहले ही फैसला कर लिया था.