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स्पेशल पान, फूलों की माला और दही-पेड़े का भोग…3 पीढ़ियों से रामलला की सेवा कर रहे हैं ये परिवार

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी तेज से चल रही है। वैसे तो समारोह अगले साल 16 से 24 जनवरी तक चलेगा।
03:06 PM Oct 06, 2023 IST | Anil Prajapat
स्पेशल पान  फूलों की माला और दही पेड़े का भोग…3 पीढ़ियों से रामलला की सेवा कर रहे हैं ये परिवार

अयोध्या। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी तेज से चल रही है। वैसे तो समारोह अगले साल 16 से 24 जनवरी तक चलेगा। लेकिन, मुख्य समारोह 22 जनवरी को होगा और अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में रामलला विराजेंगे। समारोह के मुख्य दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। लेकिन, जैसे-जैसे राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक आ रहे है। वैसे-वैसे लोगों में उत्साह भी बढ़ता जा रहा है। खासकर उन परिवार के लोगों में…जो तीन पीढ़ियों से रामलला की सेवा में जुटे हुए हैं।

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गौरतलब है कि अयोध्या विवाद के दौरान रामलला जब त्रिपाल में थे, उस वक्त भोग सहित मंदिर की सभी व्यवस्थाएं न्यायालय के आदेश पर रिसीवर के हाथ में थी। तब तत्कालीन फैजाबाद मंडल के पदेन कमिश्नर को रिसीवर नियुक्त किया गया था। जब से व्यवस्था श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के हाथ में आई, सेवादारों को प्रतिमाह 2100 रुपये मिलते हैं।

चौरसिया परिवार भेजता है रामलला के लिए स्पेशल पान

अयोध्या के रिंकू चौरसिया, सीताराम यादव और साक्षी मौर्य परिवार के लोग तीन पीढ़ी से रामलला की सेवा करते आ रहे है। चौरसिया परिवार की ओर से रोज 10 स्पेशल पान पहुंचाए जाते है। यादव परिवार की ओर से रामलला को पेड़ा, रबड़ी, पंजीरी, दूध, खीर का भोग चढ़ाया जाता है। वहीं, मौर्य परिवार की ओर से फूलों की व्यवस्था की जाती है। पान सेवादार रिंकू चौरसिया का कहना है कि पिताजी के समय से मंदिर में पान पहुंचाया जाता है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के दिन 51 जोड़ों का पान भेजा जाएगा।

भोग से लेकर फूलों तक की व्यवस्था करते हैं सेवादार

75 साल के सीताराम यादव ने बताया कि उनके पिता धनीराम और बाबा के समय से रोज घर पर ही भोग की तैयारी की जाती है। मौर्य परिवार भी पिछली तीन पीढ़ियों से पूजा के लिए रोज मंदिर में फूल भेजता है। पहले ये लोग फूल की खेती करते थे। लेकिन, अब जमीन नहीं रही तो फूल खरीदकर माला तैयार करते है। पुष्प सेवादार साक्षी मौर्य ने कहा कि मंदिर में फूल और माला पहले दादी लेकर जाती थीं. अब हम जाते हैं।

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