क्या रकबर की 'मौत' मॉब लिंचिंग नहीं? आरोपी पक्ष का वकील बोला-हाईकोर्ट में करेंगे अपील
Rakbar Mob Lynching Case : अलवर। अलवर जिले के रामगढ़ थाना क्षेत्र ललावंडी गांव में करीब पांच साल पहले गोतस्करी के शक में रकबर मॉब लिंचिंग केस मामले में कोर्ट ने आज फैसला सुनाते हुए चार आरोपियों को दोषी मानते हुए सात-सात साल की सजा सुनाई है। जबकि एक अन्य आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है । न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद ही चारों आरोपियों को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले लिया। कोर्ट के फैसले के बाद आरोपी पक्ष के वकील हेमराज गुप्ता ने बताया कि सभी आरोपियों से धारा 302 हटा ली गई है और एक को बरी किया गया है। अब धारा 341, 304 पार्ट प्रथम में फैसला हुआ है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सजा को लेकर हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।
उन्होंने बताया कि इस संबंध में न्यायिक जांच हुई थी। जिसमें पुलिसकर्मियों को दोषी माना गया था लेकिन अदालत ने एक जांच को नजरअंदाज किया, जबकि हमारी ओर से पत्रावली पेश की गई थी। इसके अलावा असलम के बयान में भी कोई आरोपी का नाम नहीं था और अभियोजन पक्ष ने जानबूझकर कोर्ट में उस रिपोर्ट को प्रस्तुत नहीं किया। एक व्यक्ति की जो मौत पुलिस अभिरक्षा में हुई थी। इस संबंध में पुलिस अधीक्षक से लेकर उच्च अधिकारियों तक पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लिखा गया था। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बचाव पक्ष का वकील बोला- समय पर इलाज नहीं…पुलिस का यही दोष
इधर, बचाव पक्ष के वकील एडवोकेट अशोक शर्मा ने बताया कि इस संबंध में न्यायिक जांच हुई थी लेकिन अतिरिक्त सीजेएम ने इस मामले में पुलिस को इतना सा दोषी माना कि पुलिस ने मेडिकल हेल्प समय पर उपलब्ध नहीं करवाई। एडवोकेट अशोक शर्मा ने बताया कि आरोपी नवल किशोर को साक्ष्य अभाव में दोषमुक्त कर दिया गया है। वहीं, चार आरोपी परमजीत, नरेश विजय और धर्मेंद्र को धारा 341 और 304 के पार्ट प्रथम में आरोप सिद्ध होने पर सात-सात की सजा सुनाई हैं । साक्ष्य अभाव में बरी हुए नवल किशोर के मामले में निर्णय आने के बाद निर्णय की कॉपी के बाद तय करेंगे। अगर संतोषजनक हुआ तो सही है नहीं तो आगामी उच्च कोर्ट में अपील की जाएगी। मोबाइल पर बातों के आधार पर नवल किशोर को आरोपी बनाया गया था लेकिन कोर्ट ने उस एविडेंस को नहीं माना और उसे संदेह का लाभ दिया।
एडवोकेट शर्मा फैसले से खुश, सजा से नहीं
उन्होंने बताया कि एडीजे नंबर वन के न्यायाधीश सुनील कुमार गोयल ने फैसला सुनाते हुए धारा 304 पार्ट प्रथम में चारों आरोपियों को 7-7 साल की सजा और ₹10- 10 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया गया है। वहीं, धारा 341 में एक-एक माह की सजा और ₹500 के अर्थदंड से दंडित किया गया है। दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। इस सजा में जो कस्टडी इन्होंने पूर्व में भुगत ली थी, इस सजा में उसका लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से तो खुश है लेकिन दंडादेश से प्रसन्न नहीं है, इसलिए अभी फैसले की कॉपी लेने के बाद निर्णय लिया जाएगा।
मेव पंचायत ने कहा-सरकारी वकीलों ने सही से नहीं की पैरवी
मेव पंचायत के सदर शेर मोहम्मद ने बताया कि एक युवक की हत्या हुई थी। लेकिन, तकलीफ इस बात की है कि धारा 302 से बरी कर दिया गया। उन्होंने यहां तक कहा कि जिस तरह का फैसला आया है उसमें ऐसा लगता है की दोनों सरकारी वकीलों ने इसमें सही तरीके से पैरवी नहीं की और जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि उम्र कैद की जगह इन्हें साथ 7 साल की सजा हुई है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जाएगी ।बरी किए गए नवल के खिलाफ अन्य 4 आरोपियों से ज्यादा साक्ष्य होने के बावजूद भी नवल को बरी किया गया ।यह सबसे बड़ी बात है उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि सरकार ने बेहतरीन वकील नियुक्त किए लेकिन निर्णय से यह बात साबित होती है कि कहीं ना कहीं पैरवी में कमजोरी रही है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट में रहे सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
मॉब लिंचिंग मामले में सुबह से ही अदालत परिसर में गहमागहमी का माहौल था। सभी पांचों आरोपी भी अदालत में मौजूद थे। पुलिस व्यवस्था चाक-चौबंद थी और भीड़ को एकत्रित नहीं होने देने के लिए पुलिस ने पूरे बंदोबस्त किए हुए थे। पुलिस अधिकारी इस मामले पर निगरानी बनाए हुए थे। जैसे ही अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया। वैसे ही पुलिस ने चारों आरोपियों को अपनी कस्टडी में ले लिया। इसके बाद मौके पर मौजूद रहे हिंदूवादी संगठनों ने इस फैसले को लेकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और उस वक्त थोड़ा माहौल तनावपूर्ण हो गया। लेकिन, पुलिस ने स्थिति को संभालते हुए सभी को शांत किया। उसके बाद पुलिस और क्यूआरटी टीम चारों आरोपियों को जेल ले गई।
5 साल पुराना है ये मामला
गौरतलब है कि रामगढ़ थाना क्षेत्र के ललावंडी गांव के पास 20-21 जुलाई 2018 की रात को जंगल से पैदल गाय ले जा रहे हरियाणा के कोलगांव निवासी रकबर उर्फ अकबर एवं उसके साथी असलम को लोगों ने घेर कर मारपीट की थी। इस दौरान असलम लोगों से छूटकर भाग गया था। रकबर घायल हो गया था। घायल को पुलिस के हवाले कर दिया था। रामगढ़ सीएचसी पर ले जाने के दौरान रकबर की मौत हो गई थी।
पुलिस ने धर्मेंद्र, परमजीत सिंह, नरेश, विजय व नवल को आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया था। ये सभी आरोपी अभी हाईकोर्ट से जमानत पर थे। मामले में सरकार की ओर से 67 गवाहों के बयान तथा 129 पेज के दस्तावेज साक्ष्य पेश किए गए। पैरवी के लिए राजस्थान सरकार ने जयपुर हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट नासिर अली नकवी को 2021 में विशिष्ट लोक अभियोजक नियुक्त किया था। केस की सुनवाई अलवर एडीजे नंबर 1 विशेष कोर्ट में चल रही है।
पुलिस हिरासत में मौत के कोई साक्ष्य नहीं
एडवोकेट नकवी पहले बता चुके हैं कि 20-21 जुलाई 2018 को रकबर की मारपीट की हत्या कर दी गई थी। इस केस में पुलिस ने परमजीत, धर्मेंद्र व नरेश को गिरफ्तार किया था। बाद में विजय व नवल को गिरफ्तार किया गया था। इस तरह मॉब लिंचिंग में कुल 5 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया था। केस में 67 गवाहों के बयान कराए गए हैं। इनमें कांस्टेबल नरेंद्र सिंह, तत्कालीन रामगढ़ थाना प्रभारी एवं एएसआई मोहन सिंह, रकबर का साथी असलम सहित पांच लोग चश्मदीद गवाह हैं। 129 पेज के दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए हैं। इनमें आरोपियों की मोबाइल की कॉल डिटेल व लोकेशन भी है। पुलिस ने मारपीट में काम लिए डंडे भी बरामद किए थे।
मेडिकल पोस्टमार्टम में रकबर के शरीर पर 13 चोटों के निशान थे। डॉक्टरों ने उसकी मौत भी चोटों के कारण मानी थी। पुलिस हिरासत में मारपीट के कोई साक्ष्य नहीं मिले है। रकबर मॉब लिंचिंग के मामले में परिजनों ने जिला जज अदालत में केस ट्रांसफर की याचिका भी लगाई थी। हालांकि याचिका खारिज हो गई थी और केस एडीजे-1 की अदालत में चला। प्रशासन ने यह मामला राज्य सरकार के गृह व विधि विभाग को भेजा था। बाद में राज्य सरकार ने इसमें हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट नासिर अली नकवी को पैरवी के लिए नियुक्त किया था।
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