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सुप्रीम कोर्ट से राजस्थान सरकार को बड़ी सफलता— एनडीपीएस के मामलों में प्रभारी थानाधिकारी को भी तलाशी और जब्ती का अधिकार

03:13 PM May 10, 2025 IST | Nizam Kantaliya
सुप्रीम कोर्ट से राजस्थान सरकार को बड़ी सफलता— एनडीपीएस के मामलों में प्रभारी थानाधिकारी को भी तलाशी और जब्ती का अधिकार

दिल्ली! सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि किसी पुलिस थाने प्रभारी/ इंचार्ज एसएचओं को भी एनडीपीएस के मामलों में जब्ती और तलाशी का अधिकार हैं. राजस्थान सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया हैं.

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राजस्थान हाई कोर्ट तकनीकी आधार पर एक एनडीपीएस मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था।. चित्तौड़गढ जिले के निम्बाहेड़ा पुलिस थाने में दर्ज हुई एक एफआईआर के मामले में सब-इंस्पेक्टर कमल चंद ने तलाशी ली थी, जो उस समय स्थायी रूप से एसएचओ नियुक्त नहीं थे, बल्कि केवल प्रभारी थे.

हाईकोर्ट ने किया था खारिज

वर्ष 2011 के इस मामले में पुलिस ने एक वाहन की तलाशी लेकर आरोपी से 14 किलोग्राम अफीम बरामद की थी. आरोपी ने यह कहते पुलिस की कार्रवाई को चुनौति दी थी कि तत्कालिन सब इंस्पेक्टर उस समय केवल प्रभारी थे और नियमित थानाधिकारी नहीं होने के चलते उन्हे तलाशी और जब्ती का अधिकार नहीं थी

राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रभारी होने के चलते कि गयी कार्यवाही के आधार पर पुलिस की कार्यवाही को वैधानिक नहीं माना. हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रभारी एसएचओं इसके लिए सक्षम नहीं थे.

सरकार की अपील

राजस्थान हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा और एडवोकेट शालिनी सिंह ने पैरवी करते हुए अदालत को बताया कि 16 अक्टूबर 1986 की सरकारी अधिसूचना के अनुसार सभी निरीक्षक (Inspectors) और उप-निरीक्षक (Sub-Inspectors) जो एसएचओ के रूप में नियुक्त हैं, उन्हें एनडीपीएस की धारा 42 के तहत तलाशी और ज़ब्ती का अधिकार प्राप्त है.

अधिकारिक कार्यभार

सरकार ने अपने पक्ष में दलील दी कि नियमित एसएचओ वीरा राम चौधरी ने तलाशी से पहले आधिकारिक रूप से कमल चंद को कार्यभार सौंप दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की दलीलों को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि प्रभारी एसएचओ भी वैधानिक रूप से सक्षम अधिकारी होता है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि राजस्थान हाई कोर्ट ने धारा 42 की गलत व्याख्या की.

सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालत को भी निर्देश दिया है कि वह मामले की सुनवाई शीघ्रता से पूरी करे, जिससे कि उस मुकदमे को निस्तारित किया जा सके.

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