Rajasthan Election : दिग्गजों के गढ़ मेवाड़ में कद बढ़ाने की परीक्षा…आदिवासी वोटर्स को साधने में जुटी पार्टियां
Rajasthan Election : जयपुर। राजस्थान में गुरुवार को नाम वापसी के साथ चुनावी मुकाबला निर्णायक दौर में पहुंच गया है। कुछ बागी घर लौट गए हैं और कुछ मैदान में हैं। नफा नुकसान का आकलन दोनों पार्टियां बागियों के मैदान में रहते ही कर चुकी हैं और जहां बागी बचे हैं, वहां उनके संभावित घात से निपटने का उपाय करने में जुटी हैं। चुनावी तस्वीर अब जहां साफ है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उदयपुर की जनसभा में मतदान में शेष पंद्रह दिन के लिए अपनी पार्टी का एजेंडा भी तय कर दिया है। किन मुद्दों पर कांग्रेस पर प्रहार करना है और किन मुद्दों पर उसे घेरना है। भाजपा की यह सभा उसकी चुनावी रणनीति व व्यूहरचना के अनुसार ही थी।
यह साफ है कि भाजपा उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड को लेकर गहलोत सरकार को कानून व्यवस्था पर घेरेगी और हिंदुवादी मतों को साधने का प्रयास करेगी। वहीं आदिवासी मत भी भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी मतों के लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों में घमासान मचा है और दोनों पार्टियां एक दूसरे पर आदिवासी मतों को लेकर प्रहार कर रही हैं। भाजपा कांग्रेस को यह कहकर घेरने का प्रयास कर रही है कि उसने आदिवासियों के कल्याण के लिए समुचित कोशिश नहीं की, जबकि भाजपा आदिवासी नायकों का गौरव बढ़ाने की रणनीति पर लंबे समय से आगे बढ़ रही है।
वह यह भी कहती हैं कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी का विरोध किया। वहीं, कांग्रेस भाजपा को यह कहकर घेर रही है कि वह आदिवासियों को वनवासी कहकर उनका अपमान कर रही है और उनका हक छीन रही है। राहुल गांधी अपनी सभाओं में भाजपा पर वनवासी शब्द को लेकर लगातार प्रहार कर रहे हैं और कहते हैं कि भाजपा उन्हें सिर्फ वनों तक सीमित रखना चाहती है। वह नहीं चाहती कि आदिवासी आगे बढ़ें और बड़े सपने देखें।
दोनों पार्टियों के कद्दावर नेताओं का क्षेत्र
मेवाड़-वागड़ अंचल में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद और प्रतापगढ़ जिले शामिल हैं, लेकिन पार्टी पहली बार यहां अपने कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया के बिना चुनाव मैदान में है। कटारिया अब असम के राज्यपाल हैं। पार्टी को अब इस अंचल के लिए नए क्षत्रप गढ़ने हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस अंचल की 28 में से 15 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि 10 सीटों पर कांग्रेस व तीन पर अन्य प्रत्याशी विजयी रहे थे, लेकिन 2013 में भाजपा ने यहां 25 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, जबकि 2008 में कांग्रेस ने यहां 28 में से 20 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी।
मेवाड़ और वागड़ अंचल दोनों ही पार्टियों के कद्दावर नेताओं का क्षेत्र रहा है। कांग्रेस को इस अंचल ने मोहनलाल सुखाड़िया , हरिदेव जोशी और हीरालाल देवपुरा जैसे नेता दिए थे, जिन्होंने प्रदेश का नेतृत्व भी किया। कांग्रेस में वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी जैसे कद्दावर नेता इसी अंचल से हैं तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद सीपी जोशी भी इसी अंचल से हैं। इस अंचल की 28 में से 17 सीटें आरक्षित हैं। इनमें से 16 सीटें अनुसचित जनजाति के लिए हैं।
मतदाताओं के लिए बढ़े विकल्प
पिछले चुनावों में इस आदिवासी अंचल में एक नई पार्टी भारतीय ट्राइबल पार्टी का उदय हुआ और उसके दो विधायक विधानसभा में पहुंचे थे, लेकिन 2023 के चुनाव आते आते बीटीपी की सियासी धारा अब दो हिस्सों में बहने लगी है। अब यहां एक और पार्टी भारतीय आदिवासी पार्टी सियासी पटल पर उभर आई है और ये दोनों पार्टियां चुनाव मैदान में हैं। यानी आदिवासी मतदाताओ के सामने अब कांग्रेस व भाजपा के अलावा एक और विकल्प होगा, लेकिन यह विभाजित विकल्प भी इन दोनों पार्टियों के चुनावी समीकरणों को प्रभािवत कर सकता है।
इसलिए इस बार आदिवासी मतों के लिए घमासान और तेज व तीखा होने की संभावना है। इन दोनों आदिवासी पार्टियों के चुनाव मैदान में होने से सियासी समीकरण बदलने के आसार हैं। मानगढ़ समेत कई मुद्दे हैं जो आदिवासी वोटर का रुख तय करेंगे। भाजपा के प्रहारों को कांग्रेस अपनी सरकारी योजनाओं के माध्यम से झेलना चाहेगी। यहां के आदिवासी वोटरों की सियासी करवट इस अंचल में नए क्षत्रप भी गढ़ सकती है और किसी भी पार्टी को सत्ता पथ की ओर भी मोड़ सकती है।
विश्वराज सिंह के माध्यम से मेवाड़ को साधने की कोशिश
वैसे तो राजस्थान का मेवाड़ व वागड़ का आदिवासी अंचल पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थक रहा है, लेकिन राम मंदिर आंदोलन के बाद से यहां की राजनीतिक तस्वीर बदलने लगी और अब वहां पर भाजपा ने अपने लिए मजबूत जनाधार खड़ा कर लिया है और राजस्थान में उसके सत्ता में आने में मेवाड़ अंचल अहम भूमिका निभाता रहा है। इसलिए पीएम मोदी की उदयपुर में सभा चुनावी रणनीति की दृष्टि से बहुत ही अहम है।
भाजपा ने मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ को विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारकर यहां के राजनीतिक समीकरण नए सिरे से साधने की कोशिश की है। भाजपा ने विश्वराज सिंह के माध्यम से राजपूत मतों पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है। इसके साथ ही पार्टी की नजर अगले लोकसभा चुनावों के समीकरणों पर भी टिकी है। पीएम मोदी ने उदयपुर की अपनी सभा में के माध्यम से इन नए सियासी समीकरणों को और धार दी है। उन्होंने उदयपुर की आठ सीटों को ही नहीं बल्कि मेवाड़ व वागड़ की सभी 28 सीटों के साथ राजपूत और आदिवासी मतदाताओं को भी साधा है।
ये खबर भी पढ़ें:-‘मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा, BJP आई तो फंसेंगे बड़े भ्रष्टाचारी’ PM का कांग्रेस पर बड़ा हमला