For the best experience, open
https://m.sachbedhadak.com
on your mobile browser.

Rajasthan Election 2023 : हठी हम्मीर की धरती पर आसान नहीं कांग्रेस की राह, ERCP का मुद्दा रहेगा हावी

सवाई माधोपुर का नाम आते ही लोगों के दिल-ओ-दिमाग में एक तरफ त्रिनेत्र गणेश तो दूसरी तरफ बाघों की अठखेलियां आ जाती हैं।
08:11 AM Oct 09, 2023 IST | Anil Prajapat
rajasthan election 2023   हठी हम्मीर की धरती पर आसान नहीं कांग्रेस की राह  ercp का मुद्दा रहेगा हावी

Rajasthan Assembly Election 2023: सवाई माधोपुर का नाम आते ही लोगों के दिल-ओ-दिमाग में एक तरफ त्रिनेत्र गणेश तो दूसरी तरफ बाघों की अठखेलियां आ जाती हैं। सवाई माधोपुर को राजा हठी हम्मीर की् धरती कहा जाता है और चौहान वंश के अंतिम शासक हम्मीर देव सिंह के शासन को विजय गाथा के रूप में लिखा जाता है। सवाई माधोपुर के अमरूद जहां देश भर में प्रसिद्ध हैं, वहीं गंगापुर सिटी का खीर मोहन भी देशवासियों की जुबां पर मिठास घोलता है। सवाई माधोपुर जिले ने कई नेताओं को कद्दावर बनाया है।

Advertisement

कई केंद्रीय मंत्री, प्रदेश के मंत्री सवाई माधोपुर जिले ने दिए हैं। वर्तमान में सवाई माधोपुर जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें सवाई माधोपुर, गंगापुर सिटी, बामनवास और खंडार विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। फिलहाल चारों ही सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। इनमें से सवाई माधोपुर, बामनवास और खंडार के विधायक कांग्रेस के टिकट पर जीते हैं तो गंगापुर के निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा ने कांग्रेस को समर्थन दे रखा है। अगर बात करें सवाई माधोपुर जिले के सियासी समीकरणों की तो तमाम सरकारी घोषणाओं और कामों के बावजूद क्षेत्रीय विधायकों की कार्यशैली के चलते एंटी-इन्कंबेंसी हावी है। जो पार्टी निर्विवाद और नए चेहरों पर दांव खेलेगी उसे उतना ही ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है।

सवाई माधोपुर में बीजेपी-कांग्रेस दोनों का फोकस

यहां इस बार विधानसभा चुनावों में ईआरसीपी का मुद्दा प्रमुख रूप से हावी रहेगा जिसे भुनाने के लिए दोनों ही पार्टियों की ओर से भरपूर कोशिश होगी। इसके अलावा रोजगार, शहरी विकास, पेयजल और बढ़ते अपराध जैसी समस्याओं से सवाई माधोपुर जिला जूझ रहा है। अवैध बजरी खनन सवाई माधोपुर जिले के लिए नासूर बन चुका है। सवाई माधोपुर जिले में ना तो कोई बड़ी इंडस्ट्री है और ना ही शिक्षा का कोई बड़ा केंद्र। अमूमन सवाई माधोपुर जिले को भाजपा अपना गढ़ मानती हुई आई है और यही कारण है कि पिछले डेढ़ साल के अंदर भाजपा प्रदेश स्तर के दो बड़े आयोजन सवाई माधोपुर में कर चुकी है।

पिछले साल राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सवाई माधोपुर में आदिवासी सम्मेलन को संबोधित किया था और पूर्वी राजस्थान की खोई हुई सीटों पर फोकस किया था। इसके बाद हाल ही त्रिनेत्र गणेश के आशीर्वाद से भाजपा की पहली परिवर्तन रैली का आगाज हुआ। अगर कांग्रेस की बात करें तो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान गांधी परिवार का सबसे ज्यादा समय सवाई माधोपुर जिले में ही बीता। फिलहाल दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं। मुख्यमंत्री मिशन 156 लेकर चल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी अपने मजबूत संगठन को लेकर जीत का दावा कर रही है। बीजेपी ने बूथ लेवल तक नियुक्तियां कर दी हैं।

दिख रही है सत्ता विरोधी लहर 

बामनवास विधानसभा क्षेत्र की बात करें यहां चुनाव इस बार काफी रोचक नजर आएगा। बौंली और बामनवास उपखंड क्षेत्र को मिलाकर बने बामनवास विधानसभा क्षेत्र में हमेशा क्षेत्रवाद की राजनीति ज्यादा हावी रहती है। अभी तक अमूमन बामनवास क्षेत्र के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। पिछले चुनाव में इंदिरा मीणा को कांग्रेस का टिकट मिला था और बौंली क्षेत्र का होने के चलते उन्हें जीत मिल गई थी। लेकिन अब क्षेत्र की राजनीतिक चर्चाओं पर गौर करें तो इस बार फिर से बामनवास क्षेत्र का प्रत्याशी ही बाजी मार सकता है।

इंदिरा मीणा को हाल ही में कांग्रेस ने प्रदेश महासचिव बना दिया। बामनवास विधानसभा क्षेत्र में विधायक की एं टी इन्कं बेंसी भाजपा के लिए रास्ता आसान कर सकती है। यहां मीणा और गुर्जर मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इसके साथ ही सबसे बड़ा फै क्टर क्षेत्रवाद का है। डॉ. किरोड़ी लाल मीणा भी साल 1998 के चुनाव में बामनवास से बीजेपी के विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि बामनवास को ब्यूरोक्रेट्स की खान कहा जाता है जहां से दर्जनों आईएएस और आईपीएस राजस्थान के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में सेवाएं दे रहे हैं लेकिन उसके बावजूद बामनवास उपखंड मुख्यालय के विकास के क्षेत्र में बदतर हालात प्रदेश में एक अलग ही तस्वीर पेश करते हैं।

जिला बना पर विकास नदारद

गंगापुर सिटी से वर्तमान में निर्दलीय रामके श मीणा विधायक हैं जिन्होंने कांग्रेस को समर्थन दे रखा है और इस बार कांग्रेस से टिकट प्राप्त करने की जुगत लगा रहे हैं। लेकिन रामके श मीणा की राह आसान नहीं है। 2008 में भी बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर उन्होंने कांग्रेस को समर्थन दिया था। 2013 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत नहीं मिली। यहां मीणा, मुस्लिम, गुर्जर और माली मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।

यह बात अलग है कि वर्तमान विधायक रामके श मीणा ने गंगापुर को जिला घोषित करा दिया लेकिन गंगापुर मुख्यालय पर विकास के लिए तरस रहा है, जिसके चलते शहरी मतदाता उनके पक्ष में नजर नहीं आते हैं। गंगापुर क्षेत्र में विगत सालों में मंदिर माफी की जमीनों पर हुए कब्जे भी विधानसभा चुनावों का एक प्रमुख मुद्दा बन सकते हैं।

विधायक नहीं बनवा पाए बेटे को प्रधान

खंडार विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के अशोक बैरवा विधायक हैं जो पिछली गहलोत सरकार में मंत्री रह चुके हैं। साल 2013 के चुनावों में भाजपा से जीते जितेंद्र गोठवाल संसदीय सचिव बनाए गए थे। फिलहाल अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित खंडार विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को फतह हासिल करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी। कारण साफ है कि नंबर गेम होने के बावजूद कांग्रेस विधायक अशोक बैरवा अपने पुत्र संजय बैरवा को पंचायत समिति का प्रधान तक नहीं बनवा पाए थे। वहीं भाजपा की बात करें तो कई नेता टिकट की दौड़ में हैं। यहां गुर्जर, एससी मतदाताओं का बहुल है।

जो यहां जीता उसी की बनी सरकार 

भाजपा के टिकट के लिए सर्वाधिक दावेदार सवाई माधोपुर सीट पर हैें। कुछ आरएसएस के दम पर व कुछ अपने अपने तरीके से अपना टिकट पक्का मान बैठे हैं। कांग्स में रे विधायक दानिश अबरार के साथ 19 लोगों ने टिकट की दावेदारी की है। सवाई माधोपुर विधानसभा की जनता ने हर बार विधानसभा चुनाव में अपना नया विधायक चुनकर विधानसभा में भेजा है। 1990 के बाद से कोई विधायक यहां रिपीट नहीं हुआ। कहा जाता है कि सवाई माधोपुर से जिस पार्टी का विधायक होता है प्रदेश में सरकार अक्सर उसी पार्टी की होती है। यहां मीणा, मुस्लिम, वैश्य और गुर्जर मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।

  • सवाई माधोपुर से दिलीप कुमार पाटीदार की रिपोर्ट

ये खबर भी पढ़ें:-इतिहास के झरोखे से… रामजन्म भूमि पर बयान देते समय हिंदी के कठिन शब्द नहीं पढ़ पाए थे बूटासिंह

.