विधानसभा में बदलाव की तैयारी... नियम बना तो राज्यपाल के परामर्श से स्पीकर कर सकेंगे सत्र आहूत
(पंकज सोनी): जयपुर। राजस्थान विधानसभा (Rajasthan Vidhansabha) में एक साल में 60 बैठक और तीन सत्रों की अनिवार्यता को लेकर नियमों में बदलाव की कवायद शुरू हो गई है। नियमों में बदलाव करके सत्र आहूत करने का अधिकारी विधानसभा अध्यक्ष को भी मिल सके, इसकी भी अंदरखाने में तैयारी शुरू कर दी गई है। ऐसा हाेने पर सरकार के साथ विधानसभा अध्यक्ष भी राज्यपाल से परामर्श करके सत्र बुला सकेगा।
विधानसभा की नियम समिति में इस तरह के बदलाव को लेकर स्पीकर सीपी जोशी की मौजूदगी में प्रारंभिक चर्चा हो चुकी है। समिति ने विधि विभाग से ऐसे नियम पर विधिक राय मांगी है। विस के मौजूदा नियमों में भी एक साल में न्यूनतम तीन सत्र और साठ बैठकें बुलाने प्रावधान है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है, क्योंकि राज्य सरकार कार्य नहीं होने के बहाने से सत्र बुलाने में आनाकानी करती है।
नियम समिति के सदस्य संयम लोढ़ा ने कहा कि विधानसभा के नियमों में प्रावधान है कि 60 बैठकें एक साल में होनी चाहिए। फिर भी, इतनी बैठकें नहीं हो पाती। सत्र भी कम से कम तीन होने चाहिए। यह पहले से नियमों में है। इसे लागू करने के लिए स्पीकर को सत्र बुलाने का अधिकार मिले सके, इसके लिए विधिक राय मांगी गई है।
तीन विकल्पों पर हो रहा है विचार
नियम समिति में स्पीकर को अधिकार देने और सत्र बुलाने की बाध्यता को लेकर तीन विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। इसमें पहला सीधे ही नियम समिति की तरफ से नियमों में बदलाव करना, दूसरा नया कानून बनाना और तीसरा विधानसभा में इसे लेकर चर्चा करवाना शामिल है। विधिक राय आने के बाद नियम समिति द्वारा इन तीनों में से एक विकल्प पर काम शुरू किया जाएगा।
कर्नाटक में स्पीकर को है अधिकार
कर्नाटक में विधानसभा अध्यक्ष को राज्यपाल से परामर्श करके सीधे सत्र आहूत करने का अधिकार है। सरकार की तरफ से प्रस्ताव भेजे जाने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए अलग से कानून पारित किया गया है।
शुरुआती दशक में नियमानुसार हुई बैठकें
विधानसभा में नियम भी है कि हर वर्ष 60 बैठकें होनी चाहिए। यानी पांच साल में करीब 300 बैठकें तो होनी चाहिए, लेकिन बैठकों की संख्या इसकी आधी भी नहीं हो पातीं। प्रदेश में 15वीं विधानसभा चल रही है। विधानसभा का चालू सत्र वर्तमान सरकार का अंतिम सत्र माना जा रहा है। अभी तक साढ़े चार साल बीतने पर महज 142 बैठकें ही हुई। साल 1952 में जब प्रदेश में पहली बार चुनाव हुए और पहली विधानसभा गठित हुई थी, तब 303 बैठकें हुई थीं। उसके बाद 1957 में दूसरी विधानसभा भी 306 बैठकें हुईं, लेकिन अब स्थिति इसकी उलट है।
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