Political Analysis: कांग्रेस की गरमाती सियासत, आजाद के इस्तीफे का पहला असर दिख रहा हरियाणा पर
Political Analysis: गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से इस्तीफे का पहला असर हरियाणा की राजनीति पर दिखाई देने लगा है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने पूर्व मुख्य्मंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोल प्रदेश की राजनीति को एक गरमा दिया है। इस्तीफा दे चुके आजाद के साथ हुड्डा का बैठकें करना शैलजा को रास नहीं आया। इस मेल मुलाकात की आलाकमान की तरफ से अनदेखी किए जाने के बाद शैलजा ने हुड्डा पर करवाई को लेकर खुद मोर्चा खोल दिया है।
ऐसे संकेत है कि आने वाले दिनों में हरियाणा के कुछ और नेता भी हुड्डा पर कार्रवाई की मांग कर सकते हैं। हुड्डा ने इस्तीफे के बाद भी आजाद के साथ उनके आवास पर बैठक की थी। ऐसे संकेत है देर सवेर हुड्डा आजाद की पार्टी में जा सकते हैं। ‘सच बेधड़क’ ने आजाद के इस्तीफे के तुरंत बाद इसकी आशंका व्यक्त की थी। अब हालात वही बनते जा रहे हैं।
राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से नाराजगी
शैलजा ने लिखा आक्रामक पत्र (Political Analysis)
शैलजा ने आलाकमान को लिखे पत्र में कहा है कि हुड्डा जिस तरह आजाद के साथ बैठकें कर रहे हैं वो एक तरह से पार्टी के खिलाफ हैं, क्योंकि आजाद ने राहुल गांधी के खिलाफ काफी कुछ अपने इस्तीफे में लिखा। उसके बाद हुड्डा का मिलना सही नहीं है। इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। सोनिया व राहुल अभी विदेश में हैं। उनके आने के वाद पार्टी शैलजा के पत्र पर विचार कर सकती है। जानकारों का मानना है कि शैलजा ने पत्र सोची समझी रणनीति के तहत ही लिखा है, क्योंकि हुड्डा जिस तरह का रुख अपनाए हुए हैं, उससे यह साफ है कि वे ज्यादा दिन तक कांग्रेस में नहीं रहेंगे। हरियाणा में कांग्रेस लंबे समय से गुटबाजी से जूझ रही है।
हुड्डा के दबाव से संगठन कमजोर
हुड्डा के दबाव के चलते हरियाणा में 7-8 साल से कोई संगठन ही नहीं है। पहले अशोक तंवर, फिर कुमारी शैलजा अध्यक्ष रहते कुछ नहीं कर पाई। पार्टी ने पिछले दिनों हरियाणा में झगड़े निपटाने के लिए हुड्डा के समर्थक उदय भान को अध्यक्ष बनाया था, लेकिन राज्यसभा चुनावों में सब कुछ गड़बड़ा गया। कांग्रेस के अजय माकन राजनीति में नए चेहरे कार्तिकेय शर्मा से चुनाव हार गए। बहुमत के बाद भी माकन का एक वोट से हारना हुड्डा के लिए झटका था, लेकिन पार्टी अभी तक यह अधिकृत रूप से यह नहीं बता पाई कि क्राॅस वोटिंग किसने की।
प्रभारी विवेक बंसल और विधायक किरण चौधरी निशाने पर हैं, लेकिन माकन की जाने के बाद हुड्डा के रुख में बड़ा बदलाव आया। वे कांग्रेस में उतने सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे हैं, जितना की वह पहले दिखते थे। कहीं न कहीं वह दूरी बनाए हुए हैं। इस बीच आजाद के इस्तीफे से पहले और बाद में उनके साथ बैठकें करना यही संकेत दे रहा है कि वह भी देर सवेर पार्टी छोड़ेंगे। अब 4 सितंबर की रैली में साफ होगा कि हुड्डा क्या करते हैं।
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