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आपातकाल में मिली यातनाएं और जेल की सलाखें…कौन है 'मीसा बंदी' जो आज भी झेल रहे कांग्रेस की एक भूल का दर्द?

भजनलाल सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग में आज कई फैसले लिए गए। जिनमें मीसा और डीआईआर बंदियों की पेंशन को फिर से शुरू करना सबसे अहम फैसला रहा।
02:17 PM Jan 18, 2024 IST | Anil Prajapat
आपातकाल में मिली यातनाएं और जेल की सलाखें…कौन है  मीसा बंदी  जो आज भी झेल रहे कांग्रेस की एक भूल का दर्द
Bhajanlal-Government

Misa Bandi Pension : जयपुर। भजनलाल सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग में आज कई फैसले लिए गए। जिनमें मीसा और डीआईआर बंदियों की पेंशन को फिर से शुरू करना सबसे अहम फैसला रहा। इसके अलावा RAS Mains परीक्षा की तिथि आगे बढ़ाने का निर्णय हुआ। अब यह परीक्षा जून या जुलाई में होगी। साथ ही 100 दिन की कार्ययोजना का अनुमोदन और जीएसटी काउंसिल की ओर से किए गए संशोधन का अनुमोदन किया गया।

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मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में हुई पहली कैबिनेट बैठक मीसा और डीआईआर बंदियों की पेंशन बहाल करने का निर्णय लिया गया। ऐसे में अब 5 साल बाद मीसा और डीआईआर बंदियों की पेंशन फिर से शुरू हो गई है। बता दें कि गहलोत सरकार ने साल 2019 में मीसा और डीआईआर बंदियों की पेंशन पर रोक लगाई थी। ऐसे में पिछले पांच साल से वो कांग्रेस की भूल का दर्द सहन करते आ रहे है। लेकिन, बीजेपी ने अब सत्ता में आते ही मीसा और डीआईआर बंदियों को बड़ी सौगात दी है।

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राजे सरकार ने पहली बार शुरू की मीसा बंदियों की पेंशन

राजस्थान में पहली बार वसुंधरा राजे सरकार ने साल 2014 में मीसा और डीआईआर बंदियों को पेंशन देना शुरू किया था। पहली बार राजस्थान में 1120 मीसा और डीआरआई बंदियों को 12 हजार रुपए प्रति माह पेंशन देने का फैसला किया गया था। जिसे बाद में 20 हजार रुपए प्रति माह कर दिया था। इसके अलावा यात्रा भत्ता एवं निःशुल्क चिकित्सा सुविधा दी जा रही थी। राजे सरकार ने मीसा और डीआरआई बंदियों को लोकतंत्र सेनानी नाम दिया था। लेकिन, कांग्रेस ने सत्ता में आते ही मीसा बंदियों की पेंशन को बंद कर दिया था।

मीसा बंदी और डीआईआर बंदी कौन ?

साल 1975-77 के दौरान राजनैतिक या सामाजिक कारणों से राष्ट्रीय आंतरिक सुरक्षा अधिनियम 1971(1971 का 26)(निरस्त) के तहत जिन्हें बंदी बनाया गया था, उन्हें मीसा बंदी के रूप में जाना जाता है। वहीं साल 1975-77 के दौरान भारत रक्षा नियम, 1971(डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स,1971) (निरस्त) के तहत जिन्हें बंदी बनाया गया था, उन्हें डीआईआर बंदी के रूप में जाना जाता है। इनको अब लोकतंत्र सेनानी नाम से जाना जाता है।

प्रदेश में इन जिलों में है मीसा और डीआईआर बंदी

प्रदेश के सिरोही, जालोर, पाली, अजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, बारा, बाड़मेर, भरतपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौड़, चुरु, दौसा, धौलपुर, डूंगरपुर, गंगानगर, जयपुर, जैसलमेर, झुंझुनूं, जोधपुर, कोटा, नागौर, प्रतापगढ़, राजसमंद, सवाई माधोपुर, सीकर, टोंक और उदयपुर जिले में मीसा और डीआईआर बंदी है।

जानें-कब लागू हुआ था मीसा कानून?

बता दे कि मीसा कानून साल 1971 में लागू किया गया था। लेकिन, इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया। मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम में आपातकाल के दौरान कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने इसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया। मीसा बंदियों से भरी जेलें मीसा और डीआरआई के तहत एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था। आपातकाल के वक्त जेलों में मीसाबंदियों की बाढ़ सी आ गई थी। नागरिक अधिकार पहले ही खत्म किए जा चुके थे और फिर इस कानून के जरिए सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया गया था और उनकी संपत्ति छीनी गई थी। बदलाव करके इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि न्यायपालिका में बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं थी। कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे।

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