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राइट टू हेल्थ बिल का विरोध: सरकारी योजनाओं में फ्री इलाज को निजी अस्पतालों का ‘NO’

राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में उतरे निजी अस्पतालों ने अब सरकारी योजनाओं में मरीजों को फ्री इलाज देना बंद कर दिया हैं।
08:49 AM Feb 13, 2023 IST | Anil Prajapat

जयपुर। राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में उतरे निजी अस्पतालों ने अब सरकारी योजनाओं में मरीजों को फ्री इलाज देना बंद कर दिया हैं। चिरंजीवी और आरजीएचएस योजना का लाभ प्राइवेट अस्पतालों में नहीं मिल रहा है। अस्पताल मरीजों को भर्ती तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इलाज के लिए पैसे चुकाने पड़ रहे हैं। इससे सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का दवाब बढ़ गया है। निजी अस्पताल में भर्ती हो रहे पेशेंट्स को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला तो अब मरीजों की शिकायतें भी बढ़ गई हैं।

चिकित्सक संगठनों ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि आंदोलन के दौरान कोई भी कार्रवाई अगर किसी अस्पताल या डॉक्टर पर हुई तो सरकार इसके परिणाम भुगतने को तैयार रहे। आईएमए के प्रवक्ता डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि मरीजों की शिकायत पर कार्रवाई हुई तो सख्त आंदोलन होगा और इमरजेंसी से लेकर सभी चिकित्सा सेवाओं को ठप कर दिया जाएगा।

इलाज नहीं मिलने पर 181 पर करें शिकायत

अगर निजी अस्पतालों में सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का लाभ नहीं मिले तो इसकी शिकायत सीएमएचओ या टोल फ्री नंबर 181 पर करनी होगी। शिकायत करने के लिए इलाज के दौरान ली गई समस्त राशि लौटाने के प्रावधान है। कोई चिरंजीवी योजना से जुड़े हॉस्पिटल के संचालक या डॉक्टर इलाज करने में आनाकानी करते हैं तो उसकी सीएम हैल्प पोर्टल पर शिकायत कर सकते हैं।

हॉस्पिटल बोर्ड राजस्थान के सचिव डॉ. सर्वेशशरण जोशी ने बताया कि मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना मे शामिल पैकेज की जो दर सन 2013 की है, जिसके तहत इन निम्न दर पर इलाज करना संभव नहीं है। इसलिए इस पैकेज राशि को बढ़ाया जाए। जयपुर मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ. तरुण ओझा ने बताया कि जब तक सरकार राइट टू हेल्थ बिल को वापस नहीं लेती है, तब तक चिरंजीवी योजना, आरजीएचएस योजना का सभी निजी अस्पतालों में पूर्ण बहिष्कार किया जाएगा।

जेएमए सचिव डॉ. अनुराग शर्मा ने बताया कि राज्य के संपूर्ण चिकित्सक जनता की चिकित्सा सेवा करना चाहते हैं, लेकिन इस बिल के प्रावधानों की वजह से बंद जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर हैं। कार्डियोलोजिस डॉ. जीएल शर्मा ने बताया कि राज्य में पहले से ही चिकित्सकों के लिए 54 कानून बने हुए हैं। इसलिए राइट टू हेल्थ जैसे नए कानून आवश्यकता नहीं है।

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