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…जब 800 लोगों का काल बन गई थी उफनती नदी, ओडिशा से याद आया 42 साल पहले का वो 'काला दिन'

ओडिशा के बालासोर में बहानागा स्टेशन के पास शुक्रवार शाम तीन ट्रेनों के बीच हुई भीषण भिड़ंत में अब तक 285 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है।
12:55 PM Jun 03, 2023 IST | Anil Prajapat
…जब 800 लोगों का काल बन गई थी उफनती नदी  ओडिशा से याद आया 42 साल पहले का वो  काला दिन
Mansi-Saharsa passenger train

Train Accident in India : जयपुर। ओडिशा के बालासोर में बहानागा स्टेशन के पास शुक्रवार शाम तीन ट्रेनों के बीच हुई भीषण भिड़ंत में अब तक 285 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। वहीं, एक हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे है, जिनमें से अधिकतर लोगों की हालत नाजुक बनी हुई है। ऐसे में यह तो साफ है कि मृतकों की संख्या का आंकड़ा बढ़ सकता है। लेकिन, ओडिशा ट्रेन हादसे ने पुराने जख्मों को एक बार फिर ताजा कर दिया है। वैसे तो देश के अनेक रेल हादसे हुए हैं। लेकिन, आजादी के बाद से अब तक देश में 15 ऐसे बड़े रेल हादसे हुए है, जिनमें 100 से ज्यादा लोगों की जान गई है। लेकिन, ओडिशा हादसे ने भारतीय रेल के इतिहास के सबसे बड़े और वर्ल्ड के दूसरे हादसे को याद दिला दिया है। जब साल 1981 में एक ट्रेन की बोगी के 9 डिब्बे नदी में समा गए थे और 800 से ज्यादा लोग 'काल' का ग्रास बन गए थे।

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जानें-देश के पहले बड़े रेल हादसे के बारे में…

देश में आज से करीब 42 साल पहले एक भीषण रेल हादसा हुआ था, जिसे भारतीय रेल इतिहास का पहला और विश्व का दूसरा बड़ा रेल हादसा माना जाता है। श्रीलंका में साल 2004 में आई सुनामी की तेज लहरों में ओसियन क्वीन एक्सप्रेस ट्रेन समा गई थी। इस हादसे में 1700 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। लेकिन, देश का सबसे भयानक रेल हादसा बिहार के मानसी-सहरसा रेल लाइन पर 6 जून 1981 को हुआ था। जिसमें 800 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस रेल हादसे ने देश ही नहीं, पूरी दुनिया को झंकझोर कर रख दिया था।

नदी में समा गए थे ट्रेन के 9 डिब्बे

भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा हादसा 6 जून 1981 की शाम घटित हुआ था। उस जमाने में ट्रेनों की संख्या बहुत कम ही थी, ऐसे में अधिकतर मार्गों पर एक-दो ही पैसेंजर ट्रेन चलती थी। ट्रेनें कम चलने के कारण यात्री भार भी बहुत ज्यादा रहता था। 80-90 के दशक में खगड़िया से सहरसा के बीच एक ही पैसेंजर ट्रेन चलती थी। 6 जून 1981 को ट्रेन मानसी से सहरसा के लिए रवाना हुई। शाम करीब तीन बजे ट्रेन बदला घाट पहुंची। इसी दौरान ट्रेन खचाखच भरी हुई थी। ट्रेन की छत पर लोग बैठे हुए थे। ट्रेन बदला घाट से धमारा घाट की ओर रवाना हुई। तभी मौसम खराब हो गया। बदला-धमारा घाट के बीच बागमती नदी पर बने पुलिस संख्या 51 से गुजरते समय ट्रेन बेपटरी हो गई। ट्रेन की 9 बोगियां उफनती हुई बागमती नदी में समा गई। नदीं में डूबे यात्री मदद की गुहार लगा रहे थे, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं थी। तूफानी बारिश और अंधेरे के चलते राहत व बचाव कार्य भी देरी से शुरू हुआ था, तब तक सबकुछ खत्म हो गया था।

ट्रेन में सवार थे एक हजार से ज्यादा लोग

हादसे के वक्त ट्रेन खचाखच भरी हुई थी। मानसी से सहरसा रुट पर एक ही पैसेंजर ट्रेन चलती थी। जिसके चलते अंदर ही नहीं ट्रेन की छत और इंजन के बाहर भी सवारियां खड़ी हुई थी। स्थानीय लोगों ने दावा किया था कि हादसे के वक्त ट्रेन में एक हजार से ज्यादा सवारियां थी। जिनमें से 800 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। लेकिन, रेलवे की सरकारी आंकड़ों की मानें तो हादसे के वक्त ट्रेन में 500 से ज्यादा सवारी थी। जिनमें से करीब 300 लोगों की जान गई थी। लेकिन, वास्तविकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि हादसे के दो सप्ताह बाद भी नदी से शव निकाले गए थे।

हादसे की वजह आज तक साफ नहीं

बिहार के मानसी-सहरसा रेल लाइन पर पैसेंजर ट्रेन जिस वक्त हादसे की शिकार हुई थी, तब मौसम काफी खराब था। शाम को तेज हवाओं के साथ तूफानी बारिश हो रही थी। ऐसे में हादसे होने के कई कारण सामने आए। लेकिन, हादसे की असली वजह आज तक किसी को पता नहीं चल पाई है। किसी ने माना कि रेल ट्रैक पर गाय-भैस का झुंड आने की वजह से ड्राइवर को इमरजेंसी ब्रेक लगाना पड़ा। वहीं, किसी ने माना कि तूफानी बारिश की वहज से यात्रियों ने ट्रेन के गेट और खिड़कियों को बंद कर लिया था। जिसके कारण ट्रेन पर तूफान का दबाव आ गया और ट्रेन पुल तोड़ते हुए नदी में समा गई।

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