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Chaitra Navratri 1st Day: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की होगी पूजा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

10:45 AM Apr 09, 2024 IST | Sanjay Raiswal

Chaitra Navratri 2024 : चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत हो गई है। हिंदू नववर्ष के साथ ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है। इस बार पूरे 9 दिन के नवरात्र होंगे। यह 9 दिन मां दुर्गा को समर्पित होते हैं। इस दौरान व्रत और मां की पूजा अर्चना के साथ कलश स्थापना की जाती है।

9 अप्रैल को घट स्थापना, 17 अप्रैल को नवरात्रि का समापन

नवरात्रि के 9 दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान घरों में पूजा पाठ किए जाते हैं। 9 अप्रैल को कलश स्थापना समय सुबह 05:52 मिनट से लेकर 10: 04 मिनट तक है। इसके अलावा 11: 45 मिनट से लेकर दोपहर 12: 35 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त है। इन दोनों मुहूर्त में घटस्थापना कर सकते हैं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन रेवती नक्षत्र सुबह से लेकर सुबह 07: 32 मिनट तक रहेगा। उसके बाद से अश्विनी नक्षत्र सुबह 07:32 मिनट से अगले दिन 10 अप्रैल को सुबह 05:06 मिनट तक रहेगा। वहीं 17 अप्रैल को श्री रामनवमी के उत्सव के साथ नवरात्रि का समापन होगा।

नवरात्रि का पहला दिन माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप, मां शैलपुत्री को समर्पित है। मां दुर्गा सुख-समृद्धि और आरोग्य प्रदान करने वाली हैं। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए। किन मंत्रों का जप करने से माता प्रसन्न होती हैं, आइए जानते है।

नवरात्रि कलश स्थापना कैसे करें?

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। माता की पूजा करने से पहले घर के पूजा स्थल की साफ-सफाई कर लें और गंगाजल से स्थान को स्वच्छ कर लें। नवरात्रि की विधिवत पूजा करने वाले हैं, तो सबसे पहले इसके बाद एक मिट्टी का बर्तन लें और उसमें साफ मिट्टी रखें। अब इसमें कुछ जौ के दाने बो दें और उनपर पानी का छिड़काव करें।

अब इस मिट्टी के कलश को पूजा घर या जहां पर माता की चौकी हो, वहां इस कलश स्थापित कर दें। कलश स्थापना करते और पूजा के समय अर्गला स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। ऐसा करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है। इसके बाद उस कलश में जल, अक्षत और कुछ सिक्के डालें और ढककर रख दें। इस कलश पर स्वास्तिक जरूर बनाएं और फिर कलश को मिट्टी के ढक्कन से ढक दें। इसके बाद दीप-धूप जलाएं और कलश की पूजा करें।

या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

इसके बाद मां को सफेद खाद्य पदार्थों का भोग माता को लगाएं। भोग लगाने के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ आपको करना चाहिए। साथ ही माता के मंत्रों का जप भी आप कर सकते हैं। जो लोग व्रत नहीं रख पा रहे हैं वो मंत्र जप से भी माता की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। पूजा के अंत में माता की आरती आपको करनी चाहिए। पूजा समाप्ति के बाद दिन के समय भजन-कीर्तन आप कर सकते हैं।

माता शैलपुत्री को इन मंत्रों से प्रसन्न करें।

वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌।।

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

माता शैलपुत्री की पूजा का महत्व

माता शैलपुत्री की पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह में परेशानियां आ रही हैं उन्हें शैलपुत्री माता की पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। माता की पूजा से ग्रह-कलेश भी दूर होता है। इसके साथ ही आरोग्य का वरदान भी माता देती हैं। धन, यश की कामना रखने वालों को भी माता की पूजा करनी चाहिए।

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