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निजी कंपनी का लैंडर मून पर भेजेगा नासा, चांद की स्टडी करेगा लैंडर ‘पेरेग्रिन’

अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद पर जल्द ही लैंडर “पेरेग्रिन’ भेजेगा, जो चांद के पर्यावरण की स्टडी करेगा। “पेरेग्रिन’ एक निजी कंपनी का लैंडर है जिसे नासा चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। 1972 में अपोलो- 17 मिशन चांद पर अमेरिका का आखिरी मिशन था।
08:29 AM Dec 03, 2023 IST | BHUP SINGH

वॉशिंगटन। अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद पर जल्द ही लैंडर “पेरेग्रिन’ भेजेगा, जो चांद के पर्यावरण की स्टडी करेगा। “पेरेग्रिन’ एक निजी कंपनी का लैंडर है जिसे नासा चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। 1972 में अपोलो- 17 मिशन चांद पर अमेरिका का आखिरी मिशन था। इसके बाद उसने चांद की सतह पर न तो यंत्र भेजे और न ही इंसान, लेकिन अगले महीने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद की सतह पर एक लैंडर उतारने जा रही है। इस लैंडर को 25 जनवरी को चांद की सतह पर उतारा जाएगा।

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अमेरिकी कंपनी एस्ट्रोबोटिक ने इस लैंडर को बनाया है। कंपनी के सीईओ जॉन थ्रॉन्टन कहते हैं कि पेरेग्रिन में नासा का यंत्र लगा है, जो चांद के पर्यावरण की स्टडी करेगा। ताकि अर्टेमिस मिशन में मदद हो। कुछ साल पहले नासा ने अमेरिकी कंपनियों को कमीशन किया था। ताकि चांद पर साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट और तकनीकों को पहुंचाया जा सके। इस प्रोग्राम का नाम था सीएलपीएस। इस प्रोग्राम के तहत निजी कंपनियों को फिक्स प्राइस पर कॉन्ट्रैक्ट्स दिए गए थे। ताकि चंद्रमा की अर्थव्यवस्था बन सके।

आसान नहीं होगा ये मिशन

जॉन थ्रॉन्टन ने बताया कि हम धरती से लॉन्चिग कर रहे हैं। हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। चांद की सतह पर उतरने के मकसद से किए गए मिशन में सिर्फ आधे ही सफल हो पाए हैं। इसके लिए वल्कन सेन्टॉर रॉके ट का इस्तेमाल किया जाएगा। जिसे यूएलए इंडस्ट्रियल ग्रुप ने बनाया है। इसकी पहली लॉन्चिग 24 दिसंबर को फ्लोरिडा से होगी। कु छ दिन बाद ही लैंडर चांद के ऑर्बिट में पहुंच जाएगा। इसके बाद 25 जनवरी को चांद की सतह पर लैंडर को उतारने का प्रयास किया जाएगा।

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तीन देशों की सफल लैंडिंग

बस एस्ट्रोबोटिक के कं ट्रोल सेंटर से निगरानी की जाएगी। इससे पहले इस साल जापान की निजी कंपनी ने चांद पर अपना लैंडर उतारने का प्रयास किया था। लेकिन फेल हो गया था। 2019 में इजरायल भी ऐसे मिशन में फेल हो गया था। चांद की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग सिर्फ भारत, अमेरिका, रूस और चीन ही कर पाए हैं।

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