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पाकिस्तान में बसा है माता हिंगलाज का मंदिर, मुस्लिम भी करते हैं देवी की पूजा, यहां जाने से पहले लेनी पड़ती है 2 कसमें

12:28 PM Mar 05, 2023 IST | Supriya Sarkaar

हिंगलाज माता मन्दिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में हिंगोल नदी के तट पर लसबेला कस्बे में स्थित है। यह हिन्दू देवी मन्दिर सती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। इस मन्दिर (Hinglaj Temple in Pakistan) को जहां हिंदू माता का स्थान मानते हैं, वहीं मुस्लिम इसे ‘बीबी नानी पीर’ या ‘नानी मंदिर’ अथवा ‘नानी का हज’ के नाम से जानते हैं। यह हिन्दू-मुस्लिम दोनों की ही आस्था का स्थान है। यह मंदिर 2 हजार साल से अधिक पुराना है। स्कन्द पुराण, वामन पुराण व दुर्गा चालीसा में ‘हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी’ वर्णित है। यह पहाड़ी इलाके में एक संकीर्ण घाटी में है। 

यह करांची के उत्तर-पश्चिम में 250 किमी, अरब सागर से 19 किमी और सिंधु के मुहाने के पश्चिम में 130 किमी दूर है। यह हिंगोल नदी के पश्चिमी तट पर मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक श्रंखला की छोटी प्राकृतिक गुफा में बना है, जहां एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है, बल्कि एक छोटे आकार की शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर से पुता हुआ है, इसे जिसे संस्कृत में हिंगुला कहते है। जो संभवतया इसके आज के नाम हिंगलाज का स्रोत हो सकता है। 

इसके आस-पास गणेश देव, माता काली, गुरु गोरख नाथ धूनी, ब्रह्म कुध, तिर कुण्ड, गुरु नानक खाराओ, रामझरोखा बैठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई पूज्य स्थल हैं। हिंगलाज का गुफा के अंदर दरबार है और भगवान शिव यहां भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह डोडिया राजपूतों, चारणों की कुलदेवी हिंगलाज माता पूजनीय है। यह मनणा जागीरदारों, सैफाऊ, सिद्ध जागीरदार (राजपुरोहितों) की कुलदेवी है। कहा जाता है कि हर रात यहां सभी शक्तियां एकत्र होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते ही हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।

बाबा अमरनाथ से भी ज्यादा कठिन है मंदिर की यात्रा 

हिंगलाज मंदिर पहुंचना अमरनाथ यात्रा से भी ज्यादा कठिन माना जाता है। रास्ते में 1000 फुट ऊंचे पहाड़, दूर तक फैला सुनसान रेगिस्तान, जंगली जानवर वाले घने जंगल और 300 फीट ऊंचा मड ज्वालामुखी पड़ता है। डाकुओं और आतंकियों का डर अलग से रहता है। सुरक्षा के नाम पर न कोई पाकिस्तानी रेंजर है और ना ही कोई पर्सनल सिक्योरिटी। इस जगह लोग 30-40 लोगों का ग्रुप बनाकर ही जाते हैं। अकेले मंदिर की यात्रा करना मना है। यात्री 4 पड़ाव और 55 किमी की पैदल यात्रा करके हिंगलाज पहुंचते हैं। 

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वर्ष 2007 में चीन द्वारा रोड बनवाने से पहले तक हिंगलाज पहुंचने के लिए 200 किमी पैदल चलना होता था। इसमें 2 से 3 महीने तक लग जाते थे। करांची से 6-7 मील चलकर हाव नदी (Hinglaj Temple in Pakistan) पड़ती है। यहीं से माता हिंगलाज की यात्रा शुरू होती है। श्रद्धालु हिंगोल नदी के किनारे जयकारों के साथ माता का गुणगान करते हुए आगे बढ़ते हैं। यहीं शपथ ग्रहण की क्रिया सम्पन्न होती है। यहीं पर छड़ी का पूजन होता है और यहीं पर रात में विश्राम करके प्रात:काल हिंगलाज माता की जय बोलकर मरुतीर्थ की यात्रा प्रारंभ की जाती है।

यहां गिरा था माता का सिर

जब देवी सती ने दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया था तो भगवान विष्णु ने शिव का मोह भंग करने के लिए चक्र से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। जिन स्थानों पर देवी के अंग गिरे, वह शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि यहां माता का सिर भाग गिरा था। यहां पर ब्रह्मरंध्र वाले भाग के गिरने की मान्यता का ही तंत्र चूड़ामणि एवं मेरू तंत्र आदि ग्रन्थ समर्थन करते हैं। हिंगलाज को आदिशक्ति माना जाता है। अति प्राचीन गुफा मंदिरों में से एक हिंगलाज माता का शक्तिपीठ है। इस शक्तिपीठ के बारे में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो कोई एक बार माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है, उसे पिछले जन्मों के कर्मों की सजा को नहीं भुगतना पड़ता। 

यात्रा शुरू करने से पहले लेनी होती है दो खास शपथ 

हिंगलाज माता के दर्शन के लिए जाने वाले यात्रियों को दो शपथ लेनी पड़ती है। पहली माता के मंदिर के दर्शन करके वापस लौटने तक संन्यास ग्रहण करने की। दूसरी पूरी यात्रा में कोई भी यात्री अपने सहयात्री को अपनी सुराही का पानी नहीं देगा, भले ही वह प्यास से तड़प कर वीराने में मर जाए। माना जाता है कि भगवान (Hinglaj Temple in Pakistan) राम के समय से ही ये दोनों शपथ हिंगलाज माता तक पहुंचने के लिए भक्तों की परीक्षा लेने के लिए चली आ रही हैं। इन शपथ को पूरा न करने वाले की हिंगलाज यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। रास्ते में एक गुरु-शिष्य का स्थान भी आता है, जिसकी अपनी कथा है। हिंगळाज जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक परम्परा यह है कि प्रत्येक यात्री को अपने पीने के पानी के लिए अपनी सुराही में पानी भरकर ले जाना होता है। एक यात्री की सुराही का पानी दूसरा यात्री नहीं पी सकता चाहे पिता-पुत्र ही क्यों न हों।

यहां मुस्लिम भी करते हैं सेवाभाव 

इस मंदिर में मुस्लिम भी सेवाभाव करते हैं। मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी यात्रा कर इस शक्तिपीठ के दर्शन किए थे। हिंदूग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ने भी यहां घोर तप किया था। इस मंदिर में मनोरथ सिद्धि के लिए गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव और दादा मखान जैसे संत भी आए थे। ऊंची पहाड़ी पर बना यह मंदिर गुफा के रूप में है। इस मंदिर में कोई दरवाजा नहीं है। मान्यता है कि हिंगलाज माता यहां सुबह स्नान करने आती हैं। मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा भी स्थापित है। यहां ब्रह्मकुंड और तीरकुंड दो प्रसिद्ध तीर्थ भी हैं।

भारत से भी जाते हैं श्रद्धालु 

माता की ख्याति सिर्फ करांची और पाकिस्तान ही नहीं अपितु पूरे भारत में है। नवरात्रि के दौरान तो यहां पूरे नौ दिनों तक शक्ति की उपासना का विशेष आयोजन होता है। सिंध-करांची के लाखों सिंधी हिन्दू श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं। भारत से भी प्रतिवर्ष एक दल यहां दर्शन के लिए जाता है। 

यात्रा करने के बाद महिला कहलाती है हाजियानी

इस मंदिर पर गहरी आस्था रखने वाले लोगों का कहना है कि हिन्दू चाहे चारों धाम की यात्रा क्यों ना कर ले, काशी के पानी में स्नान क्यों ना कर ले, अयोध्या के मंदिर में पूजा-पाठ क्यों ना कर लें, लेकिन अगर वह हिंगलाज देवी के दर्शन नहीं करता तो यह सब व्यर्थ हो जाता है। वे स्त्रियां जो इस स्थान का दर्शन कर लेती हैं, उन्हें हाजियानी कहते हैं। उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है।

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