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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: श्रीशैल पर्वत पर बना है,कहलाता है दक्षिण का कैलाश

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दो हजार साल पुराना माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में , कृष्णा नदी के तट पर स्थित श्रीशैल पवर्त पर बना हुआ है।
04:33 PM Feb 16, 2023 IST | BHUP SINGH

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दो हजार साल पुराना माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में , कृष्णा नदी के तट पर स्थित श्रीशैल पवर्त पर बना हुआ है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। अनेक धर्मग्रंथों में इस स्थान की महिमा बताई गई है। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भोलेनाथ का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है। कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि श्रीशैल पर्वत के दर्शन मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं।सर्व सुखों की प्राप्ति होती है और व्यक्ति जनम -मरण के चक्करों से मुक्त हो जाता है।

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कथा:गणेश के पहले विवाह करने से कार्तिकेय हुए नाराज

पुराणों के अनुसार भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय पहले विवाह करने के लिए आपस में झगड़ा कर रहे थे ।कार्तिकेय का कहना था वो बड़े हैं और गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे। इस विवाद को सुलझाने के लिए दोनों अपने माता -पिता ,शिव और पार्वती के पास गये। उन्होंने कहा जो इस पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले आयेगा,उसी का विवाह पहले होगा। यह सुनते ही कार्तिकेय दौड़ पड़े लेकिन गणेश अपने स्थूल शरीर के साथ ऐसा नहीं कर सके।

यहां गणेश ने सोच-विचारकर अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। उन्होनें मां पार्वती और पिता शिव को एक आसन पर बिठाया और उनकी सात बार परिक्रमा की। उसके बाद उनका विधिवत पूजन किया। इस प्रकार गणेश ने माता-पिता की परिक्रमा कर ,पृथ्वी की परिक्रमा का फल प्राप्त कर लिया। शिव -पार्वती अपने पुत्र गणेश की बुद्धिमता से प्रसन्न हो गये और उनका विवाह करा दिया।

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कार्तिकेय जब लौटे तो गणेश के विवाह के बारे में जानकर नाराज हो गये क्रोंच पर्वत पर रहने चले गये। पहले देवार्षि नारद को कार्तिकेय को मनाने भेजा ।उनके नहीं मानने पर मां पार्वती,भगवान महादेव के साथ क्रोंच पर्वत पर गई। लेकिन इससे पूर्व ही कार्तिकेय वहां से तीन योजन या छत्तीस किमी दूर चले गये। पुत्र के दर्शन की लालसा में भगवान शिव ने ज्योति का रुप धारण कर लिया और वहीं विराजमान हो गये । ये कहें कि उस क्रोंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रुप में विराजित हो गये। तभी से इस ज्योतिर्लिंग का नाम मल्लिकार्जुन हो गया। मल्लिका ,मां पार्वती को कहा जाता है और अर्जुन ,शिव को कहते थे।

निर्माण :पर्वत पर मिलते हैं शिवलिंग

लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व श्री विजय नगर के महाराज कृष्णराय यहां आये थे।उन्होंने यहां एक सुंदर मंडप का निर्माण कराया था,जिसका शिखर सोने का था। इस क्रोंच पर्वत पर बहुत से शिवलिंग मिलते हैं। यहां पर महाशिवरात्रि के दिन मेला लगता है। मंदिर के पास माता जगदंबा का भी स्थान है। यहां मां पार्वती को भ्रमरांबा कहा जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पहाड़ी से पांच किमी नीचे पाताल गंगा के नाम से प्रसिद्ध कृष्णा नदी है ,जिसमें स्नान करने का बहुत महत्व है।
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कैसे जायें

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग जाने के लिए सड़क मार्ग हैदराबाद से जाता है। यहां से बसें और टैक्सी मिल जाती है। हैदराबाद देश के सभी शहरों से जुड़ा है।रेल मार्ग से जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन मारकापुर है। जो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से 84 किमी दूर है।मारकापुर देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा है। हवाई मार्ग से आने वालों के लिए नजदीकी हवाई अड्डा राजीव गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यहां से ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए टैक्सी और बसें दोनों मिल जाती हैं।

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