जोशीमठ में भू-धंसाव, औली रोप-वे खतरे की जद में, दो और होटल झुके
देहरादन/जोशीमठ। भू-धंसाव ग्रस्त जोशीमठ में रविवार को जोशीमठ-औली रोप- वे के शुरू होने के स्थान पर दरारें और चौड़ी हो गईं जबकि इससे कुछ मीटर दूर स्थित दो अन्य बडे़ होटलों के भी एक दूसरे पर झुकने की रफ्तार तेज हो गई है। दूसरी ओर दरार वाले मकानों की संख्या रविवार को बढ़कर 826 हो गई है जबकि असुरक्षित क्षेत्र में आने वाले भवनों की संख्या भी बढ़कर 165 हो गई है। रविवार को 17 और परिवारों को अस्थाई राहत शिविरों में लाया गया।
अब तक कुल 233 परिवारों के 798 व्यक्तियों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया है। साढे चार किलोमीटर लंबा जोशीमठ-औली रोप-वे जहां से शुरू होता है, वह खतरे वाले इलाकों से जुड़ा है। इसके निचले हिस्से से तकरीबन आधा किलोमीटर सीधे नीचे जेपी कॉलोनी है, जहां पानी का रिसाव हो रहा है। जेपी कालोनी के ऊपर और नीचे की ओर स्थित सभी संरचनाएं भू-धंसाव की जद में हैं। छह हजार फीट पर स्थित जोशीमठ को नौ हजार फीट पर स्थित औली स्कीइंग केंद्र से जोड़ने वाले इस रोपवे का पिछले 10 दिनों से संचालन बंद है।
गढ़वाल मंडल विकास निगम के मुख्य संचालक इंजीनियर दिनेश भट्ट ने बताया कि रोपवे के मुख्य भवन पर जहां से रोपवे संचालित होता था, पहले हल्की-हल्की सामान्य दरारें थीं लेकिन शनिवार सुबह तक रोप-वे परिसर में दीवार से कुछ दूरी पर चार से छह इंच चौड़ी, बीस फुट लंबी और चार फीट गहरी दरार आ चुकी हैं। इस रोपवे से सटे दो होटल, ‘स्नो क्रस्ट’ और ‘होटल कामेट’ भी भू-धंसाव की जद में हैं और एक दूसरे से चिपकने लगे हैं जिसके मद्देनजर ऐहतियातन दोनों होटलों को खाली कर दिया गया है। ‘स्नो क्रस्ट’ के मालिक की पुत्री पूजा प्रजापति ने बताया कि उनका होटल दूसरे होटल की ओर झुक रहा है।
जल रिसाव जारी
इस बीच, नगर के मारवाडी क्षेत्र में स्थित जेपी कॉलोनी में संभवत: किसी भूमिगत जलधारा से हो रहे पानी के रिसाव में कमी आने के दो दिन बाद फिर इसमें बढोत्तरी देखी गई है। दो जनवरी से इसमें से लगातार मटमैला पानी निकल रहा है। हालांकि, विशेषज्ञ इसके स्रोत के बारे में अभी कु छ कह पाने की स्थिति में नहीं है। स्थिति का जायजा लेने के लिए जोशीमठ पहुंचे प्रदेश के आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने कहा कि क्षेत्र में घट-बढ़ रहे पानी के रिसाव की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है।
निरंतर निगरानी के निर्देश
भू वैज्ञानिकों के साथ भू-धंसाव ग्रस्त क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण करने के बाद सिन्हा ने संबंधित अधिकारियों को भवनों में पड़ी दरारों तथा भू-धंसाव के ‘पैटर्न रूट’ की निरंतर निगरानी करने के निर्देश दिए। उन्होंने जानकारी दी कि राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद द्वारा प्रभावित क्षेत्र का भू भौतिकीय अध्ययन किया जा रहा है।