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Knowledge Corner: हाड़ा राजपूतों ने बसाया था ‘हाड़ौती’, चंबल है यहां की जीवनरेखा

09:51 AM Sep 18, 2022 IST | Sunil Sharma
knowledge corner  हाड़ा राजपूतों ने बसाया था ‘हाड़ौती’  चंबल है यहां की जीवनरेखा

राजस्थान को मुख्य रूप से चार भौगोलिक भागों में बांटा गया है। इसके चौथे भाग को हाड़ौती का पठार या दक्षिण-पूर्वी पठार के नाम से जाना जाता है। राजस्थान जो कि भारत का सबसे बड़ा राज्य है, क्षेत्रफल के आधार पर यह अन्य राज्यों से बड़ा राज्य है। इसकी स्थापना 30 मार्च 1949 को हुई थी।

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यह दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा से सीमा बनाता है। राजस्थान की एक अंतरराष्ट्रीय सीमा पाकिस्तान के साथ लगती है जिसकी लंबाई 1070 किलोमीटर है। जिसे रेड क्लिप रेखा के नाम से जाना जाता है। इसी का एक हिस्सा है हाड़ौती का पठार, जिसमें राज्य के चार जिले आते हैं।

चार जिलों में 12 प्रतिशत जनसंख्या

राजस्थान का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है। इसे राजपुताना के नाम से भी जाना जाता रहा है, जिसका अर्थ होता है राजपूतों का देश। इसी का एक हिस्सा है हाड़ौती का पठार जो कि राज्य के 9 प्रतिशत भू-भाग को घेरे हुए है। यहां राज्य की 12 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।

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हाड़ौती को हाड़ौली तथा हाड़ावली नामों से भी जाना जाता है। यह चार जिलों का एक समूह है, जिसमें कोटा संभाग के बारां, कोटा, बूंदी तथा झालावाड़ जिले शामिल हैं। इस क्षेत्र की प्रमुख नदी चंबल है, जिसकी सहायक नदियां कालीसिंध, परवन, पार्वती नदी तथा चापी नदी हैं। यहां की मिट्टी जलोढ़ है।

पृष्ठभूमि

हाड़ोती का पठार पूर्व में मालवा का पठार, पश्चिम में अरावली पर्वतमाला और पश्चिम में मारवाड़ पठार तथा मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। इसके बूंदी जिले का नाम राजा बूंदा मीणा के नाम पर पड़ा था। इसे “बंद-का-नाल” या तंग रास्ता भी कहा जाता था। इस क्षेत्र का बारां जिला 14वीं व 15वीं शताब्दी में सोलंकी राजपूतों के अधीन रहा। हाड़ौती क्षेत्र के चारों जिलों व आस-पास के क्षेत्र में हाड़ौती बोली जाती है। यह राजस्थानी भाषा की एक बोली है, जो हाड़ौती क्षेत्र में लगभग चालीस लाख लोगों द्वारा बोली जाती है। मध्य प्रदेश के पड़ोसी इलाकों में भी हाड़ौती बोली बोली जाती है।

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ऐसे पड़ा नाम

इस क्षेत्र का नाम हाड़ौती ‘तृप्त हड़ राजपूतों’ के नाम पर पड़ा था, जो इस क्षेत्र में 12वीं शताब्दी में आकर बसे थे। उन्होंने इस क्षेत्र पर सदियों तक अपना वर्चस्व कायम रखा। तृप्त हड़ ‘चौहान राजपूतों’ के वंश की शाखा मानी जाती है। हड़ राव देव ने 1241 ईस्वी में बूंदी पर तथा 1264 में कोटा पर कब्जा जमा लिया था।

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